ब्रिटिश काल की परंपराओं और प्रतीकों को त्याग कर अब भारतीयकरण की तरफ बढ़ रही है सेना
ब्रिटिश काल की परंपराओं और प्रतीकों को त्याग कर अब भारतीयकरण की तरफ बढ़ रही है सेना
News18 को पता चला है कि अब थलसेना भी ब्रिटिश-युग की प्रथाओं की समीक्षा करने जा रही है, जिसका अब भी सेना में पालन किया जा रहा है. इस समीक्षा के बाद यह देखा जाएगा कि इनमें से कितनी परंपराओं और निशानियों को खत्म किया जा सकता है. सूत्रों ने बताया कि सेना के एडजुटेंट जनरल लेफ्टिनेंट जनरल सी बंसी पोनप्पा की अध्यक्षता में बुधवार को होने वाली आंतरिक चर्चा में इनमें से कई मुद्दों पर चर्चा हो सकती है.
हाइलाइट्सनौसेना ने हाल ही में सेंट जॉर्ज क्रॉस को त्याग कर एक नया नौसैनिक ध्वज अपनाया.अब थलसेना भी ऐसे ही ब्रिटिश-युग की प्रथाओं और चिह्नों की समीक्षा करने जा रही है.इसके बाद यह देखा जाएगा कि इनमें से कितनी परंपराओं और निशानियों को खत्म किया जा सकता है.
अमृता नायक दत्ता
नई दिल्ली. इस महीने की शुरुआत में नौसेना ने सेंट जॉर्ज क्रॉस के रूप में औपनिवेशिक युग के एक अवशेष को त्याग कर नया नौसैनिक ध्वज अपनाया. इसके साथ ही up24x7news.com को पता चला है कि अब थलसेना भी ब्रिटिश-युग की प्रथाओं की समीक्षा करने जा रही है, जिसका अब भी सेना में पालन किया जा रहा है. इस समीक्षा के बाद यह देखा जाएगा कि इनमें से कितनी परंपराओं और निशानियों को खत्म किया जा सकता है.
रक्षा सूत्रों के अनुसार, इनमें से कुछ विरासत प्रथाओं को खत्म करने को लेकर दो साल से अधिक समय से चर्चा चल रही है और कुछ बदलाव भी लागू किए गए हैं.
पिछले साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात के केवड़िया में संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन में सशस्त्र बलों के सिद्धांतों, प्रक्रियाओं और रीति-रिवाजों के साथ-साथ सैन्य उपकरणों में स्वदेशीकरण को बढ़ाने के बारे में बात करने के बाद इन योजना को गति मिली.
औपनिवेशिक और पूर्व-औपनिवेशिक युग की परंपरा की होगी समीक्षा
सूत्रों के अनुसार, सेना के कुछ मौजूदा रीति-रिवाजों और परंपराओं, वर्दी और पहनावे, नियमों और कानूनों की जड़ें औपनिवेशिक और पूर्व-औपनिवेशिक युग में जाती हैं, जिनकी अब समीक्षा की जाएगी.
खास तौर से औपनिवेशिक युग के दौरान स्थापित और अंग्रेजी नाम वाली इकाइयों, प्रतिष्ठानों और संस्थानों जैसे पुणे स्थित क्वीन मैरी टेक्निकल इंस्टीट्यूट फॉर डिफरेंटली एबल्ड सोल्जर्स का नाम बदलना, साथ ही सैन्य इकाई या टुकड़ी की औपनिवेशिक युग वाले नाम या प्रतीक चिह्न के साथ-साथ अधिकारियों की मेस प्रक्रियाओं सहित विभिन्न विरासती रीति-रिवाजों और परंपराओं की भी समीक्षा किए जाने की संभावना है.
सेना की इकाइयों को विदेशी सेनाओं और राष्ट्रमंडल दौर की सैन्य टुकड़ियों के साथ संबद्धता पर भी चर्चा पाइपलाइन में है. इसके साथ ही स्वतंत्रता-पूर्व युद्ध सम्मानों की समीक्षा की जाएगी, जिससे अतीत में अंग्रेजों द्वारा सेना की कई इकाइयों को सम्मानित किया गया था.
एक रक्षा सूत्र ने कहा कि जूनियर कमीशंड अधिकारियों को मानद कमीशन देने की वर्तमान प्रथा पर भी विचार किया जाएगा और इसी तरह रेजिमेंट के कर्नल की नियुक्ति की मौजूदा प्रणाली, सैन्य समारोह जैसे बीटिंग द रिट्रीट या सैन्य अंतिम संस्कार में तोप बग्गी के इस्तेमाल जैसी परम्परा पर भी चर्चा की जाएगी.
सूत्रों ने बताया कि सेना के एडजुटेंट जनरल लेफ्टिनेंट जनरल सी बंसी पोनप्पा की अध्यक्षता में बुधवार को होने वाली आंतरिक चर्चा में इनमें से कई मुद्दों पर चर्चा हो सकती है.
अंग्रेजी विरासत से मिली प्रथाओं की समीक्षा
उन्होंने कहा, यह प्रयास अमृत काल के अनुरूप हैं- एक वाक्यांश जिसका इस्तेमाल पहली बार वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की आजादी के 75वें वर्ष और सन 2047 में मनाए जाने वाले आजादी के 100वें वर्ष के बीच की अवधि का वर्णन करने के लिए किया था.
सूत्र ने बताया कि अंग्रेजी विरासत से मिली प्रथाओं की समीक्षा करना भी पीएम मोदी द्वारा घोषित अगले 25 वर्षों के लिए पंच प्राण लक्ष्यों के अनुरूप है. उन्होंने कहा, ‘इनमें से कुछ विरासत प्रथाओं की समीक्षा के लिए सभी से इनपुट लिए जाएंगे और उनकी राय इकट्ठा की जाएगी. इस पर अभी विचार किया जाएगा; अभी कोई तत्काल निर्णय की संभावना नहीं है.’
सैन्य अधिकारियों की मिली-जुली प्रतिक्रिया
न्यूज़18 ने जिन अधिकारियों से बात की, उनसे इन प्रयासों को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली. इनमें से कुछ ने अप्रचलित सैन्य प्रथाओं की समीक्षा करने की प्रक्रिया का समर्थन किया, जबकि कुछ ने सदियों से चली आ रही सैन्य रीति-रिवाजों और परंपराओं को बदलने के लिए किसी भी जल्दबाजी भरे कदम पर आपत्ति जताई.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने up24x7news.com को कुछ ऐसे ही रिवाजों का उदाहरण देते हुए बताया कि सैन्य अंत्येष्टि में तोप बग्गी के इस्तेमाल का अब कोई मतलब नहीं है. अधिकारी ने कहा, ‘यह पूर्व औपनिवेशिक परंपराओं का अवशेष है और बेहतर होगा कि इसे खत्म कर दिया जाए.’ इसके साथ ही वह बताते हैं कि इस तरह की अधिकांश परंपराओं को अतीत में दूर कर दिया गया है, हालांकि कुछ का अब भी तीनों सेनाओं में पालन किया जा रहा है.
एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि औपनिवेशिक युग के अधिकांश रीति-रिवाजों और परंपराओं को सेना पहले ही छोड़ चुकी है. अधिकारी ने कहा, ‘भारतीय सशस्त्र बलों की ‘भारतीयकरण प्रक्रिया’ के हिस्से के रूप में कम समय सीमा में एक साथ बहुत सारे बदलाव किए जा रहे हैं, यह एक अच्छा विचार नहीं हो सकता है.’
इस साल की शुरुआत में, 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट समारोह में 1950 के बाद पहली बार पारंपरिक गीत ‘एबाइड विद मी’ को हटाकर इसे हिंदी देशभक्ति गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ से बदल दिया गया था.
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Tags: Indian armyFIRST PUBLISHED : September 20, 2022, 17:55 IST