आफ्टर मी फोल्डर में शहीद अंशुमान ने बता दिया था मां और पत्नी का पूरा हक
आफ्टर मी फोल्डर में शहीद अंशुमान ने बता दिया था मां और पत्नी का पूरा हक
कैप्टन अंशुमान सिंह के परिवार ने आरोप लगाया कि उनकी बहू स्मृति सिंह कीर्ति चक्र और सबकुछ लेकर चली गई हैं. इसके बाद से ऐसा महसूस होने लगा कि क्या किसी सैनिक के शहीद होने के बाद उनके माता-पिता को कोई मदद नहीं मिलती? क्या शहीद सैनिक की पत्नी को ही सारी आर्थिक मदद मिलती है? जानें सेना के सारे नियम...
कैप्टन अंशुमान सिंह को सियाचिन में वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया. ये सम्मान लेने के लिए शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह की माता मंजू सिंह और उनकी पत्नी स्मृति सिंह दोनों साथ गए. कीर्ति चक्र मिलने के बाद स्मृति सिंह का इंटरव्यू आया, जिसने सभी को भावुक और अंदर से झकझोड़ कर रख दिया, लेकिन उसके कुछ दिन बाद फिर से स्मृति सिंह चर्चा में आ गईं और उसकी वजह थी कैप्टन अंशुमान सिंह के परिवार का इंटरव्यू, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी बहू कीर्ति चक्र और सबकुछ लेकर चली गई हैं. इसमें वह सरकार से मांग कर रहे हैं कि NOK (नेक्स्ट ऑफ किन) के नियमों में बदलाव किया जाए.
इसके बाद से ऐसा महसूस होने लगा कि क्या किसी सैनिक के शहीद होने के बाद उनके माता-पिता को कोई मदद नहीं मिलती? क्या शहीद सैनिक की पत्नी को ही सारी आर्थिक मदद मिलती है? लेकिन ऐसा नहीं है… अगर सेना के नियमों की बात करें तो इससे साफ हो जाता है कि जो भी सैनिक या अफसर सेना में शामिल होता है तो उसे विल यानी कि वसीयत करनी होती है और उसमें सैनिक खुद तय करता है कि उसका नॉमिनी कौन होगा और अगर वह शहीद हो जाता है तो बीमा की रकम किसे और कितनी मिलेगी.
शहीद की पत्नी और मां को क्या मिला?
शहीद अंशुमान के मामले में भी ऐसा ही हुआ. सेना से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, 1 करोड AGIF यानी कि आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड के 50-50 लाख रुपये उनकी मां और पत्नी को बराबर मिला है. इसके साथ ही DSOPF डिफ़ेंस सर्विस ऑफ़िसर प्रोविडेंट फंड (जो सैनिक जमा करता है) वो पत्नी को मिल गया. वहीं इस बात की जानकारी भी आ रही है कि राज्य सरकार की तरफ से दिए गए 50 लाख रुपये में से 15 लाख उनकी मां को और 35 लाख रुपये पत्नी को मिले हैं. इसके अलावा पत्नी को ऑर्डेनरी पेंशन मिलना शुरू हो गया. वहीं बैटल कैजुअल्टी के मामले में पहले कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी होती है और जांच पूरी हो जाने के बाद लिब्रेलाइज पैशन (पूरी लास्ट ड्रान सैलेरी) मिलना शुरू होगी.
क्या है सेना का ‘आफ्टर मी फ़ोल्डर’?
जब सेना में कोई भी अफसर या जवान भर्ती होता है तो उन्हें एडजुटैंट जनरल ब्रांच की तरफ से एक बुकलेट दिया जाता है. उसके उपर लिखा होता है आफ्टर मी फ़ोल्डर यानी कि अगर सेना के जवान या अफ़सर शहीद हो जाता है तो उसके बाद उसे मिलने वाली राशि, पेंशन और बाकी सुविधाएं परिवार के किन सदस्यों को कैसे मिलेगी. इस फार्म के पहले पन्ने पर फ़ॉर्म भरने की जानकारी होती है मसलन निजी जानकारी, परिवार के सदस्यों की जानकारी और डिपेंडेंट डीटेल…
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इसके अलावा किसी सैनिक की मृत्यु पर तत्काल कार्रवाई, किसी की मृत्यु पर अधिकार और व्यक्तिगत वित्तीय दस्तावेज़ और जानकारी के फ़ॉर्मेट होते हैं, जिन्हें भरना ज़रूरी होता है. इसमें NOK यानी नेक्स्ट ऑफ किन की भी पूरी जानकारी देनी होती है.
NOK क्या होता है और उसके अधिकार क्या हैं?
NOK यानी नेक्स्ट ऑफ किन का अर्थ सैनिक के सबसे करीबी रिश्तेदार से होता है… शादी से पहले उनके माता या पिता में से कोई एक NOK हो सकता है, लेकिन शादी होने के बाद उनकी पत्नी ही एनओके होती हैं. अगर किसी सैनिक या अफ़सर की मौत किसी अन्य कारण से मौत हो जाती है या ड्यूटी के दौरान या किसी ऑप्रेशन में शहीद हो जाता है तो उस हालत में अलग-अलग आर्थिक मदद देने का प्रावधान होता है.
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सभी सैनिकों को अपनी विल यानी कि वसीयत बनानी होती है और इसमें पत्नी, माता, पिता या किसी रिश्तेदार को परसेंटेज के हिसाब से नॉमिनी बनाया जा सकता है और शहीद होने के बाद या किसी अन्य कारण से मौत होने के बाद विल के मुताबिक़ सैनिक के जो इंश्योरेंस की राशि, पीएफ, एक्स ग्रेशिया और ग्रेच्युटी होती है, उसके लिए सैनिक जिसे चाहें उसे नॉमिनी बना सकते है. उस विल की पूरी डिटेल सेना के पास होती है. सैनिक ने जिसे नॉमिनी बनाया है और जितने पर्सेंट का बनाया है उसे यह मिलेगा. चाहे वह माता-पिता हो, पत्नी हो या फिर बच्चे. साथ ही डिपेंडेंड पैरंट्स को मेडिकल फैसिलिटी मिलती रहती है और अगर किसी सैनिक ने अपनी वसीयत में परिवार के किसी सदस्य का नाम ना लिखा होतो सारा पैसा सिर्फ उसके NOK को मिलता है.
तीन तरह की पेंशन का प्रावधान
सेना में सैनिकों के हताहत होने की वजहों के चलते पेंशन भी तीन अलग-अलग तरह की होती है. पहला है ओर्डिनरी फैमिली पेंशन, जो NOK को तब मिलता है जब किसी बीमारी या सामान्य स्थिति में सैनिक की मौत हो जाती है. इसमें सैनिकों या अफ़सर की आखिरी सैलरी का 30 पर्सेंट पैसा एनओके को मिलता है.
दूसरी पेंशन होती है स्पेशल फैमिली पेंशन… ये तब लागू होता है जब सैनिक की ड्यूटी के दौरान या ड्यूटी की वजह से जान गवाता है. इसमें दुर्घटना भी शामिल है. इस सूरत में एनओसी को आखिरी सैलरी का 60 पर्सेंट पैसा मिलता है. तीसरी पेंशन होती है लिबरलाइज्ड फैमिली पेंशन… अगर सैनिक की मौत किसी युद्ध या संघर्ष में होती है तो उसे बैटल कैजुवल्टी कहा जाता है. ऐसी सूरत में एनओके को आखिरी तनख़्वाह का पूरा 100 फीसदी पैसा पेंशन के तौर दिया जाता है.
शादी से पहले मां-बाप कोई भी एक एनओके हो और शादी के बाद पेंशन की हकदार पत्नी ही होती हैं. इसके साथ ही अगर कोई पुरस्कार मिलता है तो वो भी एनओके को ही जाता है और इसके साथ मिलने वाली राशि भी एनओके के पास ही जाती है.
पत्नी की दूसरी शादी करने पर बदल जाता है नियम
वहीं सैनिक या अफसर की मौत के बाद उनकी पत्नी अगर दूसरी शादी कर ले तो पेंशन का अलग नीयम है. मसलन सामान्य फ़ैमिली पेंशन तुरंत बंद हो जाती है चाहे उसके पहले पति से बच्चे हों या ना हो… तो वहीं अगर पत्नी को स्पेशल फैमिली पेंशन मिल रही है तो वो शादी के बाद भी मिलती रहेगी अगर पत्नी बच्चों की ज़िम्मेदारी उठा रही होती हैं तो उसे आखिरी तनख़्वाह का 60 फ़ीसदी मिलता रहता है और अगर बच्चों की ज़िम्मेदारी छोड़ देती है तो सैलरी का जो 60 फीसदी पेंशन में मिल रही होती है उसका 30 फीसदी पत्नी को और 30 पर्सेंट बच्चों या उनके गार्जियन को मिलता है. वहीं अगर पत्नी को लिबरलाइज्ड फैमिली पेंशन मिल रही है तो दूसरी शादी के बाद भी वो जारी रहती है, अगर वह बच्चे की ज़िम्मेदारी नहीं उठा रही हो तो सामान्य पैंशन जितना पैसा यानी कि आखिरी सैलरी का 30 फीसदी जारी रहता है 70 पर्सेंट बच्चों को मिलता है.
Tags: Indian army, Pension schemeFIRST PUBLISHED : July 13, 2024, 12:18 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed