असली शिवसेना कौन 5th फेज में जनता दरबार में लड़ाई उद्धव-शिंदे ने जान लगाई
असली शिवसेना कौन 5th फेज में जनता दरबार में लड़ाई उद्धव-शिंदे ने जान लगाई
महाराष्ट्र में 5वां चरण लोकसभा की दृष्टि से इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये असली शिवसेना का भविष्य तय करने वाला चरण है. कानूनी लड़ाई में तो शिवसेना का सिंबल और पार्टी पर अधिकार एकनाथ शिंदे के पास चला गया था, लेकिन क्या जनता भी ऐसा ही मानती है.
लोकसभा चुनाव पांचवे चरण में पहुंच गया है. 543 में से 379 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं. महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 35 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. बची हुई 13 सीटों पर 20 मई को वोट डाले जाएंगे. जिन सीटों पर वोट डाले जाएंगे उसमें 6 बीजेपी के पास और 7 शिवसेना के पास हैं. हालांकि, शिवसेना के टूटने के बाद परिस्थितियां दूसरी हैं और वोटबैंक किधर है, इसकी भी एक अपनी लड़ाई है.
महाराष्ट्र में 5वां चरण लोकसभा की दृष्टि से इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये शिवसेना के दोनों गुटों का भविष्य तय करने वाला चरण है. कानूनी लड़ाई में तो शिवसेना का सिंबल और पार्टी पर अधिकार एकनाथ शिंदे के पास चला गया था, लेकिन क्या जनता भी ऐसा ही मानती है. इसका निर्णय 5वें चरण के रिजल्ट से ही होने वाला है. यही बेल्ट तय करेगा कि असली और नकली शिवसेना कौन है.
MMR रीजन में चुनाव
5वें चरण में जो सीटें हैं, उसे MMR रिजन कहते हैं. इसमें मुंबई और मुंबई से लगी हुई सीटें डिंडोरी, नासिक और धुले भी आ जाती हैं. शिवसेना का कोर वोटर यहीं है. इसी वजह से पिछली बार शिवसेना ने इस रीजन में बीजेपी से एक सीट ज्यादा जीती थी. उद्धव ठाकरे ने यहां पूरी ताकत लगा दी थी. अब शिवसेना के टूटने के बाद स्थितियां बदल गई हैं. लोगों में सहानुभूति और गुस्सा दोनों है. अब ये सहानुभूति किसके साथ जाती और गुस्सा किसपर उतरता है ये तो काउंटिंग में ही पता चलेगा.
क्या उद्धव ठाकरे बचा पाएंगे विरासत?
क्या इस रीजन में उद्धव ठाकरे अपनी पुरानी विरासत को बचा पाएंगे? क्या बाल ठाकरे वाली अहमियत उद्धव ठाकरे के पास है? क्या जो सहानुभूति उद्धव बटोरने की कोशिश कर रहे हैं, वो वोट में ट्रांसलेट हो पाएगा? या शिंदे अपनी जिस जमीनी पकड़ की बात करते हैं, वो नई कहानी लिखने वाली है. शिंदे कानूनी लड़ाई के बाद जनता का भी समर्थन हासिल कर पाते हैं या नहीं, ये भी इस रीजन के रिजल्ट से तय हो जाएगा. क्योंकि शिंदे के बेटे भी इस चरण में आने वाली कल्याण सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. शिंदे का इलाका ठाणे भी इसी रीजन में हैं. बता दें कि ठाणे क्षेत्रफल की दृष्टि से देश की एक सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. भिवंडी से कपिल पाटिल चुनाव लड़ रहे हैं. उन्हें भी शिंदे का खास माना जाता है. ऐसे में शिंदे के अस्तित्व की ये लड़ाई है.
एकनाथ शिंदे मुंबई के तीन सांसद तोड़ कर अपने साथ ले गए थे. इस वजह से उन्हें यहां से उम्मीदें है. वहीं दूसरी तरफ उद्धव को लगता है कि बीजेपी काफी कोशिश करके भी पिछली बार बीएमसी के चुनाव में ये क्षेत्र नहीं जीत पाई थी और शिवसेना से ही मेयर बना था. ऐसे में इस इलाके का समर्थन इस बार भी उन्हें मिलेगा. यहां माइनॉरिटी और दलित वोटों की भी संख्या ठीक-ठाक है. इंडिया गठबंधन ने संविधान वाला मुद्दा उठाया है. ऐसे में ये वोट भी उद्धव को अपनी तरफ ट्रांसलेट होने की उम्मीद है.
आदिवासी किधर?
इसी रीजन में नासिक, भिवंडी और पालघर भी आते हैं. यहां आदिवासियों की संख्या ठीकठाक है. आमतौर पर जिधर उनका झुकाव होता है, उसका पड़ला भारी होता है. पालघर तो पूरा ही आदिवासी क्षेत्र में आता है. हालांकि, आदिवासियों ने सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया था. लेकिन, बाद में बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग से इसे मैनेज करने की कोशिश की थी. अब ये कहां तक मैनेज हुआ है और वोट किधर ट्रांसलेट होता है, ये तो काउंटिंग में ही पता चलेगा. इस क्षेत्र में दलित, मुस्लिम और सामान्य मराठियों की भी संख्या ठीकठाक है.
उत्तर भारतीय वोटबैंक
इस क्षेत्र में उत्तर भारतीय वोटबैंक भी ठीकठाक है. पूरे MMR रीजन में 30 से 35% तक और कहीं-कहीं 40 % तक उत्तर भारतीय वोटबैंक है. ऐसे में उत्तर भारतीयों का वोटबैंक भी इस चुनाव में निर्णायक होगा. कई समीकरण बता रहे हैं कि कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कृपाशंकर सिंह को यूपी की जौनपुर से टिकट देने का निर्णय भी इन्हीं उत्तर भारतीयों को ध्यान में रखकर लिया गया है. हालांकि, राज ठाकरे का बीजेपी के साथ जाना, यहां बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. लेकिन, अभी भी इसपर कोई बड़ा रिएक्शन देखने को नहीं मिला है.
राज ठाकरे क्या करेंगे
राज ठाकरे ने हाल ही में अमित शाह और नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. राज ठाकरे के आ जाने से मराठा वोटबैंक पर बीजेपी असर डाल सकती है. राज ठाकरे लगातार मराठी अस्मिता की आवाज उठाते रहे हैं. हालांकि, वो दोधारी तलवार हैं. बीजेपी को ये भी डर होगा कि उनके आने से उत्तर भारतीयों का वोट न घसक जाए.
कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस की तरफ से इस रीजन में बार्गेनिंग वाले लोग नहीं बचे थे. अशोक चव्हाण के बीजेपी में जाने के बाद कोई उस फेस का नेता इस रीजन में नहीं बचा था. इसलिए कांग्रेस को ज्यादा सीटें भी नहीं मिलीं. साउथ सेंट्रल की धारावी की सीट जहां से वो मजबूत दिखती थी, वो भी उसे नहीं मिली है. नॉर्थ सेंट्रल में बांद्रा की सीट उसे जरूरी मिली है, लेकिन वहां उसकी लड़ाई बीजेपी के उज्ज्वल निकम से है. कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम और दलित के आने से फर्क पड़ा है और इसमें शिवसेना का मराठी वोटर आ गया, तो उसकी स्थिति ठीक हो सकती है.
बीजेपी का मजबूत पक्ष
बीजेपी का सबसे मजबूत पक्ष नरेंद्र मोदी ही हैं. ये चुनाव भी उन्हीं के चेहरे पर लड़ा जा रहा है. बीजेपी के कई बड़े नेता मुंबई में डेरा डाले हैं. बीएल संतोष, विनोद तावड़े लगातार लगे हुए हैं. कई मुख्यमंत्री भी वहां मोर्चा संभाले हुए हैं. बीजेपी को लगता है कि उनकी जो सीटें हैं, वहां वे बेहतर कर जाएं. लेकिन, सहयोगियों की सीटें अच्छा नहीं करेंगी तो ओवर ऑल टैली पर असर पड़ेगा. इसलिए बीजेपी अपनी सीटों के साथ-साथ सहयोगियों की सीटों पर भी मेहनत कर रही है. मोदी की अपनी फैन फॉलोइंग है. राम मंदिर का इंपैक्ट है. पीएम वहां लगातार सक्रिय भी हैं. रोड शो कर रहे हैं. सुन्नी और बोहरा मुस्लिम को भी बीजेपी अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है.
छुट्टी का असर वोटिंग पर पड़ेगा?
इस रीजन में उत्तर भारतीयों की संख्या ठीकठाक है. इस बार चुनाव थोड़ा देर से हो रहा है. ऐसे में एक डर ये है कि उत्तर भारतीय गर्मी की छुट्टियों में घर न लौट गए हों. इससे वोटिंग पर्सेंट पर असर पड़ सकता है. दूसरी तरफ सोमवार को वोटिंग है. शनिवार और रविवार को छुट्टी होती ही है. सोमवार को वोटिंग की वजह से छुट्टी है. ऐसे में तीन दिन की छुट्टी पर लोग बाहर न चले जाएं. इसका भी असर वोटिंग पर पड़ सकता है.
Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : May 16, 2024, 17:05 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed