कारगिल विजय दिवस 2024: जब हिंदुस्तानी फौजी बम बनके बरसा पाकिस्तानियों पर
कारगिल विजय दिवस 2024: जब हिंदुस्तानी फौजी बम बनके बरसा पाकिस्तानियों पर
Kargil Vijay Diwas: 10 मई 1999 को 11 गोरखा राइफल की एक टुकड़ी के साथ सुनील जंग कारगिल पहुंचे. सूचना थी कि कुछ घुसपैठिये भारतीय सीमा के अंदर घुस आए हैं. तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते रहे. ऐसे वीर शहीद सुनील जंग की कहानी...
लखनऊः कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को मनाया जाता है. यही वो तारीख है जब हिन्दुस्तानी फौज ने पाकिस्तानियों को खदेड़ कर दुर्गम पहाड़ियों पर विजय पताका लहराई थी. देश पर मर मिटने वालों में एक नाम सुनील जंग का भी है. दो बहनों के इकलौते भाई और घर के चिराग सुनील, कारगिल में शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के शहीद हैं. कारगिल युद्ध में सुनील जंग ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए थे. उन्होंने दुश्मन पर एक एक कर 25 बम फोड़े थे. सुनील के साहस ने दुश्मनों को चित कर दिया था.
राइफलमैन सुनील जंग की 11 गोरखा रेजीमेंट को मई 1999 में कारगिल सेक्टर पहुंचने का आदेश मिला था. उस वक्त सुनील अपने घर आए थे और उन्हें अचानक ही वापस लौटना पड़ गया. 10 मई 1999 को 11 गोरखा राइफल की एक टुकड़ी के साथ वे कारगिल पहुंचे. सूचना थी कि कुछ घुसपैठिये भारतीय सीमा के अंदर घुस आए हैं. तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते रहे. 15 मई को एक भीषण गोलीबारी में कुछ गोलियां उनके सीने में जा लगीं. इस पर भी सुनील के हाथ से बंदूक नहीं छूटी और वह लगातार दुश्मनों पर प्रहार करते रहे. अचानक एक गोली उनके सीने में आग लगी और वे बुरी तरह जख्मी हो गए. उन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.
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8 साल की उम्र में खुद को देश का सिपाही मान लेने वाले सुनील ने एक फैंसी ड्रेस कॉम्पीटीशन के दौरान ही अपनी देशभक्ति का परिचय दे दिया था. उन्होंने बचपन में ही मंच से ऐलान कर दिया था कि देश की रक्षा के लिए वह अपने खून का एक-एक कतरा बहा देंगे. जो उन्होंने समय आने पर किया भी. फैंसी ड्रेस कंपटीशन के लिए मां ने सुनील को फौजी ड्रेस के साथ एक प्लास्टिक की बंदूक भी दिलाई. इसके बाद प्रतियोगिता के दिन सुनील एक के बाद एक कई देशभक्ति गीतों पर अपना शानदार प्रदर्शन करता रहा.
सुनील जब 16 साल के हुए तो एक दिन घरवालों को बिना बताए ही सेना में भर्ती हो गए. घर आकर सुनील ने बताया कि मां मैं भी पापा और दादा की तरह सेना में भर्ती हो गया हूं. मुझे उनकी ही 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट में तैनाती मिली है. अब मेरा बचपन का वर्दी पहनने का सपना पूरा हो गया. मां बीना महत बताती हैं कि कारगिल में जाने से पहले सुनील घर आया था. कुछ ही दिन रुका था कि यूनिट से बुलावा आ गया.
राइफलमैन सुनील जंग को 10 मई 1999 को उसकी 1/11 गोरखा राइफल्स की एक टुकड़ी के साथ कारगिल सेक्टर पहुंचने के आदेश हुए. सूचना इतनी ही मिली थी कि कुछ घुसपैठिए भारतीय सीमा के भीतर गुपचुप तरीके से प्रवेश कर गए हैं. तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते रहे. वह लगातार अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ते रहे कि 15 मई को एक भीषण गोलीबारी में कुछ गोलियां उनके सीने में जा लगीं. इस पर भी सुनील के हाथ से बंदूक नहीं छूटी और वह लगातार दुश्मनों पर प्रहार करते रहे. तब ही ऊंचाई पर बैठे दुश्मन की एक गोली सुनील के चेहरे पर लगी और सिर के पिछले हिस्से से बाहर निकल गई. सुनील वहीं पर शहीद हो गए.
Tags: Lucknow news, UP news, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : July 24, 2024, 19:41 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed