आखिरकार क्यों बंद करने पड़े हिमाचल के 18 सरकारी होटल
आखिरकार क्यों बंद करने पड़े हिमाचल के 18 सरकारी होटल
Himachal High Court Order: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला, मनाली और धर्मशाला जैसी प्राइम लोकेशन पर चल रहे सरकारी होटलों को बंद करने के आदेश दिए हैं. सरकार इन होटलों को चलाने में नाकाम साबित हो रही थी.
शिमला. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दो दिन में दो अहम फैसले सुनाए. इन फैसलों की वजह से सुक्खू सरकार लोगों के निशाने पर आ गई. पहले कोर्ट ने हाईड्रो प्रोजेक्ट कंपनी के 64 करोड़ रुपये 7 फीसदी ब्याज सहित ना लौटाने पर दिल्ली में हिमाचल भवन कुर्क करने के आदेश दिए, दूसरा अब हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एचपीटीडीसी) के घाटे में चल रहे 18 होटलों को बंद करने के आदेश दिए. इन होटलों में साल भर में 40 फीसदी ही ऑक्युपेंसी रही. अहम बात है कि हाईकोर्ट ने यह फैसला रिटायर कर्मचारियों की ओर से दायर याचिका पर सुनाया. रोचक बात यह कि कोर्ट ने सोलन के चायल में प्रसिद्ध होटल चायल पैलेस को भी बंद करने के आदेश दिए हैं. यह होटल साल 1891 में बना था.
दरअसल, एचपीटीडीसी के सेवानिवृत्त पेंशनरों को बीते कई साल से एरियर सहित अन्य वित्तीय लाभ देने में सरकार नाकाम रही. इस पर ये पूर्व कर्मचारी हिमाचल हाईकोर्ट चले गए. अब मंगलवार शाम को न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि निगम को बार-बार आगाह करने पर भी सेवानिवृत्त पेंशनरों को ग्रेच्युटी, लीव इन कैशमेंट, कम्यूटेशन और अन्य वित्तीय लाभ नहीं दिए गए.
इसके अलावा, न्यायधीश अजय मोहन गोयल ने पर्यटन निगम को सेवानिवृत्त कर्मचारियों, चतुर्थ श्रेणी और मृतक कर्मचारियों की सूची अगली सुनवाई को पेश करने को कहा, ताकि बकाया राशि निगम के सेवानिवृत्त कर्मचारियों और मृतक कर्मचारियों के परिवारों के सदस्यों के पक्ष में अदा की जा सके. हाइकोर्ट ने 12 नवंबर के आदेश में निगम की ओर से संचालित पिछले तीन वर्षों में प्रत्येक इकाई की अर्जित आय की सूची भी न्यायालय में पेश करने को कहा था. सभी होटल के कमरों और रेस्तरां इकाइयों का विवरण न्यायालय को प्रस्तुत करने के भी आदेश दिए थे. हाईकोर्ट ने कहा कि यह सरकारी संपतियां जनता पर बोझ हैं.
कोर्ट ने जताई नाराजगी
इससे पहले, हाईकोर्ट ने 17 सितंबर के आदेशों में पर्यटन निगम को घाटे से उबरने के लिए कुछ सख्त नियम बनाने को कहा था. लेकिन इस बारे में सरकार कुछ भी नहीं कर पाई और कोर्ट को फैसला देना पड़ा. कोर्ट ने साथ ही कहा था कि अगर निगम पूरे प्रदेश में अपने होटलों को चलाने की स्थिति में नहीं है तो वह इनको पार्टनरशिप या लीज पर चलाए. इससे जहां प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, वहीं निगम की आय को भी बढ़ाया जाएगा.
40 फीसदी से भी कम ऑक्युपेंसी थी
अदालत ने अपने आदेश में साफ किया है कि इन निर्देशों की अनुपालना करना पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी. अदालत ने कहा कि इन होटलों को साफ-सुधरा रखने के लिए जो स्टाफ जरूरी हो वही इनमें रखा जाए और बाकी स्टाफ को अन्य होटलों को स्थानातंरित कर दिया जाए,ताकि जहां स्टाफ की कमी है वहां पर स्टाफ की भरपाई हो पाए. 25 नवंबर तक सरकार को इस सबंध में फैसला लेना होगा. गौरतलब है कि सोलन के होटल चायल में 50 कमरें हैं और बीते 3 साल में इस होटल में सालाना ऑक्युपैंसी 40 फीसदी से भी कम रही है.
कोर्ट ने इन्हें सफेद हाथी बताया
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि 17 सितंबर को सरकार को इस मामले में ठोस योजना बनाने के लिए कहा गया था, लेकिन सरकार की तरफ से इस मामले में जरा भी कदम नहीं उठाया गया. इसलिए पर्यटन विभाग की तरफ से जनता के पैसे को ऐसे बर्बाद होने नहीं दिया जा सकता है. कोर्ट ने अगली सुनवाई में विभाग की तरफ से एफिडेविड दाखिल करने के लिए कहा है.
Tags: High Court Comment, Shimla Hotel, Sukhvinder Singh SukhuFIRST PUBLISHED : November 20, 2024, 08:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed