इत्र बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं ये बर्तन इस वजह से है अलग पहचान

Perfume in Kannauj: कन्नौज के इत्र की खुशबू का आज पूरे देश में डंका बज रहा है. इत्र की खुशबू की वजह से ही कन्नौज की पूरे देश में एक अलग पहचान बनी है. यहां के इत्र की खुशबू विदेश में भी महक रही है.

इत्र बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं ये बर्तन इस वजह से है अलग पहचान
अंजली शर्मा/कन्नौज: भारत के साथ-साथ आज विश्व में इत्र नगरी कन्नौज के इत्र की खुशबू का डंका बज रहा है. देश का एक मात्र फ्रेगरेंस रिसर्च सेंटर भी यहीं है. ऐसे में कन्नौज में सबसे शुद्ध इत्र की पहचान भी यहीं की जाती है, लेकिन क्या कोई जानता है कि इस इत्र को कैसे बनाया जाता है. इसके बनाने का क्या तरीका है, किस तरह इत्र बनाने की प्रक्रिया होती है. इत्र बनाने में कड़ी मेहनत के साथ साथ मानकों का भी विशेष ध्यान देना होता है. जहां खास किस्म के बर्तनों का प्रयोग होता है. आइए जानते हैं कैसे बनता है इत्र. कब से बन रहा इत्र आज कोई भी यह सही से नहीं बता सकता कि यहां कब से इत्र बन रहा है, लेकिन एक अंदाज लगाया जाता है कि करीब 5 हजार साल पहले से यहां इत्र बन रहा है. कई कहानियां भी इनके पीछे प्रचलित हैं. कोई मानता है कि ऋषि मुनियों द्वारा जो हवन सामग्री और पूजन पाठ में फूलों का प्रयोग होता था. उस दौरान ही इत्र की शुरुवात हुई कोई. कन्नौज में तो मानता है कि करीब 1577 में मुगल काल के दौरान नूरजहां के नहाने के तालाब में फूलों का प्रयोग होता तभी अचानक गुलाब की भीगी पंखुड़ियों पर कुछ तरल पदार्थ देखा गया और कन्नौज के लोगों ने उस पर शोध किया, जिससे सबसे पहले गुलाब का इत्र बनाया गया. जानें कैसे बनता है इत्र बताया जाता है कि हजारों साल पहले प्राचीन इत्र बनाने की पद्धति को डेग-भभका कहा जाता है. यह तांबे के बर्तनों से बना होता है. यहां सबसे पहले आंच के स्रोत पर बड़े से डेग को रखा जाता है. जिसमे मानक के अनुसार फूल डाला जाता है. जिसके बाद उसमें पानी का भी प्रयोग किया जाता है और फिर डेग के ढक्कन को चिकनी मिट्टी के लेप से मजबूती से बंद किया जाता है. जिससे इत्र बनते समय भाप का रिसाव न हो. बता दें कि इसके बाद उस पर एक चोंगा लगाते हैं, जिससे भाप के रूप में रिस कर इत्र नीचे की तरफ भभके में जाता है. सबसे मुख्य काम यही होता है कि यह भभके को ठंडे पानी की नांद में रखा जाता है. जिसमे इत्र भाप रूप में बनकर आता है. भभका जिस पानी मे रहता है. उसका विशेष ध्यान देने वाला होता है. पानी गर्म होने पर उसको तुरंत बदला जाता है. अगर इसमे जरा सी भी गलती हुई तो इत्र अच्छी क्वालिटी का नहीं होगा. भभके में आने वाली फूलों व अन्य इत्र बनाने वाली चीजों की भाप इत्र के रूप में तैयार हो जाती है. जानें क्या बोले इत्र के कारोबारी इत्र के कारोबारी निशिष तिवारी बताते हैं कि कन्नौज में हजारों साल से इत्र बनता चला रहा है. हम लोग अति प्राचीन डेग-भभका पद्धति से इत्र बनाते हैं. इत्र बनाते समय बहुत सारी सावधानियां बरतनी पड़ती है. जरा सी भी लापरवाही इत्र को खराब कर देती है. इत्र बनाने वाले बर्तन को डेग-भभका कहा जाता है, जो तांबे का होता है. डेग में मानक के अनुसार फूलों की मात्रा डाली जाती है. जिसके बाद मिट्टी के लेप से उसको बंद कर दिया जाता है. जहां एक तांबे की छड़, जिसको हम लोग चोंगा कहते हैं, उसमें रीस कर भाप के माध्यम इत्र भभके में आता है. जिसके बाद हम लोग इसको इत्र का रूप देते हैं. Tags: Kannauj news, Local18FIRST PUBLISHED : July 8, 2024, 16:21 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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