कन्नौज का इत्र कारोबार आज समस्याओं से घिरावक्त के साथ बदल गया व्यापार
कन्नौज का इत्र कारोबार आज समस्याओं से घिरावक्त के साथ बदल गया व्यापार
जैसे-जैसे वक्त बदला और आधुनिकता का दौर आया यह इत्रदान कारोबार पीछे होता चला गया. इसकी जगह सहारनपुर वाले बोर्ड के इत्रदान ने ले ली, लेकिन आज भी यह इत्रदान उन सभी बोर्ड वाले इतरदानों से बहुत बेहतर है जो एक बार बनने पर सालों तक जस का तस बना रहता है.
कन्नौज: कन्नौज अपने इत्र के व्यापार के लिए देशभर में जाना जाता है. यहां के सैकड़ों साल पुराने इत्र की खुशबू को उसकी सुंदरता बढ़ाने का काम कन्नौज में बने इत्रदान बखूबी कर रहे थे. वहीं सन 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कन्नौज के इत्रदान कारोबारी कैलाश नाथ शर्मा के इत्रदान की कला को देखकर उनकी सराहना की, साथ ही उनको नगद पुरस्कार के साथ सर्टिफिकेट और एक घड़ी दी थी. उस वक्त यह इत्रदान कारोबार बहुत तेजी से आगे बढ़ा था. लेकिन वक्त बदला और आजयह इत्रदान का कारोबार बदहाली के कगार पर है. उनके परिवार इनको कुछ सुविधा का इंतजार है की यह कन्नौज की इस विरासत को आगे बढ़ा सके, आर्थिक मदद के साथ सरकारी मदद की भी आस लगा रहे.
बता दें कि यह इत्रदान कारोबार का काम करीब 200 साल पुराना है. इत्रदान में शीशम की लकड़ी का प्रयोग होता है तो वही एक विशेष प्रकार के तार से इस पर डिजाइन बनाई जाती है. यह पूरा काम हाथों से होता है और बड़ी बारीकी से किया जाता है. युवाओं ने कुछ समय तक तो इत्रदान का काम किया. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बदला और आधुनिकता का दौर आया यह इत्रदान कारोबार पीछे होता चला गया. इसकी जगह सहारनपुर वाले बोर्ड के इत्रदान ने ले ली, लेकिन आज भी यह इत्रदान उन सभी बोर्ड वाले इतरदानों से बहुत बेहतर है जो एक बार बनने पर सालों तक जस का तस बना रहता है.
प्रचार प्रसार की कमी
कन्नौज का इत्रदान कारोबार बहुत महत्वपूर्ण है इसकी खूबसूरती देखने में ही आकर्षित है लेकिन प्रचार प्रसार के अभाव में यह दिन प्रतिदिन अब विलुप्त होने की कगार पर आ गया है. महज कुछ लोग ही इस इत्रदान का कारोबार कर रहे हैं जिनमें अमरनाथ शर्मा जो की कैलाश नाथ शर्मा के बेटे हैं. उनका परिवार ही इस कारोबार को धीरे-धीरे चल रहा है. जिस तरह से इत्र को प्रचार प्रसार मिला वैसे ही अगर इत्रदान को अच्छा माहौल और प्रचार प्रसार मिलता तो यह कारोबार भी इत्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ता.
कैसे बच सकती विरासत
इस इत्रदान को प्रचार प्रसार के साथ-साथ सरकारी सुविधा की भी बहुत जरूरत है. यह इत्रदान कारोबारी करीब 80 साल से यहां पर यह काम कर रहे हैं. यह काम युवाओं को भी सीखा सकते हैं जिसके लिए इनको एक ट्रेनिंग स्कूल की जरूरत है, और इस इत्रदान का प्रचार प्रसार हो ताकि युवाओं का रुझान इसकी तरफ हो और इसको लोगों को सीखने का मन करें. वही इस वक्त शीशम की लकड़ी भी मिलना भी बहुत मुश्किल है. इसकी भी व्यवस्था अगर हो जाए तो इस इत्रदान कारोबार को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.
क्या बोले कारीगर
इत्र दान कारोबारी अमरनाथ शर्मा बताते हैं कि यह इत्रदान कारोबार को 1971 में उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बहुत सराहा था. हमारे पिता कैलाश नाथ शर्मा को इस इत्रदान की खूबसूरती को देखकर उन्होंने उनको सम्मानित किया था. ₹10,000 नगद एक एचएमटी की घड़ी और प्रमाण पत्र दिया था. उस वक्त तो यह कारोबार बहुत अच्छा चलता था लेकिन आने वाली पीढ़ी ने इस कारोबार को नहीं सीखा यह बहुत बारीकी का काम होता है. वही इसको प्रचार प्रसार और सरकारी सुविधाओं का भी साथ नहीं मिला. अगर इसका अच्छे से प्रचार प्रसार होता, ट्रेनिंग स्कूल खुलते जिसमे में हम लोग जाकर इसको सिखाते तो यह कन्नौज की विरासत आज खत्म होने की कगार पर नहीं आती, अगर सरकार साथ दे तो कन्नौज की यह विरासत आज भी बहुत आगे जा सकती है.
Tags: Kannauj news, Local18FIRST PUBLISHED : May 7, 2024, 11:05 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed