जम्मू-कश्मीर चुनाव: क्या अबकी बार सियासी जंग रहेगी दिलचस्प

जम्मू- कश्मीर में हाल में हुए चुनावों के आंकड़े दिखाते हैं कि राज्य में ऐसी सीटों की संख्या लगातार कम हुई हैं जहां कांटे की टक्कर रही है. 2014 में 50 विधान सभा सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिला तो बाद के लोकसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि विधानसभा क्षेत्रों में नजदीकी मुकाबले वाली सीटे घटी हैं.

जम्मू-कश्मीर चुनाव: क्या अबकी बार सियासी जंग रहेगी दिलचस्प
जम्मू-कश्मीर में बीते चुनाव में उम्मीदवारों की हार जीत का अंतर लगातार बढ़ा है. बहुत पुरानी बातें छोड़ कर अगर 2014 से देखा जाय तो ये अंतर लगातार बढ़ता हुआ दिखता है. इसके मायने जो भी निकाले जायं लेकिन ये हकीकत है. हार जीत के अंतर का ये ट्रेंड लोकसभा और विधान सभा दोनो चुनावों में एक ही तरह का दिखता है. अगर 2014 की बात की जाय तो लोकसभा चुनावों में बीजेपी को लद्दाख समेत जम्मू की तीनों सीटे हासिल हुईं थीं. जबकि कश्मीर की तीन सीटें पीडीपी के खाते में गईं थी. कुछ महीनों बाद विधान सभा के चुनाव हुए तो साफ बहुतमत तो किसी नहीं मिला. 28 सीटों के साथ पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई थी. उस वक्त राज्य में 87 सीटें थीं और बहुमत के लिए 44 सीटें चाहिए थीं. दूसरे स्थान पर बीजेपी थी और उसे पीडीपी से तीन कम 25 सीटें मिलीं. नेशनल कांफ्रेस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें हासिल हुईं. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के आंकड़ों के मुताबिक उस चुनाव में राज्य में कुल 50 सीटें ऐसी थीं जिनपर हार जीत का अंतर कुल पड़े वोटों की 10 फीसदी से कम की थी. इस चुनाव में 52 सीटें ऐसी रही जिन पर जीत हार के अंतर से ज्यादा वोट किसी तीसरे प्रत्याशी को मिले. साल 2014 में ऐसी सीटों की संख्या ठीक ठाक थी जहां सीट पर पड़े कुल वोटों के 10 फीसदी से ज्यादा अंतर से हार जीत का फैसला हुआ था. अगर पार्टीवार देखा जाय तो महबूबा मुफ्ती की पीडीपी की 18, नेशनल कांफ्रेस की 13, बीजेपी की 7, कांग्रेस की 6 और अन्य छोटे दलों या निर्दलियों की 6 सीटों पर हार जीत का अंतर 10 फीसदी से कम था. मतलब 50 सीटों पर लड़ाई कांटे की रही. इस तरह के कड़े मुकाबले वाली सीटों की संख्या 2019 में कम हो गई. इस साल के लोकसभा चुनाव जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे वाले कानून धारा 370 हटाने के कुछ महीने पहले ही हुए. इसमें बीजेपी और नेशनल कांफ्रेंस को 3-3 सीटें मिलीं. विधान सभावार इन नतीजों को देखने पर कम अंतर वाली सीटों की संख्या इस बार पिछले चुनाव की तालना में घट गईं. राज्य में ऐसी कुल सीटों की संख्या 50 से घट कर 20 हो जाती है, जिन पर हार जीत का अंतर 10 फीसदी से कम रहा. आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि नेशनल कांफ्रेस की 11कांग्रेस की 3, बीजेपी की 3 और 3 निर्दल प्रत्याशियों की जीत हार का अंतर कुल पड़े वोटों के 10 फीसदी के अंतर से कम था. इस चुनाव में आंकड़े बताते हैं कि कि कुल 22 सीटों पर हार जीत के अंतर से ज्यादा वोट तीसरे उम्मीदवार को मिले. इसके बाद 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जम्मू की दो सीटें हासिल हुई. नेशनल कांफ्रेंस को भी इस चुनाव में दो सीटें कश्मीर में मिलीं. घाटी की एक सीट अलगाववादी कहे जा रहे इंजीनियर राशिद को मिली. राशिद फिलहाल जेल में हैं. इन आंकड़ों को अगर विधानसभावार मान कर देखा जाय तो 18 सीटें ऐसी रही जहां जीत हार का फैसला सीट पर पड़े कुल वोटों के 10 फीसदी से कम रहा. यानी इन्ही सीटों पर कांटे की टक्कर मानी जा सकती है. पार्टीवार ऐसी सीटों की संख्या निकालने पर बीजेपी और नेशनल कांफ्रेंस को 5-5 सीटें और कांग्रेस कांग्रेस और पीडीपी की 3-3 सीटों पर कांटे की टक्कर रही. जबकि दो सीटों पर अन्य या निर्दल प्रत्याशियों ने कांटे की टक्कर दी. इस चुनाव में 15 ऐसी सीटें दिखती हैं जहां हार जीत के कुल अंतर से ज्यादा वोट तीसरे उम्मीदवार को मिले. Tags: Jammu kashmir election 2024, Jammu Kashmir PoliticsFIRST PUBLISHED : September 2, 2024, 14:01 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed