चांद पर पानी है या नहीं अगर हां तो किस रूप में-कितनी मात्रा में चल गया पता

ISRO News: चांद पर पानी है या नहीं, अगर है तो फिर किस रूप में और कितनी मात्रा में? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो सदियों से दुनिया के लिए रहस्य बने हुए हैं. मगर जैसे-जैसे चांद की ओर इंसान के कदम बढ़ रहे हैं, अब चंद्रमा के रहस्यों से पर्दा उठने लगा है.

चांद पर पानी है या नहीं अगर हां तो किस रूप में-कितनी मात्रा में चल गया पता
बेंगलुरु: चांद पर पानी है या नहीं, अगर है तो फिर किस रूप में और कितनी मात्रा में? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो सदियों से दुनिया के लिए रहस्य बने हुए हैं. मगर जैसे-जैसे चांद की ओर इंसान के कदम बढ़ रहे हैं, अब चंद्रमा के रहस्यों से पर्दा उठने लगा है. जी हां, चंद्रमा को लेकर एक नई जानकारी सामने आई है. एक नई स्टडी में पता चलहा है कि चंद्रमा के ध्रुवीय गड्ढों में बर्फ के रूप में पानी की अधिक मात्रा हो सकती है. इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने यह जानकारी दी. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक आधिकारिक बयान में बताया कि यह अध्ययन अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी)/इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर, दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला और आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के शोधकर्ताओं के सहयोग से किया गया. विज्ञप्ति के मुताबिक, हाल के अध्ययन से पता चलता है कि पहले कुछ मीटर में उपसतह बर्फ की मात्रा दोनों ध्रुवों की सतह पर मौजूद बर्फ की तुलना में लगभग पांच से आठ गुना अधिक है. अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि ऐसे में बर्फ का नमूना लेने या दोहन करने के लिए चंद्रमा पर खुदाई भविष्य के मिशन और दीर्घकालिक मानव उपस्थिति के लिए अहम होगी. विज्ञप्ति के मुताबिक, ‘इसके अलावा अध्ययन से यह भी पता चलता है कि उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी की मात्रा दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र की तुलना में दोगुनी है.’इसमें कहा गया कि इस बर्फ की उत्पत्ति के लिए अध्ययन इस परिकल्पना की पुष्टि करता है कि चंद्रमा के ध्रुवों में उपसतह जल बर्फ का प्राथमिक स्रोत इम्ब्रियन काल में ज्वालामुखी के दौरान निकलने वाली गैस है. इससे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने इसरो के आधिकारिक इंस्टाग्राम पेज के माध्यम से अंतरिक्ष में दिलचस्पी रखने वालों के साथ बातचीत करते हुए कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में निजी कंपनियां निश्चित रूप से क्षेत्र में अनुसंधान को गति देने में मदद करेंगी. एक निजी कंपनी स्पेसएक्स के कथित तौर पर अधिकांश देशों की तुलना में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अधिक योगदान देने पर टिप्पणी करते हुए सोमनाथ ने बीते दिनों को कहा कि निजी कंपनियों को रॉकेट इंजन बनाने के लिए प्रोत्साहित करने और स्पेसएक्स के मामले में इंसानों को लेकर अंतरिक्ष में जाने वाले रॉकेट की संभावना का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करने की अमेरिका की परंपरा को भारत द्वारा दोहराया जा सकता है. उन्होंने कहा कि ये कंपनियां प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने, लागत कम करने और अंतरिक्ष को अधिक सुलभ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. उन्होंने कहा कि भारत में निजी कंपनियों के लिए भी इस प्रकार की क्षमताएं विकसित करना संभव है. सोमनाथ ने हालांकि कहा कि यह तभी संभव है जब सरकार निजी इकाई का समर्थन करे. सोमनाथ ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, नासा के स्वामित्व वाली कुछ तकनीक को स्पेस एक्स में स्थानांतरित कर दिया गया है ताकि वे तेजी से विकास कर सकें. यही कारण है कि स्पेसएक्स ने इतनी प्रगति की है, इस वर्ष उसने लगभग 45 प्रक्षेपण किए.’ उन्होंने कहा कि भारत में पहले से ही दो कंपनियां काम कर रही हैं- स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉसमॉस. इसरो अध्यक्ष ने कहा, ‘हम सभी भारत को इस तरह आगे बढ़ते हुए देखकर उत्साहित हैं। ये कंपनियां पहले ही प्रक्षेपण वाहनों का परीक्षण कर चुकी हैं. यह एक दिलचस्प विकास है.’ चंद्रयान -4 पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, सोमनाथ ने भारत के अगले चंद्रमा मिशन पर एक जानकारी भी साझा की. उनके मुताबिक, चंद्रयान-4 मिशन को चंद्रयान श्रृंखला की अगली कड़ी के रूप में विकसित किया जा रहा है. . Tags: Drinking Water, ISRO, Mission Moon, MoonFIRST PUBLISHED : May 2, 2024, 06:53 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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