छोड़ दो पहाड़ों पर पार्टी की लत सरकार की ये रिपोर्ट घुमा देगी माथा
छोड़ दो पहाड़ों पर पार्टी की लत सरकार की ये रिपोर्ट घुमा देगी माथा
ISFR Report on Mountain: राजधानी दिल्ली और उसके आसपास सटे शहरों में छुट्टियों में पहाड़ की ओर रुख करने का ट्रेंड लगातार बढ़ता जा रहा है. लोग फैमिली के साथ पहाड़ों का रुख करना पसंद करते हैं. हालांकि लोगों का यही ट्रेंड अब पहाड़ों के लिए खतरा बन गया है. इंडियन स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट यानी ISFR की रिपोर्ट डराने वाली है.
हाइलाइट्स रिपोर्ट में साल 2023-2024 में पहाड़ों के वन क्षेत्र का स्टेटस बताया गया है. पिछले दो सालों में पहाड़ों में वन क्षेत्र तेजी से घटना नजर आ रहा है. हालांकि मैदानी इलाकों में वन क्षेत्र में लगातार इजाफा हो रहा है.
ISFR Report on Mountain: दिल्ली एनसीआर के लोगों में अक्सर लॉन्ग वीकेंड या फिर सप्ताह की दो छुट्टियों के साथ एक या दो अवकाश लेकर पहाड़ों पर जाने का चलन आम है. शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच पहाड़ सभी को सुकून देते हैं. हालांकि पर्यावरण मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट में जो कुछ सामने आया है, वो आपका और हमारा माथा घुमा देगी. दरअसल, तेजी से पहाड़ों पर बढ़ रहे टूरिज्म के बीच इन क्षेत्रों को काफी ज्यादा नुकसान हो रहा है. पर्यावरण के अंतर्गत आने वाले इंडियन स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) के सर्वे के मुताबिक देश में पहाड़ लगातार घट रहे हैं. उत्तर भारत के लोग उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों पर मौज-मस्ती के लिए निकलने के शौकीन हैं.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो साल में हिमालय से जुड़े 8 पर्वतीय राज्यों के वन क्षेत्र में कमी आई है. त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और असम इससे सबसे ज्यादा सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं. आईएसएफआर ने 2021 से 2023 के बीच की अवधि में आठ पर्वतीय राज्यों में वन क्षेत्र में कमी का खुलासा किया है. बताया गया कि इस दौरान त्रिपुरा में सबसे ज्यादा 95.3 वर्ग किलोमीटर फारेस्ट लैंड की कमी दर्ज की गई. इसके बाद दूसरे स्थान पर अरुणाचल प्रदेशहै जहां 91 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र पिछले दो सालों में खत्म हो गया.
असम-मणिपुर का क्या है हाल?
इसी तर्ज पर असम में 79 वर्ग किलोमीटर, मणिपुर में 54.8 वर्ग किलोमीटर, नागालैंड में 51.9 वर्ग किलोमीटर, मेघालय में 30 वर्ग किलोमीटर, उत्तराखंड में 22 वर्ग किलोमीटर और पश्चिम बंगाल में 2.4 वर्ग किलोमीटर फॉरेस्ट लैंड पिछले दो साल में खत्म हो गया. देहरादून स्थित आईएसएफआर द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में दावा किया गया कि पहाड़ी क्षेत्रों में जंगल मिट्टी के कटाव और भूस्खलन के लिए नेचुरल बैरियर के रूप में काम करते हैं. ये पहाड़ बायो-डायवर्सिटी को बनाए रखते हैं. साथ ही जल स्रोतों का भी संरक्षण करते हैं.
उत्तराखंड के पहाड़ों को कितना नुकसान?
आईएसएफआर रिपोर्ट में आगे बताया गया कि उत्तराखंड में 22.9 वर्ग किलोमीटर जंगलों की गिरावट आई. इसमें जिम कॉर्बेट, राजाजी नेशनल पार्क और केदारनाथ वन क्षेत्र भी शामिल हैं. आईएसएफआर की रिपोर्ट में एक राहत भरी खबर भी सामने आई. इसमें बताया गया कि भले ही पहाड़ी क्षेत्रों में जंगल कम हुए हों लेकिन मैदानी क्षेत्रों में वन क्षेत्र तेजी से बढ़े हैं. बताया गया कि साल 2023 में भारत का कुल वन क्षेत्र 24.62 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 25.17 प्रतिशत हो गया.
Tags: Himachal pradesh news, Uttrakhand ki newsFIRST PUBLISHED : December 23, 2024, 14:06 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed