अमेरिका यूरोप जैसी मौसम की सटीक भविष्यवाणी क्यों नहीं कर पा रहा आईएमडी इसके पीछे हैं कई कारण
अमेरिका यूरोप जैसी मौसम की सटीक भविष्यवाणी क्यों नहीं कर पा रहा आईएमडी इसके पीछे हैं कई कारण
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की मानसून सहित मौसम के लिए की गई भविष्यवाणी कई बार गलत साबित होती रही है. आईएमडी के सटीक मौसम पूर्वानुमान से चूकने के कई कारण हैं.
हाइलाइट्सअमेरिका, यूरोप जैसी मौसम की सटीक भविष्यवाणी में पीछे है आईएमडीआईएमडी की मानसून सहित मौसम के लिए की गई भविष्यवाणी कई बार गलत साबित हुई
नई दिल्ली. हाल ही में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा की गई मानसून की भविष्यवाणी पर काफी विवाद हुआ है. कई लोगों को लगता है कि पश्चिमी देशों के मौसम विभाग की तरह आईएमडी कुशल नहीं है. लोग ये भी सवाल कर रहे हैं कि अमरनाथ गुफा में बादल फटने जैसी चरम मौसम की घटना का मौसम विशेषज्ञों द्वारा पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका. जबकि सरकार नई तकनीक को लगाने के लिए इतना खर्च कर रही है.
इंडिया टुडे की एक खबर के मुताबिक पिछले 5 वर्षों के दौरान आईएमडी की भविष्यवाणियों में मामूली सुधार हुआ है लेकिन अभी भी सुधार की जरूरत है. मौसम की भविष्यवाणी के मॉडल बड़े पैमाने पर अत्यधिक विशिष्ट प्रकार के उपकरणों द्वारा एकत्र किए गए डेटा पर निर्भर करते हैं. इसके लिए डॉप्लर रडार, उपग्रह डेटा, रेडियोसोंडेस, सतह अवलोकन केंद्र और कंप्यूटिंग उपकरण जैसे विभिन्न उपकरणों की आवश्यकता होती है ताकि मौसम के विकास की भविष्यवाणी और पूर्वानुमान किया जा सके. हालांकि भारत ने इनमें से कुछ क्षेत्रों में क्षमता बढ़ा दी है, लेकिन यह यूरोप और अमेरिका के उन्नत देशों से अभी कुछ पीछे है.
आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि देश में अभी केवल 34 रडार मौजूद हैं. पिछले 5 वर्षों में यह संख्या सिर्फ 6 बढ़ी है. वहीं अमेरिका में करीब 200 डॉप्लर रडार के साथ मौसम की भविष्यवाणी होती है.बहरहाल आईएमडी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का दावा है कि भारत दुनिया में चक्रवात की भविष्यवाणी में बहुत आगे है और डेटा गणना के मामले में देश केवल जापान, चीन, यूरोप और अमेरिका के बाद पांचवें स्थान पर हैं. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि आईएमडी बहुत पीछे चल रहा है.
ग्राउंड नेटवर्किंग अभी भी खराब
पिछले हफ्ते जम्मू और कश्मीर में अमरनाथ गुफा के पास बादल फटा था, लेकिन स्थानीय स्तर पर मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए वहां कोई स्थानीय रडार प्रणाली नहीं है. जबकि वहां हर साल लाखों तीर्थयात्री मानसून के मौसम में आते हैं. जम्मू, श्रीनगर और कुफरी जैसी जगहों पर रडार हैं, लेकिन अमरनाथ या कुल्लू में शायद ही कोई रडार है. हालांकि अब रडार सिस्टम इतना विकसित हो गया है कि ऐसे क्षेत्रों में एक छोटा स्थानीय रडार लगाया जा सकता है. मौसम विभाग का दावा है कि ज्यादातर जगहों पर रडार की अच्छी व्यवस्था है, लेकिन कई जगह रडार ठीक से काम नहीं कर रहे हैं. बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों और अत्यंत महत्वपूर्ण अंडमान में कोई रडार कवरेज नहीं है, जहां से कई चक्रवाती सिस्टम शुरू होते हैं. पिछले 20 साल से योजना बन रही है कि इसके लिए कार निकोबार द्वीप पर डॉप्लर रडार लगाया जाएगा, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो सका है.
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उष्णकटिबंधीय जलवायु से सटीक अनुमान लगाना कठिन
भारत में एक अजीबोगरीब भौगोलिक स्थिति है क्योंकि यह तटीय, मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों का मिश्रण है. अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों की तुलना में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में मौसम की भविष्यवाणी अधिक चुनौतीपूर्ण होती है. भारत में लगभग सात हजार किलोमीटर की तटरेखा है, जिसका मौसम की गतिविधियों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है. अगर इसकी तुलना यूरोपीय देशों से की जाए, जो मध्यम ऊंचाई पर हैं, तो वहां तेज मौसमी बदलाव काफी कम होते हैं.
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Tags: India Meteorological Department, Weather, Weather forecastFIRST PUBLISHED : July 16, 2022, 09:15 IST