इन वजहों से चर्चाओं में रहती है उत्तर प्रदेश की ये महिला अधिकारी
इन वजहों से चर्चाओं में रहती है उत्तर प्रदेश की ये महिला अधिकारी
Sports Officer Poonam Vishnoi : पूनम विश्वनोई ने जब मास्टर एथलीट में लॉन्ग जंप में पार्ट लिया तब उनके घुटने की इंजरी अपने आप ठीक हो गयी. एक पुरानी इंजरी के चलते यह दर्द पूनम के पैर में काफी समय से बना हुआ था.
विशाल झा/गाजियाबाद: महामाया स्टेडियम अपने खिलाड़ियों को लेकर चर्चाओं में बना रहता है. पिछले कुछ वर्षों की बात की जाए तो इस स्टेडियम में कई बदलाव देखने को मिले है. खिलाड़ियों की ट्रेनिंग हो या फिर गोल्ड मेडल जीत कर जिले का नाम रोशन करना. दोनों ही मामलों में महामाया स्टेडियम का काफी सकारात्मक असर दिख रहा है. एक ओर इस सकारात्मक बदलाव के पीछे जिले के खिलाड़ियों की मेहनत का पसीना है तो वहीं दूसरी ओर महिला अधिकारी पूनम विश्नोई की मेहनत भी.
पूनम बिश्नोई जिला उपक्रीड़ा अधिकारी हैं और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी. हाल में ही आयोजित मास्टर्स एथलीट प्रतियोगिता में पूनम ने कई गोल्ड मेडल झटक कर सबको हैरान कर दिया था. आधिकारिक कामकाज के दबाव के साथ ही पूनम की घुटने की इंजरी भी उनकी खेल में बाधा बन रहा था लेकिन काफी हैरान करने वाली बात है कि खेल में मिली इंजरी खेल के जरिए ही खत्म भी हुई. आईए जानते है पूनम विश्नोई ने इस बारे में क्या कहा.
पूनम बताती हैं कि खेल में भाग लेने से पहले अंदर से लगता है की गोल्ड के बिना मजा नहीं आएगा क्योंकि, जब मैं जूडो खेलती थी तो 12 साल तक यूपी की चैंपियन रही थी. उस वक़्त नेशनल में मेडल रहा, इंटरनेशनल स्तर पर भी इंडिया को रिप्रेजेंट किया. जब मास्टर एथलीट में लॉन्ग जंप में पार्ट लिया तब मेरी घुटने की इंजरी अपने आप ठीक हो गयी जो महीनों से दर्द का कारण बनी हुई थी.
खिलाड़ी नहीं तो आईएएस अधिकारी बनने का था प्लान
पूनम बताती हैं कि उन्हें खिलाड़ी नहीं बल्कि एक आईएएस अधिकारी बनना था. जिसके लिए पूनम बिश्नोई कोचिंग भी लेती थी लेकिन, पूनम के जुड़ो के कोच चाहते थे कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बने और हुआ भी ठीक वैसा ही. पूनम ने बताया मेरठ में आईएएस की ट्रेनिंग और खेल के बीच में बैलेंस बनाना काफी बड़ी चुनौती हुआ करती थी. आज जिला उपक्रीड़ा अधिकारी बनकर मुझे खेल के साथ ही खिलाड़ियों को भी समझने का मौका मिल रहा है.
बेटियों को भी दें बराबरी का मौका
पूनम ने बताया कि हमेशा अपनी बेटियों को आगे बढ़ाने की सोचें. ओलंपिक में भले ही बेटियां देश का नाम रोशन करके गोल्ड मेडल लाती हैं लेकिन, आज भी घरों में बेटियों को स्पोर्ट्स में नहीं बढ़ाया जा रहा है. स्पोर्ट्स के जरिए भी अब अपनी जीविका चलाना काफी सरल है और यह सामाजिक स्तर पर आपको एक पहचान भी दिलाता है. इसलिए किसी खिलाड़ी की प्रतिभा को दबाना नहीं चाहिए.
Tags: Local18FIRST PUBLISHED : July 18, 2024, 11:37 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed