धनतेरस पर यमदीप जलाने से मिलता है वरदान कुबेर लक्ष्मी यमराज से जुड़ा महत्व
धनतेरस पर यमदीप जलाने से मिलता है वरदान कुबेर लक्ष्मी यमराज से जुड़ा महत्व
Yamdeep Significance: धनतेरस पर देवी लक्ष्मी, कुबेर देव, भगवान धन्वंतरि और यमराज की पूजा होती है. यमराज के नाम का दीप जलाने और यमदीप दान से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है. यह परंपरा स्कंदपुराण में वर्णित है.
हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की तीसरी तिथि को धनतेरस का यह पर्व मनाया जाता है. धनतेरस के दिन देवी लक्ष्मी, कुबेर देव और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. इसके साथ ही यमराज की भी पूजा की जाती है और उनके नाम का एक दीपक जलाया जाता है. धनतेरस के दिन दीपदान को भी विशेष महत्व दिया गया है. पुराणों के अनुसार, इस दिन दान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है. यह पूरे वर्ष का एकमात्र दिन है जब यमराज, जो मृत्यु के देवता हैं, उनकी दीपदान से पूजा की जाती है.
लगातार पाँच दिनों तक करें यमदीप का दान
धनतेरस की रात को यमदीप का दान किया जाता है. धनतेरस की पूजा के बाद यमदीप का दान करना होता है. स्कन्द पुराण के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के दिन यमराज को दीप और यज्ञ अर्पित करने से अकाल मृत्यु का नाश होता है. ज्योतिषाचार्य देवव्रत कश्यप ने बताया कि यमदीप दान के लिए बड़े मिट्टी के दीपक को लेकर उसे साफ पानी से धो लें, सफेद ऊन का चार मुख वाला दीपक बनाएं और उसे तिल के तेल से भर दें. चावल के सात दाने धातु की पंक्ति में रखकर इस दीपक को जलाएं और प्रार्थना करें. धनतेरस के दिन लगातार पाँच दिनों तक यमदीप दान करना होता है. प्रदोषकाल में दीपक को दक्षिण दिशा की ओर रखकर दीपदान करना चाहिए. यमदीप दान का उल्लेख स्कंदपुराण में मिलता है.
पुराणों में दर्ज है यमराज और यमदूतों की कथा
पुराणों में बताई गई एक कहानी के अनुसार, एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा, “क्या उन्होंने कभी किसी जीव की मृत्यु लेते समय दया दिखाई है?” उस समय वे संकोच में कहने लगे कि नहीं. लेकिन, जब यमराज ने पुनः पूछा, तो उन्होंने एक घटना का वर्णन किया, जिससे यमदूतों का दिल कांप उठा.
नवविवाहित स्त्री की करुण पुकार से कांप उठा यमदूतों का दिल
कहानी के अनुसार, हेम नाम के एक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया, तब ज्योतिषियों ने तारे देखकर बताया कि जब यह बालक विवाह करेगा, तो विवाह के चार दिनों बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी. यह जानकर राजा ने उस बालक को यमुना के किनारे एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में पाला. लेकिन एक दिन महाराज हंस की पुत्री यमुना किनारे टहल रही थी. उस समय युवक उस कन्या पर मोहित हो गया और उनसे गंधर्व विवाह कर लिया. विवाह के चार दिन बाद ही राजकुमार की मृत्यु हो गई और नवविवाहिता पत्नी अपने पति की मृत्यु देखकर जोर-जोर से विलाप करने लगी. उस नवविवाहित स्त्री की करुण पुकार सुनकर यमदूतों का दिल भी कांप उठा.
यमराज ने बताया यमदीप दान का महत्व
उस समय यमदूतों ने यमदेव से कहा कि उस राजकुमार की मृत्यु लेते समय हमारी आँखों में आंसू थे. तब एक यमदूत ने पूछा, “क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है?” इस पर यमराज ने यमदीप दान का महत्व बताया. इस प्रकार अकाल मृत्यु से बचने के लिए धनतेरस के दिन यथोचित पूजा और दीपदान करना चाहिए. जहां यह पूजा होती है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता. कहा जाता है कि तभी से धनतेरस पर यमराज की पूजा के बाद दीप जलाने की परंपरा प्रचलित हो गई.
Tags: Dharma Aastha, Diwali, Diwali Celebration, Local18, Special ProjectFIRST PUBLISHED : October 29, 2024, 13:53 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed