रिपोर्ट: हिमांशु जोशी
पिथौरागढ़. तीन देशों की सांस्कृतिक और व्यापारिक विरासत के प्रतीक ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय जौलजीबी मेले (Jauljibi Mela) की शुरुआत हो चुकी है. अंतरराष्ट्रीय मेला जौलजीबी उत्तराखंड में काली और गोरी नदी के संगम पर लगता है. जौलजीबी पिथौरागढ़ से 68 किलोमीटर की दूरी पर काली नदी के किनारे बसा क्षेत्र है, जहां पर भारत और नेपाल की साझा संस्कृति देखने को मिलती है. 1962 से पहले तिब्बत के लोग भी इस मेले में शिरकत करने पहुंचते थे, लेकिन भारत-चीन युद्ध के बाद तिब्बती लोगों का यहां आना बंद हो गया. अब तिब्बत का सामान इस मेले में नेपाल के रास्ते आता है, जो जौलजीबी मेले के मुख्य आकर्षण में से है. पूर्व में इस मेले में नेपाल से आए घोड़ों की भी खूब बिक्री होती थी.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने राजकीय मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय जौलजीबी मेले का उद्घाटन किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि उन्हें बचपन में जौलजीबी मेले का काफी इंतजार रहता था. यह मेला हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, जिसे भव्य बनाने के हर संभव प्रयास किए जाएंगे. यह मेला भारत और नेपाल के व्यापारिक रिश्तों को ऑक्सीजन देता है.
जौलजीबी मेला करीब एक महीने तक लगता है. यहमेला भले ही आज एक व्यापारिक मेले के रूप में विख्यात हो, लेकिन इसका आगाज 1871 में एक धार्मिक मेले के तौर पर हुआ था. अस्कोट रियासत के राजा पुष्कर पाल ने 150 साल पहले ज्वालेश्वर महादेव के मंदिर की स्थापना की थी और तभी से यहां धार्मिक मेले की शुरुआत हुई. 1974 के बाद यूपी सरकार में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन के मौके पर इस मेले की शुरुआत होने की परम्परा आज भी चली आ रही है. आज यह मेला अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मेले में तब्दील हो गया है.
दो देशों की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगने वाले इस मेले का इंतजार पिथौरागढ़ और नेपाल के लोगों को बेसब्री से रहता है. स्थानीय निवासी प्रदीप थापा ने कहा कि दो देशों के भाईचारे के प्रतीक के तौर पर यह मेला लगता है, जिसका नेपाल के लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं.
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Tags: CM Pushkar Singh Dhami, Pithoragarh newsFIRST PUBLISHED : November 16, 2022, 12:21 IST