मोहर्रम के महीने में आशूरा की क्या है अहमियत इस दिन का क्यों है खास महत्व

मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख यौम-ए-आशूरा है. इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग काले रंग के कपड़े पहनते हैं और कर्बला की जंग में शहादत देने वालों के लिए मातम मनाते हैं. इस दिन शिया समुदाय ताजिया निकालता है, मजलिस पढ़ता है और दुख व्यक्त करता है

मोहर्रम के महीने में आशूरा की क्या है अहमियत इस दिन का क्यों है खास महत्व
अलीगढ़: इस्लाम में पवित्र रमजान महीने के बाद मोहर्रम के महीने को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाती है. माहे मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होने के साथ अल्लाह की इबादत के लिए रमजान के बाद सबसे पवित्र माना जाता है. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इस्लाम के सबसे पवित्र माने जाने वाले 4 महीनों में से मोहर्रम एक है. माहे मोहर्रम के इस महीने में आने वाली दसवें दिन का एक अहम महत्व होता है. जिसे इस्लाम में आशूरा कहा जाता हैं. मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख यौम-ए-आशूरा है. इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग काले रंग के कपड़े पहनते हैं और कर्बला की जंग में शहादत देने वालों के लिए मातम मनाते हैं. इस दिन शिया समुदाय ताजिया निकालता है, मजलिस पढ़ता है और दुख व्यक्त करता है, जबकि सुन्नी समुदाय के लोग रोजा रखते हैं और नमाज अदा करते हैं. मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला माह है, जो रमजान की तरह ही पवित्र माना जाता है. यौम-ए-आशूरा का महत्व जानकारी देते हुए एएमयू इमामबाड़े के मौलाना गुलाम रज़ा बताते हैं कि मुहर्रम की यौम-ए-आशूरा को इराक के कर्बला शहर में पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने 72 साथियों के साथ कुर्बान हो गए थे. इस वजह से हर साल मुहर्रम की 10वीं तारीख को हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करके मातम मनाया जाता है. क्या है कहानी गुलाम रज़ा ने कहा कि यजीद शासक के रूप में बेहद ही क्रूर व्यक्ति था. इमाम हुसैन को अपने अनुसार चलने के लिए यजीद ने कई प्रकार से दबाव डाले, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया. यजीद को हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों के कर्बला में होने की सूचना मिल गई थी. उसने उन पर दबाव बनाने के लिए उनका पानी बंद करवा दिया. इमाम हुसैन भी उसके आगे झुकने वाले नहीं थे. इस बीच मुहर्रम की 10वीं तारीख यौम-ए-आशूरा को यजीद ने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर हमला करा दिया. 72 साथियों के साथ कुर्बान मौलाना गुलाम रज़ा ने आगे बताया कि इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों ने हिम्मत के साथ यजीद की सेना का मुकाबला किया. इस्लाम की रक्षा के लिए इमाम हुसैन अपने परिवार और 72 साथियों के साथ कुर्बान हो गए. इसके घटना के बाद से हर साल यौम-ए-आशूरा को मुस्लिम समुदाय मातम मनाता है. Tags: Islam religion, Islam tradition, Local18FIRST PUBLISHED : July 13, 2024, 13:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ेंDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.
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