क्यों जूनागढ़ को लेकर चिढ़ा रहता है पाकिस्तानजहां भाग खूब पछताया यहां का नवाब

पाकिस्तान ने जूनागढ़ के मुद्दे को फिर जिंदा करके उस पर अपना दावा जताया है. आखिर क्यों इस जगह का भारत में विलय पाकिस्तान को हमेशा चिढ़ाता रहता है.

क्यों जूनागढ़ को लेकर चिढ़ा रहता है पाकिस्तानजहां भाग खूब पछताया यहां का नवाब
हाइलाइट्स आजादी के बाद जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया था यहां का नवाब मुस्लिम था लेकिन बहुसंख्यक आबादी हिंदू जनमत संग्रह में भारत को जमकर वोट मिले लेकिन पाकिस्तान को बहुत कम पाकिस्तान ने फिर जूनागढ़ को लेकर राग अलापना शुरू किया है. वहां की विदेश मंत्री ने आरोप लगाया है कि भारत ने जूनागढ़ पर अवैध कब्जा कर रखा है. जूनागढ़ गुजरात का एक शहर है, जिसे जनमत संग्रह के जरिए 1948 में भारत में मिला लिया गया था. ये ऐसी जगह थी जहां का नवाब मुस्लिम था लेकिन यहां रहने वाली अधिकांश जनता हिंदू. जनमत संग्रह में पाकिस्तान को इतने कम वोट मिले थे कि कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहे लेकिन इस जगह को उनकी चिढ़ समय समय पर निकलती रहती है. यहां के नवाब को पाकिस्तान ने बड़े सब्जबाग दिखाए थे. जब वह पाकिस्तान भागकर गया तो उसके ढंग से रहने और खाने के भी लाले पड़ गए. भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान ने जूनागढ़ को लेकर क्या साजिश रची. फिर इस पर उसको किस तरह मुंह की खानी पड़ी. इसकी पूरी एक कहानी है. जब ये तय हो गया कि अंग्रेज आजादी तो देंगे लेकिन भारत को दो देशों भारत और पाकिस्तान बांट देंगे. इसके साथ ही तब देश की स्वतंत्र रियासतों से कहा गया कि वो फैसला करें वो नये बन दो देशों यानि भारत और पाकिस्तान में किसके साथ रहेंगे. हालांकि ये फैसला करते समय भौगोलिक स्थितियों का खयाल जरूर रखें. सीमावर्ती रियासतों को मोहम्मद अली जिन्ना बरगलाने में लगे थे. उसी में एक थी जूनागढ़ रियासत. इस रियासत का नवाब भी चाहता था कि उसके राज्य का विलय पाकिस्तान में हो जाए, जब ऐसा नहीं हो पाया तो वो रातोंरात पाकिस्तान भाग गया लेकिन वहां वो जो सोचकर गया,  वैसा कुछ उसको नहीं मिला अब तो उसकी पुश्तों का हाल और खराब है. क्यों उल्टी पड़ी जूनागढ़ के नवाब की चाल जूनागढ़ के नवाब पाकिस्तान में विलय का मन तो बना रहे थे लेकिन उनके राज्य की बहुसंख्यक हिन्दू जनता भारत में विलय के पक्ष में थी. जब जूनागढ़ के नवाब की सारी चालें उल्टी पड़ने लगीं तो वह खुद पाकिस्तान भाग गए. जूनागढ़ के ये नवाब थे महाबत खान. पाकिस्तान में पहुंचने के बाद उन्हें महसूस हो गया कि उन्होंने गलत काम कर दिया. जूनागढ़ के भारत में विलय के बाद वह पाकिस्तान के किसी काम के नहीं रह गए थे. पाकिस्तान ने उनसे सौतेला व्यवहार किया. उनके लिए जो रकम बांधी गई, वो पाकिस्तान के प्रिंसले स्टेट के पूर्व राजाओं और नवाबों के मुकाबले कम थी. उन्हें महत्व भी देना बंद कर दिया गया. उनके निधन को तो अब लंबा वक्त गुजर चुका है लेकिन अब पाकिस्तान में उनके वंशजों की हालत पस्त है. उन्हें गुजारे के तौर पर महीने का जो पैसा मिलता है, वो तो चपरासी को भी नहीं मिलता होगा. केवल 16 हजार रुपए. इसमें तो खर्चा भी नहीं चलता, इसे लेकर उनके वंशज ना जाने पाकिस्तानी हुक्मरानों से कितनी बार ही विरोध जता चुके हैं. जूनागढ़ के नवाब परिवार को पाकिस्तान में पहुंचने के बाद लगने लगा कि उनकी स्थिति तो बहुत खराब है. ना तो खुदा मिला और ना हीा बिसाले सनम अब बेचैनी में जूनागढ़ नवाब के वशंज अब जूनागढ़ नवाब की पाकिस्तान में रह रहीं पुश्तें बुरे हाल में हैं. न तो खुदा मिला और न ही बिसाले सनम.  वो बताने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान के लिए उन्होंने कितनी बड़ी कुर्बानी दी और ये मुल्क उन्हें किनारे कर चुका है. हाल तक जानना नहीं चाहता. कोशिश तो वह जूनागढ़ के भारत में विलय के मामले को विवादास्पद बनाने की भी करते हैं. लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. …तो कभी पाकिस्तान नहीं आते पाकिस्तान के कराची शहर में नवाब महाबत खान के जो तीसरे वंशज रह रहे हैं, उनका नाम है नवाब मुहम्मद जहांगीर खान. कुछ समय पहले उन्होंने पाकिस्तान में कहा, “अगर उन्हें पता होता कि पाकिस्तान जाने के बाद उनका मान सम्मान खत्म हो जाएगा तो वे कभी भारत छा़ेड़कर नहीं आते.” पाकिस्तान से प्रकाशित एक अखबार को दिए इंटरव्यू में नवाब मुहम्मद जहांगीर ने नाराजगी जाहिर की कि आजादी के बाद बंटवारे के समय मोहम्मद अली जिन्ना के साथ हुए समझौते के तहत ही उनका परिवार पाकिस्तान आया था. जूनाग़ढ उस समय हैदराबाद के बाद दूसरे नंबर का सबसे धनी राज्य था. नवाब अपनी संपत्ति जूनागढ़ में छा़ेडकर पाकिस्तान चले आए थे. यहां तक कि उन्होंने जूनाग़ढ की संपत्ति के बदले में पाकिस्तान में संपत्ति भी नहीं मांगी, तब भी पाकिस्तान में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. जूनागढ़ नवाब के वंशज ने पिछले दिनों पाकिस्तान में साफ कहा था कि अगर उन्हें मालूम होता कि इस देश में उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं होगा तो वो कभी भारत छोड़कर यहां नहीं आते पाकिस्तान नहीं देता परिवार को कोई सम्मान अब नवाब के परिवार का हाल ये है कि मौजूदा पाकिस्तान सरकार उन्हें अन्य राज परिवारों के समान न तो मान-सम्मान देती है औऱ न किसी गिनती में रखती है. खटास इस बात की भी कि अपने जिस वजीर के उकसावे में आकर वो पाकिस्तान से भागे, उस वजीर भुट्टो का परिवार पाकिस्तान का मुख्य राजनीतिक परिवार बन गया. जिन्ना ने दिखाए थे बड़े-बडे़ सपने जूनागढ़ में नवाब मुहम्मद महाबत खान और दीवान शाह नवाज भुट्टो की मंशा हिन्दू बहुसंख्यक आबादी के बावजूद पाकिस्तान में विलय की थी. मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान में विलय के लिए बड़े बड़े सपने दिखाए थे. क्या थी पूरी कहानी  “जिन्ना पेपर्स” के अनुसार जूनागढ़ के दीवान और जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता शाह नवाज ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को 19 अगस्त को पत्र लिखा, हम जूनागढ़ के पाकिस्तान में मिलाए जाने के लिए औपचारिक स्वीकृति का इंतजार कर रहे हैं. खुशी होगी कि अगर आप इसे जल्दी से जल्दी अमलीजामा पहना सकें (पृष्ठ 548). इस मामले में देरी होते देख उन्होंने 04 सितंबर को जिन्ना को फिर दिल्ली में उनके वादे को याद दिलाते हुए पत्र लिखा, पाकिस्तान नहीं चाहेगा कि जूनागढ़ उससे छिटके. माना जाता है कि जूनागढ़ के नवाब के वजीर ने उन्हें पाकिस्तान में विलय करने के लिए उकसाया था. उसकी जिन्ना से अच्छी बनती थी. बाद में उसका बेटा जुल्फिकार अली भुट्टो और पोती बेनजीर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी बने पाक में विलय को नेहरू ने किया खारिज जिन्ना ने जवाब दिया, कल हम कैबिनेट मीटिंग में इस बारे में विचार विमर्श करेंगे. तय नीति बनाएंगे. पाकिस्तान ने 08 सितंबर को पाकिस्तान-जूनागढ़ समझौते की घोषणा की, जिसमें ये कहा गया था कि जूनागढ़ के शासक पाकिस्तान में विलय को तैयार हैं. नेहरू ने विरोध करते हुए 12 सितंबर को लियाकत अली खान को पत्र लिखा. इसमें कहा गया कि चूंकि जूनागढ़ की 80 फीसदी आबादी हिन्दू है. इस बारे में रायशुमारी में उनकी राय भी नहीं ली गई, लिहाजा ये मामला जूनागढ़ के लोगों की सहमति के बगैर नहीं उठाया जा सकता. भारत सरकार जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय को सहमति नहीं देगी. विलय का कोई संवैधानिक आधार नहीं बनता. ये मामला जूनागढ़ और भारत के बीच बनता है. 1947 में देश के बंटवारे के समय ऐसी थी जूनागढ़ रियासत (image generated by leonardo ai) भारत सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार था इसके बावजूद 15 सितंबर 1947 को जूनागढ़ ने पाकिस्तान के साथ विलय को औपचारिक तौर पर स्वीकार कर लिया. बस इसके बाद भारतीय फौजों की रवानगी शुरू हो गई. भुट्टो की समझ में आ गया कि खतरा है. उन्होंने 16 सितंबर को लियाकत से मदद मांगते हुए कहा, कम से कम हमें ये तो बताइए कि आप हमें किस तरह की मदद दे रहे हैं.हमें किस तरह से कार्रवाई करनी चाहिए. वहीं भारत जूनागढ़ में सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार था. दिल्ली में केवल ये मुद्दा था कि कार्रवाई कैसे की जाए. माउंटबेटन ने पाकिस्तान को दिया टका सा जवाब  एचवी हडसन की किताब ‘द ग्रेट डिवाइड’ के अनुसार, गर्वनर जनरल माउंटबेटन ने किंग को रिपोर्ट दी. उन्होंने लिखा, जूनागढ़ के मामले पर विचार के लिए शाम को एक कैबिनेट मीटिंग में विचार किया जाएगा. हालांकि सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र जवाब है. जिन्ना ने भारतीय फौजों की हलचल की शिकायत माउंटबेटन से की. माउंटबेटन ने जो जवाब दिया, उसका सार यही था कि पाकिस्तान जो कर रहा है, वो भारत सरकार के साथ उसके समझौते का उल्लंघन है. जूनागढ़ में अस्थाई सरकार गठित हुई जूनागढ़ की आबादी से इस विलय पर रायशुमारी ली गई. 80 फीसदी जनता भारत के साथ जाने को तैयार थी. पाकिस्तान निरुत्तर हो गया. 25 सितंबर को जूनागढ़ मुक्त करा लिया गया. पुस्तक “सरदार लेटर्स” के अनुसार, बंबई में उस दिन स्वतंत्र जूनागढ़ की अस्थाई सरकार गठित की गई. वीपी मेनन की पुस्तक “इंटीग्रेशन आफ इंडिया इनस्टेड” के अनुसार, हालात और दबाव के आगे भुट्टो टूटते जा रहे थे. पाकिस्तान की ओर से कोई खास पहल होती नहीं दिख रही थी. पाकिस्तान के पक्ष में पड़े केवल 91 वोट इन्हीं सब परिस्थितियों के बीच 09 नवंबर को भारतीय फौजें जूनागढ़ में प्रवेश कर गईं और उन्हें जूनागढ़ पर कब्जा कर लिया. इस तरह जूनागढ़ आजाद हो गया. हालांकि, पुख्ता मुहर 20 फरवरी 1948 को लगी, जब वहां भारत सरकार ने जनमत संग्रह कराया. कुल 2,01, 457 वोटरों में 1,90,870 ने वोट डाले. पाकिस्तान के पक्ष में केवल 91 वोट पड़े. Tags: Gujarat, India and Pakistan, Junagarh assembly election, Junagarh newsFIRST PUBLISHED : September 6, 2024, 13:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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