दिल्ली के नामी फाइव स्टार होटलों को क्यों अब सरकार को देने होंगे करोड़ों रुपये
दिल्ली के नामी फाइव स्टार होटलों को क्यों अब सरकार को देने होंगे करोड़ों रुपये
केंद्र सरकार ने दिल्ली के फाइव स्टार होटलों की जमीन का किराया बढ़ा तो बवाल हो गया. दो होटल दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गए. केंद्र के आदेश को ज्यादती बताया. आखिर क्या है पूरी कहानी, जानिये
केंद्र सरकार ने नई दिल्ली के कई मशहूर फाइव स्टार होटलों को पट्टे पर दी गई जमीन का वार्षिक किराया बढ़ा दिया है. कई होटलों को अब लाखों के बदले करोड़ों रुपये चुकाने होंगे. केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ कम से कम दो होटलों – द इंपीरियल (The Imperial Hotel) और द क्लैरिजेस (The Claridges Delhi) ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
आइये आपको बताते हैं कि दिल्ली के फाइव स्टार होटलों (Five Star Hotels)को कब और कैसे किराये पर जमीन दी गई, अभी तक कितना सालाना किराया लिया जाता था और होटल मैनेजमेंट ने सरकार के कदम को क्यों चुनौती दी है?
होटलों को कब और किसने दी जमीन?
साल 1911 में जब ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने ब्रिटिश हुकूमत की राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) से नई दिल्ली ट्रांसफर करने का ऐलान किया तो सरकार ने नई इमारतों के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण करना शुरू किया. जिनपर काउंसिल हाउस (जो आजादी के बाद संसद बनी) जैसी बिल्डिंगें बननी थीं. अधिग्रहण में नई-नवेली राजधानी में होटलों के निर्माण के लिए जमीन चिन्हित करना भी शामिल था. होटल संचालकों को ये जमीन स्थायी पट्टे या परपेचुअल लीज पर दी गई. जमीन के बदले वार्षिक किराया तय किया गया, जो हर 30 पर संशोधित होना था.
क्या थीं लीज की शर्तें?
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने होटल के लिए जिनको जमीन दी, उनमें से ज्यादा बिजनेसमैन और ऐसे ठेकेदार थे, जिन्होंने अन्य सरकारी निर्माण परियोजनाओं पर काम किया था. पट्टे की शर्तों में यह भी कहा गया था कि पट्टेदार अपने उत्तराधिकारियों को स्थायी पट्टा कर सकते हैं, पर जमीन का उपयोग सिर्फ होटल के लिए ही होगा और निर्माण की लागत पट्टेदारों को वहन करनी होगी.
उदाहरण के तौर द इंपीरियल होटल का मामला लेते हैं, जिसे 8 अप्रैल, 1932 को जनपथ लेन पर 7.938 एकड़ जमीन, एसबीएस रणजीत सिंह को स्थायी पट्टे पर दी गई. पट्टे की तारीख 9 जुलाई, 1937 थी. इस पट्टे में रणजीत सिंह का उल्लेख एक “ठेकेदार” और एनए कर्जन रोड के कांट्रेक्टर आरबीएस नारायण सिंह के बेटे के रूप में किया गया है. लीज में जमीन का किराया 1,786 रुपये प्रति वर्ष निर्धारित किया गया था और पहली बार साल 1962 में किराये में संशोधन हुआ.
इसी तरह, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम रोड (जिसे पहले औरंगजेब रोड के नाम से जाना जाता था) पर द क्लेरिजेस होटल के लिए 12 नवंबर 1936 को 2.94 एकड़ जमीन लाला जुगल किशोर को पट्टे पर दिया गया. ज़मीन का किराया 470 रुपये तय किया गया था और इसे 1 जनवरी, 1961 के बाद संशोधित किया जाना था. साल 1972 में, यह जमीन क्लेरिजेस होटल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा खरीदी गई और इसका पट्टा 1976 में उसके नाम पर परिवर्तित हो गया था.
कैसे तय हुआ जमीन का किराया?
पट्टे की शर्तों के मुताबिक जमीन के किराये की गणना, जमीन के मूल्य के आधार पर होनी थी. इसमें, जमीन पर बनी इमारत की कीमत शामिल नहीं थी. यह भी तय किया गया कि वार्षिक किराया, पट्टे पर हस्ताक्षर करते समय और बाद में संशोधन के समय भी, जमीन की कुल कीमत के तिहाई से अधिक नहीं होगा. किराये का मूल्यांकन दिल्ली के कलेक्टर या उपायुक्त द्वारा किया जाना था.
कैसे करोड़ों में पहुंचा रेंट?
केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ जो दो होटल दिल्ली हाईकोर्ट गए हैं, उनमें द इंपीरियल के लिए जमीन का किराया 1972 में संशोधित कर 10,716 रुपये किया गया था और यह 2002 तक मान्य था. लीज की शर्तों के मुताबिक 2002 में फिर रेंट रिवीजन होना था, लेकिन अगले 30 साल की अवधि (2002 से 2032 तक) फिर पुराना किराया ही तय कर दिया गया. हालांकि केंद्र ने मार्च में इसे बढ़ाकर 8.13 करोड़ रुपये कर दिया. इसी तरह, द क्लेरिजेस के केस में जमीन का किराया 2016 में 2.13 लाख रुपये से बढ़ाकर 8.53 लाख रुपये प्रति वर्ष कर दिया गया था. होटल प्रबंधन के मुताबिक साल 2046 तक यही किराया बना रहना था. हालांकि सरकार ने क्लेरिजेस का किराया भी 3.85 करोड़ रुपये वार्षिक कर दिया है.
अब किस बात पर विवाद?
केंद्र सरकार के फैसले पर विवाद की सबसे बड़ी वजह यह है कि दोनों होटल को उस तिथि से बढ़ा किराया चुकाना होगा, जिस डेट पर रेंट रिवीजन ड्यू था. जैसे इंपीरियल होटल को 2024 की जगह 2022 से किराया देना होगा. तो द क्लेरिजेस को भी 2006 से अब तक का किराया चुकाना होगा. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक द इंपीरियल होटल को 2002 से 2024 तक के बकाया किराए के रूप में 177.29 करोड़ रुपए देने को कहा गया है तो द क्लेरिजेस को 69.37 करोड़ रुपए देने को कहा गया है. होटल मालिकों का तर्क है कि रेंट रिवीजन लीज की ओरिजिनल शर्तों का उल्लंघन है. चूंकि कोई रिवीजन पेंडिंग नहीं था, इसलिए इस तरह के नोटिस का मतलब भी नहीं बनता.
Tags: Delhi news, Five Star HotelFIRST PUBLISHED : July 31, 2024, 15:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed