Explainer : क्यों पकड़े जाने पर जासूसों को अपना नहीं मानतीं सरकारें
Explainer : क्यों पकड़े जाने पर जासूसों को अपना नहीं मानतीं सरकारें
जब कोई देश किसी को अपना जासूसी बनाकर दूसरे देश में भेजता है और ये मिशन सीक्रेट होता है तो उसका नाम कभी अपने रिकॉर्ड्स में नहीं रखता. अगर वो पकड़ा भी जाता है तो कोई देश ये स्वीकार नहीं करता कि ये उसका आदमी है. आखिर क्यों होता है जासूसी की दुनिया में ऐसा
हाइलाइट्सकोई भी सरकारी एजेंसी अपने जासूसों का रिकॉर्ड नहीं रखती ना ही जासूस की किसी जानकारी को पब्लिक डोमैन में लाया जाता हैहर देश दूसरे देश में जासूसी कराता है लेकिन जासूसी पर सजा भी देता है
ये एक नियम है, जो हर देश की सरकार और जासूसी एजेंसियां करती हैं. अगर उनका कोई जासूस किसी मिशन पर देश से बाहर पकड़ लिया जाता है, जो वो उसे कभी अपना जासूस या आदमी नहीं मानतीं. कभी ये नहीं स्वीकार करतीं कि ये उनके द्वारा किसी मिशन पर भेजा गया था. ये विदेशी जासूसी मिशन पर जाने वाले जासूसों के लिए पहला उसूल भी होता है.
जासूसों को भी अच्छी तरह मालूम होता है कि अगर वो पकड़े गए तो उनकी जासूसी एजेंसी कभी उन्हें ना तो पहचानेगी और ना ही उन्हें अपना बताएगी. बल्कि पूरी उम्मीद है कि ऐसा होने पर उसके रिकॉर्ड भी तुरंत खत्म कर दिए जाएं.
ऐसा ही मसला अजमेर के मोहम्मद अंसारी के साथ हुआ. वह 1966 में पोस्ट आफिस की नौकरी कर रहे थे. तभी उन्हें भारत सरकार की जासूसी एजेंसी स्पेशल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन ने पाकिस्तान के एक मिशन पर काम करने का ऑफर दिया. उन्होंने स्वीकार किया. पाकिस्तान गए. उन्होंने वहां पर दो मिशन पर जासूसी का काम सफलता पूर्वक किया लेकिन तीसरे मिशन पर पकड़े गए.
उनकी जासूसी एजेंसी एसबीआई और भारत सरकार ने तुरंत खंडन कर दिया कि वो भारत के जासूस हैं या उन्हें किसी खास मिशन पर जासूसी के लिए भेजा गया था. हालांकि सरकार ने दूसरे रास्तों से उन्हें मदद पहुंचाने की पूरी कोशिश की लेकिन वो जेल की सजा काटने के लिए भेज दिए गए. वहां उन्होंने 13 साल की सजा काटी.
इसके बाद जब अंसारी वापस लौटे तो सरकार और उनकी एजेंसी ने उन्हें उनका वेतन और अन्य परिलब्धियां देने से मना कर दिया. उनका रिकॉर्ड गायब हो चुका था. उनके लिए ये साबित करना बहुत मुश्किल था कि वो सरकारी जासूस थे. 30 साल मुकदमा लड़ने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वो उन्हें 10 लाख रुपए की रकम राहत के तौर पर दे.
कभी उसका रिकॉर्ड नहीं रखा जाता
हालांकि जासूसी पर भेजे जाने वाले किसी भी शख्स को मालुूम होता है कि जिस दिन वो किसी विदेशी मिशन पर सीक्रेट जासूसी के लिए भेजा जाएगा, उसी दिन से जासूसी एजेंसी के आधिकारिक रिकॉर्ड्स से उसका नाम हट जाएगा. कहीं कोई रिकॉर्ड ऐसा नहीं दिखाएगा कि वो उनका कर्मचारी है. अलबत्ता अगर वो मिशन से वापस आया और जासूसी एजेंसी के लिए देश में डेस्क पर काम करने लगा तो उसके सारे रिकॉर्ड्स बहाल हो जाएंगे.
क्यों सरकार और एजेंसियां अपने जासूस को नहीं पहचानतीं
आमतौर पर सरकारी एजेंसियां जब किसी जासूस को विदेश भेजती हैं तो किसी चैनल से उसके खर्च और वेतन को भी पहुंचाती हैं. कोई तीसरा शख्स उस देश में उसे पैसे या वेतन पहुंचाता है. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि सरकारें या सरकारी जासूसी एजेंसियां क्यों अपने लोगों को पकड़े जाने पर पहचानने से इनकार कर देती हैं.
उसकी कई वजहें हैं
– इससे दूसरे देश की संप्रुभता को ठेस पहुंचती है और जासूस को भेजने वाले देश पर इसका मामला बनता है
– दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध खराब हो जाते हैं
– अंतरराष्ट्रीय तौर पर उस देश की किरकिरी होती है
तब जासूस के देश की सरकार उसे कैसे मदद करती है
हालांकि जिस देश के जासूस को पकड़ा जाता है, वो हमेशा दूसरे देश के सामने यही जाहिर करता है कि वो उसका जासूस नहीं है लेकिन एक नागरिक के बतौर उसकी रक्षा करने या कानूनी मदद देने का अधिकार जरूर उसके पास है. उस आदमी की गिरफ्तारी को वह हमेशा साजिश बताता है. हमारे क्या तमाम देशों के जासूस जब विदेशी मिशन पर पकड़े जाते हैं तो यही होता है.
पाकिस्तान में जब भी हमारा कोई जासूस पकड़ा जाता है तो तुरंत हमारी एजेसियां उससे पल्ला झाड़ लेती हैं और ये कहती हैं कि ये उनका आदमी नहीं है लेकिन साथ साथ सरकार किसी ना किसी चैनल से उसे या उसके परिवार को मदद जरूर करती हैं. यही काम पाकिस्तान भी करता है.
हालांकि सरकारें या भारत सरकार पकड़े जाने पर अपने जासूसों के अधिकार की किस तरह रक्षा करती हैं और किस तरह उनको और उनके परिवारों को मदद पहुंचाती हैं, इसकी जानकारी शायद ही किसी के पास हो
जासूस की जानकारी कहीं नहीं मिलती
पकड़े गए जासूस के जासूसी एजेंसियां से संबंधित होने की जानकारी की बात तो दूर है, उसकी कोई भी जानकारी पब्लिक डोमैन में कभी नहीं मिलती. अगर विदेश में उसकी हत्या हो जाए तो उसे कोई याद नहीं रखता. इस बात से संबंधित आरटीआई भी जब लगाईं गईं तो उसके जरिए भी कोई जानकारी कभी सरकार द्वारा नहीं दी गई.
इस जानकारी को छिपाने को कानूनी प्रोटेक्शन भी
सभी तरह के कानून, नियमों की प्रवृत्ति ऐसे मामलों को छिपाकर रखने की होती है और कानूनी तौर पर प्रोटेक्शन भी मिलता है. आपको कभी मालूम नहीं हो सकता कि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानि रॉ का कौन सा आदमी कहां तैनात है और किस आपरेशन पर काम कर रहा है या कर चुका है. वह हमेशा छिपाकर रखा जाता है.
बड़ा काम करते हैं ये जासूस
हालांकि जासूस अपने देशों के लिए बहुत बड़ा काम करते हैं. कई बार उनकी सूचनाएं इतनी महत्वपूर्ण होती हैं कि उनके अपने देश को इसका बहुत फायदा होता है. आमतौर पर देश कई तरह की जासूसी दूसरे देशों में कराते हैं, ये सामरिक से लेकर तकनीक और बड़े बड़े कारपोरेट्स या दूसरी खुफिया चीजों को लेकर होता है. लेकिन वही जासूस अगर दूसरे देश में पकड़ लिया गया तो गंभीर सजा का सामना करना पड़ता है.
क्या होती है पकड़े जाने पर जासूसी की सजा
किसी देश में जब जासूसी के आरोप में कोई एजेंट पकड़ा जाता है तो इसे उस देश के खिलाफ द्रोह माना जाता है. हर देश के इसके अपने कानून भी हैं. अमेरिका में जासूसी करने के खिलाफ जासूसी एक्ट है, जो 1917 में लागू हुआ था. दरअसल जासूसी करने पर किसी देश के कई कानूनों का हनन होता है. ऐसा करने वाले जासूस को
– उसके देश वापस लौटाया जा सकता है.
– जेल की सजा हो सकती है, कई बार ये सजा ताजीवन कैद की भी होती है
– फांसी की सजा भी हो सकती है
प्राचीन काल से हो रहा है ये काम
प्राचीन समय से एक देश दूसरे देश की खुफिया और ताकत की थाह पाने के लिए जासूसी कराता रहता था. हालांकि तब जासूस को आमतौर पर पकड़े जाने पर मौत की सजा ही मिलती थी. दूसरे विश्व युद्ध के दिनों में जासूसी अपने चरम पर थी.
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Tags: Central Intelligence Agency CIA, Indian intelligence agency, Intelligence agency, Intelligence bureau, Military Intelligence, Pakistan Spy, Pegasus spying issueFIRST PUBLISHED : September 13, 2022, 13:13 IST