Explainer: कौन होते हैं लोकायुक्त क्या है उनकी पॉवर्स कैसे हुई इसकी शुरुआत 

Lokayukta and His Powers: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मैसूर जमीन घोटाले में फंसे हुए है. इस मामले की जांच राज्य के लोकायुक्त को सौंपी गई है. उन्हें अपनी रिपोर्ट तीन महीने में पुलिस को सौंपनी होगी. आइए जानते हैं कि कौन होता है लोकायुक्त और क्या होती हैं उसकी शक्तियां.

Explainer: कौन होते हैं लोकायुक्त क्या है उनकी पॉवर्स कैसे हुई इसकी शुरुआत 
Lokayukta and His Powers: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि आवंटन में घोटाले का आरोप है. विशेष अदालत ने सिद्धारमैया के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के आदेश दिए हैं. उसने यह जांच कर्नाटक के लोकायुक्त को सौंप दी है. उन्हें अपनी जांच रिपोर्ट तीन महीने में सौंपनी होगी. मामला मैसूर में हाउसिंग प्लाट को लेकर है, जिसके बारे में आरोप है कि इसे सिद्धारमैया परिवार ने गैरकानूनी तरीके के हासिल किया था. इस समय कर्नाटक में जस्टिस बीएस पाटिल लोकायुक्त हैं. उनकी नियुक्ति 22 जून, 2022 को की गई थी.  आइए जानते हैं कि  कर्नाटक के लोकायुक्त की इस रिपोर्ट की कितनी अहमियत है? किसी राज्य के लोकायुक्त के पास क्या अधिकार होते हैं. अगर लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट मिलने के तीन महीने के भीतर उसे खारिज नहीं किया जाता है तो मान लिया जाता है कि उनकी रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई है. ऐसी स्थिति में जिस लोक सेवक के खिलाफ रिपोर्ट होती है उसे पद छोड़ना भी पड़ सकता है. अगर आरोपी सरकारी अधिकारी है तो राज्य सरकार मामले का निपटारा होने तक उसे निलंबित कर सकती है.  ये भी पढ़ें- ये है भारत का सबसे छोटा ट्रेन रूट… 3 किमी का सफर, लगते हैं सिर्फ 09 मिनट, किराया है चौंकाने वाला क्या होता है लोकायुक्त लोकायुक्त भारतीय संसदीय व्यवस्था का ओम्बुड्समैन है, जो प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है. लोकायुक्त राज्य सरकार के लिए काम करता है. यह एक भ्रष्टाचार विरोधी व्यवस्था है. किसी राज्य में लोकायुक्त व्यवस्था का मकसद लोक सेवकों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों और आरोपों की जांच करना है. भारत में प्रशासनिक सुधार आयोग की ओर से केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी. इस आयोग ने 1966 से 1970 के दौरान काम किया था. लेकिन इसकी सिफारिशों पर अमल लंबे अरसे बाद किया गया. साल 2013 में सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम बनाया.   महाराष्ट्र ने की थी पहल केंद्र सरकार ने भले ही 2013 में अधिनियम बनाया, लेकिन इससे पहले कई राज्य इस दिशा में कदम उठा चुके थे. महाराष्ट्र ने इस मामले में सबसे पहले पहल की थी. इस राज्य में 1971 में ही लोकायुक्त निकाय का गठन किया जा चुका था.लेकिन साल 2013 में लोकायुक्त अधिनियम बनने के बाद सभी राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति करना अनिवार्य हो गया था. लोकायुक्त व्यवस्था का जन्म स्कैंडिनेवियाई देशों में हुआ था.  ये भी पढ़ें- Explainer: देश भर में क्यों बढ़ रहे हैं स्वाइन फ्लू के मामले, क्या हैं इसके लक्षण… किसको ज्यादा खतरा कैसे होती है नियुक्ति  लोकायुक्त और उप लोकायुक्त की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है. नियुक्ति के समय राज्यपाल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और विधानसभा में नेता विपक्ष से सलाह-मशविरा करता है. लोकायुक्त की नियुक्ति पांच साल के लिए की जाती है. अगर कोई व्यक्ति 62 साल की उम्र में लोकायुक्त बनता है तो वो केवल दो साल ही पद पर रह सकता है. इस पद के लिए पहले लोकायुक्त रह चुके व्यक्ति को फिर से नियुक्त करने का प्रावधान नहीं है.  कौन बन सकता है लोकायुक्त लोकायुक्त बनने वाले व्यक्ति में ये योग्यताएं होनी चाहिए. वह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रह चुका हो. एक बार नियुक्त होने के बाद, लोकायुक्त को सरकार बर्खास्त या स्थानांतरित नहीं कर सकती. उसे केवल राज्य विधानसभा द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पारित करके हटाया जा सकता है. लोकायुक्त, भ्रष्टाचार, अधिकार के दुरुपयोग, और सार्वजनिक पदाधिकारियों के गलत कामों की जांच करता है. लोकायुक्त, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्री, राज्य मंत्री, उपमंत्री, विपक्ष के नेता, अतिरिक्त सचिव, सचिव, और उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच करता है.  ये भी पढ़ें- देश के तीनों सेना प्रमुखों में एक बात है कॉमन, जो है वाकई दिलचस्प, क्या है ये क्या होती हैं लोकायुक्त की शक्तियां लोकायुक्त के पास किसी भी लोकसेवक या सरकारी अधिकारी से पूछताछ करने, उनके रिकॉर्ड चेक करने और जरूरत होने पर तलाशी लेने और बरामदगी का भी अधिकार है. वैसे तो लोकायुक्त कोई शिकायत अथवा विश्वसनीय सूचना मिलने पर अपनी जांच करते हैं, लेकिन कुछ मामलों में वह स्वत: संज्ञान लेकर जांच कर सकते हैं. अगर लोकायुक्त की जांच में लोक सेवक के खिलाफ आरोप साबित होते हैं तो वह पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद अपनी जांच रिपोर्ट सक्षम प्राधिकारी को सौंप देते हैं. उसके बाद सक्षम प्राधिकारी की यह जिम्मेदारी होती है कि वह लोकायुक्त की रिपोर्ट मिलने के तीन महीने के भीतर की गई अपनी कार्रवाई की रिपोर्ट दे. अगर लोकायुक्त किसी प्राधिकारी द्वारा की गई कार्रवाई से संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे संबंधित मामलों में राज्यपाल को अपनी एक विशेष रिपोर्ट भेज सकते हैं. रिपोर्ट के बाद छोड़ना पड़ेगा पद अगर लोकायुक्त की जांच में यह साबित हो जाता है कि आरोप सही हैं तो संबंधित लोकसेवक या सरकारी अधिकारी को पद पर रहने का अधिकार नहीं है. लोकायुक्त उनको पद से हटाए जाने की घोषणा भी कर सकता है. जिन मामलों में सक्षम प्राधिकारी राज्यपाल, राज्य सरकार या मुख्यमंत्री होते हैं, उन मामलों की सुनवाई के बाद इस घोषणा को मान भी सकते हैं या खारिज भी कर सकते हैं. लोकायुक्त दोषी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की भी सिफारिश कर सकता है. लोकायुक्त का उद्देश्य सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है. साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि लोक सेवक नागरिकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करें. लोकायुक्त अधिनियम भ्रष्टाचार से प्रभावी ढंग से निपटने और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है. ये भी पढ़ें- भारत के प्रसिद्ध मंदिरों के प्रसाद कैसे-कैसे, कहीं मिलता है लड्डू-पेड़ा तो कहीं 56 भोग 5,000 करोड़ के घोटाले का आरोप पिछले महीने कर्नाटक के गवर्नर थावरचंद गहलोत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देकर राज्य का सियासी तापमान बढ़ा दिया था. मामला जमीन के एक टुकड़े का है जो 3.14 एकड़ है. यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के नाम पर है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर मुदा द्वारा अधिग्रहित जमीन के एक टुकड़े को अपनी पत्नी के नाम से बदलने का आरोप है. मैसूर के एक पॉश इलाके में उनकी पत्नी को एक जमीन दी गई थी, जिसकी बाजार कीमत उनकी अपनी जमीन से ज्यादा है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने दावा किया है कि एमयूडीए घोटाला 4,000 से 5,000 करोड़ रुपये तक का है. जानिए क्या है पूरा मामला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) ने 1992 में रिहायशी इलाका विकसित करने के लिए किसानों से जमीन ली थी.  लिया था, लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा एमयूडीए ने किसानों को वापस कर दिया. आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में बदले में एक भूखंड अलॉट किया गया था जिसका संपत्ति मूल्य उनकी उस भूमि की तुलना में अधिक था जिसे एमयूडीए ने ‘अधिग्रहीत’ किया था. एमयूडीए ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ भूमि के बदले 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे. विपक्ष और कुछ कार्यकर्ताओं ने यह दावा किया है कि पार्वती के पास 3.16 एकड़ भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है. Tags: ExplainerFIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 13:16 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed