जमानत मिली फिर कौन से टेस्ट में फंसे केजरीवाल ED ने इसी को बनाया हथियार
जमानत मिली फिर कौन से टेस्ट में फंसे केजरीवाल ED ने इसी को बनाया हथियार
Arvind Kejriwal Bail Application: ईडी ने हाईकोर्ट में दलील दी कि अरविंद केजरीवाल की जमानत में ट्विन टेस्ट अप्लाई नहीं किया गया. क्या है ये, PMLA में क्या कहा गया है, समझते हैं...
दिल्ली की एक निचली अदालत ने पीएमएलए केस में जेल में बंद अरविंद केजरीवाल को जमानत दे दी. पर अगले ही दिन दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी. दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस सुधीर कुमार जैन की अगुवाई वाली बेंच ED की अर्जेंट अपील पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें केजरीवाल की जमानत पर स्टे की मांग की गई थी. हाईकोर्ट ने बेल पर स्टे लगाते हुए जजमेंट रिजर्व कर लिया है.
ED ने क्यों मांगा स्टे?
ईडी ने राउज एवेन्यू कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए दलील दी की ट्रायल कोर्ट ने केजरीवाल को जमानत देते हुए PMLA के तहत ‘ट्विन टेस्ट’ फार्मूले को अप्लाई नहीं किया. अगर ट्विन टेस्ट अप्लाई होता तो जमानत नहीं मिलती. हाईकोर्ट ने ईडी की दलील सुनने के बाद केजरीवाल की जमानत पर रोक लगा दी. सोमवार (24 जून) तक स्टेटस रिपोर्ट मांगी है. इसके बाद फैसला सुनाएगा.
PMLA में जमानत का क्या प्रावधान?
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) की धारा 45 में जमानत (Bail) से जुड़े प्रावधान हैं. इस धारा में सबसे पहले कहा गया है कि कोई भी अदालत इस कानून के तहत अपराधों के लिए जमानत नहीं दे सकती है. फिर कुछ अपवादों का भी जिक्र है. धारा 45 के मुताबिक PMLA के तहत जेल में बंद आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करने से पहले कोर्ट को पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (सरकारी वकील) को सुनना अनिवार्य है. इस धारा में कहा गया है कि अगर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर जमानत का विरोध करता है, तो अदालत को ट्विन टेस्ट (twin test) फॉर्मूला अप्लाई करना होगा.
क्या है ट्विन टेस्ट फॉर्मूला? (What is Twin Test)
ट्विन टेस्ट की दो शर्तें हैं…
1- कोर्ट के पास “यह मानने के लिए पर्याप्त आधार होना चाहिए कि प्राथमिक तौर पर आरोपी, संबंधित अपराध का दोषी नहीं पाया जाएगा..’
2- आरोपी को यदि जमानत मिलती है तो “उसके जमानत पर रहते हुए भविष्य में इस तरीके के किसी अपराध करने की आशंका नहीं है…”
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आदर्श तिवारी https://hindi.news18.com/ से बातचीत में कहते हैं कि क्रिमिनल केसेज (Criminal Cases) में ट्विन टेस्ट सबसे टफ माना जाता है. आसान शब्दों में कहें तो 302 के केस में जमानत लेना आसान है, लेकिन ट्विन टेस्ट में जमानत बहुत मुश्किल है, क्योंकि 302 या दूसरी धाराओं में कोर्ट यह नहीं देखता कि आरोपी पर दोष साबित होगा या नहीं. आरोप का नेचर और गंभीरता देखते हुए जज फैसला लेते हैं.
सिर्फ PMLA में इस तरह के प्रावधान नहीं हैं, बल्कि कई और गंभीर अपराध के मामले में भी ऐसे ही नियम हैं. उदाहरण के लिए ‘द ड्रग्स एंड कॉस्ंमेटिक्स एक्ट 1940’ (The Drugs and Cosmetics Act, 1940) की धारा 36एसी, द नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेन्सेज अधिनियम, 1985 की धारा 37 और UAPA एक्ट 1967 की धारा 43D(5).उदाहरण के लिए, यूएपीए में बेल से जुड़ा जो प्रावधान है, उसमें कहा गया है, ‘इस अधिनियम के चैप्टर IV (आतंकवादी गतिविधियों के लिए दंड) और अध्याय VI (आतंकवादी संगठन) के आरोपी किसी भी व्यक्ति को जमानत पर तब तक रिहा नहीं किया जाएगा, जब तक पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को सुनवाई का अवसर न दिया जाए…”
एडवोकेट तिवारी कहते हैं कि इसी तरह मकोका की धारा 21(4) है, जिसमें यही Twin टेस्ट अप्लाई होता है. अप्रैल 2024 में सुकेश चंद्रशेखर के मामले में, दिल्ली हाई कोर्ट ने ‘सुनील कुमार वर्सेज NCT Delhi’ केस में तिहाड़ जेल के सुपरिंटेंडेंट को 30 महीने बाद जमानत दी थी.
तो क्या कभी नहीं मिलेगी जमानत?
सीआरपीसी के सेक्शन 436 ए में कहा गया है कि अगर कोई आरोपी ट्रायल के दौरान सजा की आधी से ज्यादा अवधि पूरी कर लेता है, तो वह बेल का अधिकारी है. इसका मतलब यह है कि अगर मनी लांड्रिंग के केस में ईडी 3.5 साल के अंदर ट्रायल पूरा नहीं कर पाती है, तो संबंधित आरोपी जमानत का अधिकारी है. भले ट्विन टेस्ट अप्लाई हो या न हो.
Tags: Arvind kejriwal, CM Arvind KejriwalFIRST PUBLISHED : June 22, 2024, 13:28 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed