क्या रावण था पहला कांवड़िया क्यों भगवान शिव के लिए उसने किया था ये काम
क्या रावण था पहला कांवड़िया क्यों भगवान शिव के लिए उसने किया था ये काम
Kanvar Yatra : सावन का महीना शुरू होने वाला है. इसके साथ ही कांवड़ की शुरुआत हो जाएगी. क्या आपको मालूम है कि रावण किस तरह पहला कांवड़ ले जाने वाला बन गया था, जिससे उसने भगवान शिव पर गंगाजल चढ़ाया था.
हाइलाइट्स रावण ने इसके जरिए विष पीने वाले भगवान शिव के हलाहल को कम किया था इसके लिए रावण ने खास तप किया और गंगा के पानी से उन्हें नहलाया 1960 के दशक तक साधु और कुछ मारवाड़ी सेठ कांवड़ ले जाया करते थे
सावन का महीना भगवान शिव का पवित्र महीना माना जाता है. इस महीने में कांवड़ यात्रा होती है, जो 22 जुलाई से शुरू हो रही है. ये शिवरात्रि पर खत्म होती है. सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त तक चलेगा. क्या आपको मालूम है कि कांवड़ की शुरुआत कैसे हुई. फिर ये कैसे बढ़ती चली गई. अब कांवड़ ले जाने के लिए काफी संख्या में लोग जाते हैं. हालांकि पहले ऐसा नहीं था. ये भी माना जाता है कि रावण पहला कांवड़ यात्री था.
कांवड़ यात्रा जब सावन में शुरू होती है तो मोटे तौर पर जुलाई का वो समय होता है जबकि मानसून अपनी बारिश से पूरे देश को भीगा रहा होता है. इसकी शुरुआत श्रावण मास की शुरुआत से होती है. ये 13 दिनों तक यानि श्रावण की त्रयोदशी तक चलती है. इसका संबंध गंगा के पवित्र जल और भगवान शिव से है. इस बार ये यात्रा 22 जुलाई से प्रस्तावित थी.
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा के लिए श्रृद्धालु उत्तराखंड के हरिद्वार, गोमुख और गंगोत्री पहुंचते हैं. वहां से पवित्र गंगाजल लेकर अपने निवास स्थानों के पास के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में उस जल से चतुर्दशी के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं. दरअसल कांवड़ यात्रा के जरिए दुनिया की हर रचना के लिए जल का महत्व और सृष्टि को रचने वाले शिव के प्रति श्रृद्धा जाहिर की जाती है. उनकी आराधना की जाती है. यानि जल और शिव दोनों की आराधना. कांवड़ यात्रा का ये चित्र लंदन की मशहूर मैगजीन द इलैस्ट्रेटेड न्यूज में 1864 में उनके चित्रकार मांटगोमरी ने बनाया था. (file photo)
कैसे रावण ने भगवान शिव के विष को दूर किया
अगर प्राचीन ग्रंथों, इतिहास की मानें तो कहा जाता है कि पहला कांवड़िया रावण था. वेद कहते हैं कि कांवड़ की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही पड़ गई. तब जब मंथन में विष निकला तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा. तब भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया. इससे उनका गला नीला हो गया. इससे शिव के अंदर जिस नकारात्मक उर्जा ने जगह बनाई, उसको दूर करने का काम रावण ने किया.
फिर रावण ने तप किया
रावण ने तप करने के बाद गंगा के जल से पुरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया, जिससे शिव इस उर्जा से मुक्त हो गए. वैसे अंग्रेजों ने 19वीं सदी की शुरुआत से भारत में कांवड़ यात्रा का जिक्र अपनी किताबों और लेखों में किया. कई पुराने चित्रों में भी ये दिखाया गया है.
पहले इतने तामझाम से नहीं होती थी ये यात्रा
लेकिन कांवड़ यात्रा 1960 के दशक तक बहुत तामझाम से नहीं होती थी. कुछ साधु और श्रृद्धालुओं के साथ धनी मारवाड़ी सेठ नंगे पैर चलकर हरिद्वार या बिहार में सुल्तानगंज तक जाते थे और वहां से गंगाजल लेकर लौटते थे, जिससे शिव का अभिषेक किया जाता था. 80 के दशक के बाद ये बड़े धार्मिक आयोजन में बदलने लगा. अब तो ये काफी बड़ा आयोजन हो चुका है. इस चित्र में भगवान शिव वृहदेश्वर मंदिर में एक भक्त को आशीर्वाद दे रहे हैं. बगल के चित्र में एक महिला कांवड़ यात्री नजर आ रही है,इस चित्र को 1823 में बनाया गया था.
तकरीबन कितने कांवड़िए हर साल यात्रा करते हैं
आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2010 और इसके बाद हर साल करीब 1.2 करोड़ कांवड़िए पवित्र गंगाजल लेने हरिद्वार आते हैं.फिर इसे अपने माफिक शिवालयों में लेकर जाते हैं. वहां इस जल से भगवान शिव को पूजा – अर्चना के बीच नहलाते हैं. आमतौर पर कांवड़िए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, ओडिसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड से अब हरिद्वार पहुंचने लगे हैं.
पहले नंगे पैर ये यात्रा होती थी
क्योंकि इसमें आने वाले श्रृद्धालु चूंकि बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों के साथ पहुंचते हैं और इन्हीं टोकरियों में गंगाजल लेकर लौटते हैं. इस कांवड़ को लगातार यात्रा के दौरान अपने कंधे पर रखकर यात्रा करते हैं, इसलिए इस यात्रा कांवड़ यात्रा और यात्रियों को कांवड़िए कहा जाता है. पहले तो लोग नंगे पैर या पैदल ही कांवड़ यात्रा करते थे लेकिन अब नए जमाने के हिसाब से बाइक, ट्रक और दूसरे साधनों का भी इस्तेमाल करने लगे हैं.
क्या कांवड़ का संबंध केवल उत्तराखंड के गंगाजल से है
आमतौर पर परंपरा तो यही रही है लेकिन आमतौर पर बिहार, झारखंड और बंगाल या उसके करीब के लोग सुल्तानगंज जाकर गंगाजल लेते हैं और कांवड़ यात्रा करके झारखंड में देवघर के वैद्यनाथ मंदिर या फिर बंगाल के तारकनाथ मंदिर के शिवालयों में जाते हैं. एक मिनी कांवड़ यात्रा अब इलाहाबाद और बनारस के बीच भी होने लगी है.
कांवड़ यात्रा के बाद ज्यादातर कांवड़िए किन शिवालयों में जाते हैं
माना तो ये जाता है कि श्रावण की चतुर्दशी के दिन किसी भी शिवालय पर जल चढ़ाना फलदायक है लेकिन आमतौर पर कांवड़िए मेरठ के औघड़नाथ, पुरा महादेव, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर, झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर और बंगाल के तारकनाथ मंदिर में पहुंचना ज्यादा पसंद करते हैं. कुछ अपने गृहनगर या निवास के करीब के शिवालयों में भी जाते हैं.
Tags: Lord Shiva, Maha Shivaratri, Ravana effigy, Sawan somvarFIRST PUBLISHED : July 10, 2024, 12:39 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed