अकबर की तारीफ करते थे विवेकानंद तो औरंगजेब को कहते थे खराब शासक

स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि 04 जुलाई को होती है. महज 39 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया लेकिन इतने समय में ही भारत को वह काफी जगा गए. उनकी बातें लागलपेट से दूर बिल्कुल स्पष्ट होती थीं. कई मामलों में वह मुगलों के प्रशंसक थे.

अकबर की तारीफ करते थे विवेकानंद तो औरंगजेब को कहते थे खराब शासक
हाइलाइट्स स्वामी विवेकानंद तर्कवादी थे, वो पूर्वग्रहों से मुक्त थे और अपनी बातों को तर्क के साथ रखते थे उनका मानना था कि मुगलों ने इस देश में खुद को यहां की संस्कृति के साथ समाहित किया औरंगजेब के बारे में उनका मानना था कि उसने हिंदू धर्म पर हमला किया, इसलिए मुगल शासन भी बिखर गया ऐसा लगता है कि स्वामी विवेकानंद मुगल सम्राट अकबर के बारे में बहुत ऊंचा विचार रखते थे लेकिन औरंगजेब के बारे में उनकी राय बहुत अच्छी नहीं थी. वे अकबर की तुलना एक महान राजा से करते थे जबकि औरंगजेब के बारे में कहते थे कि वो लोगों के खून पर जीता है. अगर उनके भाषणों की बात की जाए तो ये कहा जा सकता है कि उन्होंने बहुत से भाषणों में मुगलों का जिक्र किया. काफी हद तक वो उनकी तारीफ करते थे, सिवाय औरंगजेब को छोड़कर. उनका कहना था कि भारत में मुगल शासन का आधार हिंदुओं को साथ लेकर चलना और उनके धर्म का सम्मान करना था, जिस दिन औरंगजेब ने इससे उलट किया, उसी दिन से मुगल साम्राज्य की उल्टी गिनती शुरू हो गई. विवेकानंद समग्र संपूर्ण कृतियां खंड 3 वेदांत अपने सभी चरणों में किताब में उन्होंने कहा, मुझे बताया गया है कि यह अकबर के शासनकाल के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों को एक साथ लाया गया. उन्होंने अकबर की तारीफ करते हुए कहा, महान मुगल सम्राट अकबर वस्तुतः हिन्दू थे. ((सी.डब्लू. खंड 5. साक्षात्कार) सिस्टर निवेदिता ने लिखा कि स्वामीजी अकबर का बहुत सम्मान करते थे. वह अधिकतर अकबर के बारे में ही बताया करते थे. इतिहास के शौकीन विवेकानंद मुगल वास्तुकला, उसकी कला और कविता से मोहित थे, लेकिन सबसे ज़्यादा मुगलों से. उनकी शिष्या सिस्टर निवेदिता ने बताया कि मुगलों की महानता एक ऐसा विषय था जिससे संन्यासी कभी नहीं थकते थे. ताजमहल ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया उन्हें अकबर के महल और अजमेर में मुस्लिम संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, सिकंदरा में अकबर का मकबरा, आगरा में ताजमहल और दिल्ली में मुगल स्मारकों और खंडहरों का दौरा करने के लिए जाना जाता है. ताजमहल से देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गए. उन्होंने पहली बार 1892 में ताजमहल का दौरा किया. स्मारक की सुंदरता ने स्पष्ट रूप से उन्हें अभिभूत कर दिया. उन्होंने एक साथी से कहा, “इस अद्भुत इमारत का हर वर्ग इंच पूरे दिन के धैर्यपूर्वक अवलोकन के लायक है, इसका वास्तविक अध्ययन करने के लिए कम से कम 06 महीने की जरूरत है.” मुगल लगातार उनके भाषणों का विषय हुआ करते थे निवेदिता ने विवेकानंद के साथ यात्रा करने और उनके पश्चिमी शिष्यों के लिए भारत के अतीत को जीवंत करने के उनके अनुभव के बारे में लिखा. मुगल विवेकानंद के भाषणों का एक लगातार विषय थे. अकबर की हमेशा तारीफ करते थे. ऐसा लगता है कि विवेकानंद की नज़र में शायद अशोक को छोड़कर अकबर भारत में शासन करने वाला सबसे महान सम्राट था. अकबर में उन्होंने लौकिक शक्ति और आध्यात्मिकता, वीरता और धर्मनिष्ठा, साधना और सहिष्णुता का अद्भुत संयोजन देखा. मुगलों को गैर भारतीय नहीं मानते थे निवेदिता लिखती हैं, विवेकानंद अकबर के चरित्र को इतना महत्व देते थे कि वे अक्सर कहा करते थे कि अकबर अपने पिछले जन्म में आत्मज्ञान की आकांक्षा रखने वाला व्यक्ति था, लेकिन वह लक्ष्य से चूक गया. उनकी प्रशंसा केवल मुगलों के सबसे प्रसिद्ध लोगों तक ही सीमित नहीं थी. बाबर, हुमायूं, जहांगीर, नूरजहां, शाहजहां, सभी की उन्होंने तारीफ की. शाहजहां के बारे में उन्होंने कहा, “आह! वह अपने वंश की शान थे! सुंदरता के प्रति एक ऐसी भावना और विवेक जो इतिहास में बेजोड़ है.” विवेकानंद के अनुसार, मुगल सम्राट किसी भी तरह से गैर-भारतीय नहीं थे. गोविंद कृष्णन वी ने अपनी किताब विवेकानंद द फिलास्फर ऑफ फ्रीडम में लिखा है कि भारत में दिए गए अपने व्याख्यान में उन्होंने “भारत का भविष्य” शीर्षक से मुस्लिम शासन के प्रभाव के बारे में बात की. वह कहते थे कि भारत पर मुसलमानों की विजय दलितों, गरीबों के लिए मुक्ति के रूप में आई. यही कारण है कि हमारे लोगों का पांचवां हिस्सा मुसलमान बन गया है. यह सब तलवार से नहीं हुआ. यह सोचना पागलपन की पराकाष्ठा होगी कि यह सब तलवार और आग का काम था.” मुगलों ने किसी देशी राजवंश की तरह ही शासन चलाया विवेकानंद मानते थे कि शुरुआती आक्रमणों में जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया लेकिन ये नहीं मानते थे कि इस्लाम पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में हथियारों के बल पर फैला. निचली जातियों के लिए एक ऐसा दरवाजा था, जिसने उन्हें जाति व्यवस्था के अत्याचार से बचाया. मुस्लिम विजेताओं, विशेष रूप से मुगल वंश ने भारत पर उपनिवेशवादियों के रूप में शासन नहीं किया, बल्कि ऐसे शासकों के रूप में शासन किया, जिन्होंने देश और उसके लोगों के साथ अपनी पहचान बनाई और किसी भी अन्य देशी राजवंश की तरह प्रशासन चलाया। औरंगजेब ने अति की और इसी वजह से मुगल साम्राज्य का अंत हुआ स्वामीजी कहते हैं कि औरंगजेब भारत में मुगल साम्राज्य के अंत के लिए जिम्मेदार था क्योंकि उसने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के साथ छेड़छाड़ की थी. इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि औरंगजेब एक धर्मी राजा नहीं था. जैसे ही औरंगजेब ने हिंदुओं के धर्म से छेड़छाड़ की, उसी दिन विशाल मुगल साम्राज्य गायब होने लगा.(सीडब्ल्यू खंड 9) स्वामीजी कहते हैं कि औरंगजेब भारत में मुगल साम्राज्य के अंत के लिए जिम्मेदार था क्योंकि उसने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के साथ छेड़छाड़ की थी. औरंगजेब एक धर्मी राजा नहीं था. Tags: Jodha Akbar, Mughal Emperor, Mughal Empire Aurangzeb, Swami vivekanandaFIRST PUBLISHED : July 4, 2024, 13:28 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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