शिव सेना की कहानी भाग 03 : ठाकरे नहीं बल्कि कई के दिमाग की उपज था ये संगठन
शिव सेना की कहानी भाग 03 : ठाकरे नहीं बल्कि कई के दिमाग की उपज था ये संगठन
जब शिव सेना का गठन हुआ तो उसे एक पार्टी का स्वरूप देने और उसे बनाने में केवल बाल ठाकरे की भूमिका नहीं थी बल्कि उसमें उनके अलावा तीन और लोगों की भी खास भूमिका थी. 90 के दशक में शिव सेना को वो सियासी ताकत हासिल हुई, जिसके लिए उसका 1966 में गठन किया गया था
शिवसेना की स्थापना में बाल ठाकरे के साथ दो-तीन लोगों की भूमिका थी. पेशे से आर्किटेक्ट माधव देशपांडे उसमें मुख्य थे. क्षेत्रीय ताकत के तौर पर शिवसेना के निर्माण का विचार उन्हीं का था. देशपांडे के पार्टनर पदमाकर अधिकारी और श्याम देशमुख ने मराठी मजदूरों को शिवसेना से जोड़ने में बड़ा काम किया. साथ ही वसंत प्रधान जो कि रेलवे में काम करते थे, लेकिन बाद में वकालत करके मजदूरों का केस लड़ने लगे.
सुजाता आनंदन की किताब ‘हिंदू हृदय सम्राट’ में पड़ताल की गई कि शिवसेना की स्थापना क्यों हुई. किताब कहती है, देशपांडे ने कांग्रेस पार्टी द्वारा मराठियों की अनदेखी के विरोध में हिंदुओं को एकजुट करने के उद्देश्य से शिवसेना बनाई थी. बाल ठाकरे को इसे पार्टी का दर्जा दिलाने में दस साल का समय लग गया. शिवसेना ने आपातकाल के समय में सरकारी कहर से बचने के लिए पार्टी के किसी कार्यकारी के नाम को कागजात पर दर्ज नहीं किया. ठाकरे ने गिरफतारी से बचने के लिए बिना किसी पद के पार्टी के संचालन का फैसला किया.
80 के दशक तक ऐसा लगने लगा कि बंबई पर शिव सेना और बाल ठाकरे का राज है. मुंबई की नगर पालिकाओं पर उनका कब्जा हो चुका था. बड़े उद्योगपतियों का विश्वास वो जीत चुके थे. बॉलीवुड भी ठाकरे के साथ खड़ा नजर आने लगा था. उन्होंने बंबई में साउथ के डायरेक्टर्स की फिल्मों की शूटिंग भी रुकवा दी. बंबई के कुछ डायरेक्टर और प्रोड्यूसर ठाकरे की इस अदा पर फ़िदा हो गए. बॉलीवुड के बड़े बड़े स्टार, निर्माता, निर्देशक उनके घर पर आकर हाजिरी बजाने लगे. 80 के दशक तक ऐसा लगने लगा कि बंबई पर शिव सेना और बाल ठाकरे का राज है. मुंबई की नगर पालिकाओं पर उनका कब्जा हो चुका था. बॉलीवुड के फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर भी उनके घर आकर हाजिरी बजाने लगे थे. बड़े उद्योगपतियों तक उनकी सीधी पहुंच थी. (courtesy – shiv sena portal)
आपातकाल में इंदिरा का समर्थन किया
हालांकि बाल ठाकरे ने समय के साथ यूटर्न भी लिया. उन्होंने 1975 में इंदिरा गांधी सरकार के लगाए आपातकाल का और फिर 1977 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस का समर्थन किया था. 1977 में मुंबई के मेयर के चुनाव में कांग्रेस नेता मुरली देवड़ा को जिताने में भी बाल ठाकरे ने अहम भूमिका निभाई थी.
हालांकि उन्होंने इसके बदले कुछ नुकसान भी झेलना पड़ा.
1978 में महाराष्ट्र विधानसभा और बंबई म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) के चुनाव में शिव सेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. आपातकाल के प्रति अपना समर्थन जताने के लिए तो बाल ठाकरे खुद बंबई के राजभवन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने गए थे. उन्होंने न सिर्फ़ आपातकाल का समर्थन किया था बल्कि उसे उन्होंने श्रीमती गांधी का साहसिक क़दम बताते हुए उन्हें बधाई भी दी थी.
राष्ट्रपति के चुनाव में भी बीजेपी के खिलाफ गए
2012 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में शिवसेना ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था, जबकि बीजेपी ने उनके ख़िलाफ़ पीए संगमा को एनडीए का उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा था. शिवसेना के समर्थन का शुक्रिया अदा करने खुद प्रणब मुखर्जी शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे से मिलने उनके निवास पर पहुंचे थे. वर्ष 2012 के राष्ट्रपति चुनावों में बाल ठाकरे ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया तो 2007 में भी प्रतिभा पाटिल के पक्ष में खड़े हुए. (courtesy – shiv sena portal )
2007 में भी शिवसेना ने राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल को समर्थन दिया था. उस चुनाव में तत्कालीन उपराष्ट्रपति और बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे भैरोसिंह शेखावत बीजेपी नीत एनडीए के उम्मीदवार थे. राष्ट्रपति पद के दोनों चुनावों में शिवसेना का समर्थन लेने से कांग्रेस ने कोई परहेज नहीं किया.
शिव सेना को मिलने लगीं सुर्खियां
वैसे मुंबई में तोड़फोड़, अराजकता, दंगे कराने में भी कई बार शिव सेना का नाम आया. उस पर तमाम आरोप भी लगे. उसने कई ऐसे काम भी किए, जिसने उसे सुर्खिया तो दी हैं. जैसे 1991 में वानखेड़े और 1999 में फिरोजशाह कोटला की पिच शिवसेना के लोगों ने खोद दी. क्योंकि भारत-पाकिस्तान का मैच होनेवाला था. 1999 में तो BCCI के ऑफिस में तोड़-फोड़ भी की गई.
1983 वाले वर्ल्ड कप को तोड़ दिया गया. 1998 में दीपा मेहता की ‘फायर’ के खिलाफ शिवसेना ने उत्पात मचाया. बरसों पहले विजय तेंदुलकर समेत कई लोगों के नाटकों के खिलाफ नाटक करनेवाली शिवसेना ने 1997 में ‘मी नाथूराम गोडसे बोलतोय’ नाटक का मंचन करवाया. ये नाटक महात्मा गांधी के खिलाफ है. 1989 में उन्होंने अपने मुखपत्र “सामना” का प्रकाशन शुरू किया, जो लोगों से जुड़ने का उनका असरदार प्लेटफार्म भी बना. 90 के दशक में वो मजबूत होने लगे. ( courtesy – shiv sena portal)
असली सियासी ताकत 90 के दशक में मिली
शिव सेना को असली राजनीतिक ताकत और सत्ता दोनों 90 के दशक में हासिल हुई. 1989 में उन्होंने अपने मुखपत्र “सामना” का प्रकाशन शुरू किया, जो लोगों से जुड़ने का उनका असरदार प्लेटफार्म भी बना. 90 के दशक में वो मजबूत होने लगे.
1995 में पहली बार शिव सेना ने बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई. शिव सेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने. 04 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद फिर नारायण राणे को शिव सेना ने सीएम बनाया. केंद्र में पहले अटल बिहारी वाजपेयी और फिर नरेंद्र मोदी की सरकार में शिव सेना के लोगों को केंद्रीय मंत्रियों के महकमे मिले.
फिर सत्ता से बाहर भी बैठे
हालांकि 1995 में 05 साल तक सत्ता सुख देखने के बाद शिव सेना और बीजेपी गठबंधन को 1999 के अगले चुनाव पराजय का सामना करना पड़ा. फिर वो लंबे समय तक विपक्ष में बैठे. कांग्रेस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी , सपा, आरपीआई के साथ ऐसा ताना-बाना बुना कि भाजपा और शिवसेना के लोग सत्ता के लिए तरस गए.
फिर कुछ नेताओं ने शिव सेना छोड़ी भी
एकजमाने में बाल ठाकरे के डर से शिवसेना के नेता पार्टी छोड़ने से डरते थे लेकिन 90 के दशक के आखिर से ये भी होने लगा. छगन भुजबल, नारायण राणे औऱ संजय निरूपम जैसे नेताओं ने पार्टी छोड़ी. राज ठाकरे अलग हुए. हालांकि शिव सेना की अपनी दिक्कतें भी हैं. सत्ता से साथ हर पार्टी में आने वाली बुराइयां और संगठन पर कमजोर पकड़ भी उसके हिस्से में आई है.
कहां है शिव सेना की असली पकड़
शिव सेना की असली ताकत अब भी उसकी गांवों से लेकर शहरों तक फैली शाखाएं हैं, जो लोगों की भरपूर मदद करती हैं. पत्रकार सुनील गाताडे कहते हैं, ये कहना सही नहीं होगा कि उसका ढांचा कमजोर पड़ा है. अगर कोई पार्टी लगातार बेहतर कर रही है, पिछले एक दशक में उसने खुद को अलग पटरी पर लाकर एक अलग कलेवर में ढाला है, तो वो बगैर संरचना बेहतर हुए ये नहीं हो सकता. हां लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि ये फुलप्रुफ आर्गनाइजेशन नहीं है, जिस तरह कभी महाराष्ट्र में कभी कांग्रेस की जड़ें गावों तक बहुत मजबूत हुआ करती थीं, वो अब सेना के साथ है.
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Tags: Maharashtra, Shiv sena, Shiv Sena MLA, Uddhav thackerayFIRST PUBLISHED : June 29, 2022, 13:09 IST