स्कूली किताब में मनुस्मृति पर भूचाल क्यों अंबेडकर ने जलाया था ये ग्रंथ

महाराष्ट्र में स्कूली किताबों में मनुस्मृति के अंश शामिल करने पर जब नाराजगी फैलने लगी तो राज्य सरकार ने कदम पीछे खींच लिया. जानते हैं कि क्यों करीब 97 साल पहले डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे जलाया था. उसका क्या असर हुआ था.

स्कूली किताब में मनुस्मृति पर भूचाल क्यों अंबेडकर ने जलाया था ये ग्रंथ
हाइलाइट्स 25 दिसंबर 1927 को अंबेडकर ने महाराष्ट्र के महाड़ गांव में इसे जलाया था भीमराव अंबेडकर के इस कदम पर उच्च जातियों में काफी नाराजगी फैली थी मनुस्मृति को दलित हमेशा सामाजिक अन्याय के ग्रंथ के रूप में देखते हैं महाराष्ट्र में नए स्कूली पाठ्यक्रम में एक ऐसे चैप्टर को लेकर विवाद हो गया है, जिसकी शुरुआत मनुस्मृति के एक श्लोक से हुई. बढ़ती नाराजगी के बाद सरकार ने इसे हटा लिया. मनुस्मृति हमेशा से देश में सामाजिक तौर पर विवादित ग्रंथ माना जाता रहा है. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने तो इसे जातिवादी और पिछड़ी जातियों के प्रति अन्याय करने वाला बताया था. उन्होंने इसे पिछड़ी जातियों के प्रति अन्याय का प्रतीक मानते हुए जलाया था. हालांकि उस समय इसका बहुत विरोध हुआ था. नाराजगी भी फैली थी. दरअसल महाराष्ट्र में पिछले हफ़्ते राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने नए महाराष्ट्र राज्य पाठ्यक्रम ढांचे (SCF) का अनावरण किया. जिसमें एक किताब का अध्याय छात्रों के चरित्र निर्माण पर केंद्रित था. इसकी शुरुआत मनुस्मृति के एक संस्कृत श्लोक से हुई. इसे शामिल करने की आलोचना जब हर ओर से हुई तो राज्य सरकार ने कदम पीछे खींच लिया. दरअसल दलित और पिछड़ा वर्ग हमेशा से इसे सामाजिक तौर अन्यायपूर्ण हिंदू ग्रंथ के तौर पर इसे देखता रहा है. क्या आपको मालूम है कि क्यों डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे सार्वजिनक तौर पर दहन किया. जिसे लेकर आज भी हर साल मनुस्मृति दहन दिवस मनाया जाता है. किस दिन अंबेडकर ने ये काम किया वो 25 दिसंबर, 1927 का दिन था जब डॉ. अंबेडकर ने मनुस्मृति का सार्वजनिक दहन किया. अंबेडकर ने पहले से घोषणा कर दी थी कि वह इस हिंदू ग्रंथ को जलाएंगे. जो जगह उन्होंने इसके लिए चुनी वो महाड़ नाम का महाराष्ट्र का तटीय इलाका था, जो कोलाबा (अब रायगढ़) जिले में था. अंबेडकर दासगाओं बंदरगाह से एक बोट से वहां पहुंचे. सड़क से वह इसलिए नहीं गए, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि बस यात्रा में उन्हें विरोध का सामना करना पड़ सकता है. क्या सोच थी ऐसा करने के पीछे अंबेडकर मनुस्मृति को जातिवादी और पितृसत्तात्मक मानदंडों के खिलाफ मानते थे. बकौल उनके, मनुस्मृति ऐसा हिंदू ग्रंथ है, जो जाति उत्पीड़न को संस्थागत बनाता था. निचली जातियों, विशेषकर दलितों और महिलाओं के शोषण और भेदभाव को उचित ठहराता था. इसके प्रति विरोध दर्ज कराने और उत्पीड़ित समुदायों को जागरूक करने के एक तरीके के रूप में देखा गया. वह मानते थे कि ऐसे ग्रंथ के खत्म होने पर ही एक समतावादी समाज का निर्माण हो सकता है. जहां हर कोई समानता और सम्मान के साथ रहेगा. किस तरह दहन के लिए वेदी बनाई गई महाड़ में मनुस्मृति को जलाने के लिए एक वेदी बनाई गई. वेदी के लिए 6 इंच गहरा और 1.5 फुट वर्ग का गड्ढा खोदा गया. इसमें चंदन की लकड़ी डाली गई. वेदी इसके तीन तरफ बैनर लगे थे. एक एक पन्ना फाड़कर वेदी में डाला गया 25 दिसंबर 1927 को सुबह 9 बजे मनुस्मृति का एक-एक पन्ना फाड़कर डॉ. अंबेडकर, सहस्त्रबुद्धे और अन्य छह दलित साधुओं ने वेदी में डाला. विरोध की वजह जो तब फिर दोहराई गईं इस मौके पर ये बताया गया कि किस आधार पर मनुस्मृति का विरोध करना चाहिए और यहां मौजूद लोग संकल्प करें कि इन बातों का विरोध करेंगे. संस्थागत जातिवाद और अस्पृश्यता- मनुस्मृति ने जाति-आधारित भेदभाव और अस्पृश्यता की व्यवस्था को कायम रखा. इससे निचली जातियों, विशेषकर दलितों का उत्पीड़न और शोषण होता रहा. पितृसत्तात्मक और लिंगवादी मानदंड – किताब में महिलाओं को अपमानित किया गया, उन्हें केवल पुरुषों के आनंद और नियंत्रण की वस्तु के रूप में चित्रित किया गया. ब्राह्मणवादी वर्चस्व – मनुस्मृति ने अन्य जातियों पर ब्राह्मण वर्ग के प्रभुत्व को मजबूत किया, जिसे डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक समानता और प्रगति के लिए एक बड़ी बाधा के रूप में देखा. मानव अधिकारों और गरिमा का अभाव – किताब में महिलाओं और निचली जातियों को बुनियादी मानव अधिकारों और सम्मान से वंचित किया गया. अंबेडकर को क्या लगता था कि इससे क्या बदलेगा डॉ. अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाने को दमनकारी विचारधाराओं के खिलाफ विरोध के एक प्रतीकात्मक कार्य के रूप में देखा. उन्होंने इसकी विरोध के अन्य कामों से किया, जैसे गांधी द्वारा विदेशी कपड़े जलाना. सशक्तिकरण और समानता – डॉ. अंबेडकर का मानना ​​था कि मनुस्मृति का दहन दलितों और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा, जिससे आखिरकार एक अधिक समतावादी समाज बन सकेगा. जो संकल्प मौजूद लोगों को दिलाया गया उस दिन जो लोग वहां मौजूद थे, उन सभी ने मिलकर ये संकल्प लिया. जिसे हर साल अब भी मनुस्मृति दहन दिवस पर लिया जाता है 1. मैं जन्म आधारित चार वर्णों में विश्वास नहीं रखता हूं 2. मैं जाति भेद में विश्वास नहीं रखता हूं. 3. मेरा विश्वास है कि जातिभेद हिन्दू धर्म पर कलंक है. मैं इसे खत्म करने की कोशिश करूंगा. 4. यह मान कर कि कोई भी ऊंचा-नीचा नहीं है, मैं कम से कम हिन्दुओं में आपस में खान-पान में कोई प्रतिबंध नहीं मानूंगा. 5. मेरा विश्वास है कि दलितों का मंदिर, तालाब और दूसरी सुविधाओं में समान अधिकार है. बाद में इसका क्या असर हुआ – दलित समुदाय को उत्साहित किया और उन्हें इन अन्यायों को चुनौती देने की जरूरतों को लेकर संवेदनशील बनाया – दलितों और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों की अथक वकालत शुरू हुई. शैक्षिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बहिष्कृत हितकारिणी सभा जैसे संगठनों की स्थापना हुई. – 1932 में, अंबेडकर ने गांधीजी के साथ पूना समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे प्रांतीय विधानसभाओं में दलितों के लिए आरक्षित सीटें सुरक्षित हो गईं. यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक जीत थी जिसने उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बड़ी जगह दी. – भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में, अम्बेडकर ने दलितों और अन्य हाशिए के समूहों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रावधानों को शामिल करना सुनिश्चित किया. इनमें अस्पृश्यता का उन्मूलन, सकारात्मक कार्रवाई नीतियां और अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना शामिल थी. क्या है मनुस्मृति मनुस्मृति हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथों में एक है. इसमें 12 अध्याय और 2,694 श्लोक हैं. हालांकि कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है. इसे हिंदुओं की ‘आचार संहिता’ भी माना जाता है. एक वर्ग का दावा है कि मूल मनुस्मृति में जातीय भेदभाव और महिलाओं के प्रति अपमानजनक बातें नहीं थीं. बाद में इसे जोड़ा गया. इसका 1776 में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया. Tags: B. R. ambedkar, Dalit Community, Dalit Leader, Dr. Bhim Rao Ambedkar, Dr. Bhimrao AmbedkarFIRST PUBLISHED : May 30, 2024, 17:18 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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