Mahabharat: युधिष्ठिर ने एक नहीं कई बार क्यों बोला झूठ जिससे हुआ बड़ा नुकसान
Mahabharat: युधिष्ठिर ने एक नहीं कई बार क्यों बोला झूठ जिससे हुआ बड़ा नुकसान
Mahabharat Katha: महाभारत में युधिष्ठिर को धर्मराज कहा जाता था, माना जाता था कि वो कभी झूठ बोलते ही नहीं लेकिन उन्होंने जीवन में एक बार नहीं कई बार उन्होंने झूठ बोला. छल का सहारा लिया और न्यायपथ से भी भटके.
हाइलाइट्स कैसे युधिष्ठिर के सबसे बड़े झूठ से गईं द्रौपदी के पांच बेटों की जान युधिष्ठिर ने अज्ञातवास में भी बोला लगातार क्या झूठ एक और मौके पर उन्होंने पांडवों की पहचान के बारे में असत्य बताया
पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर के बारे में कहा जाता था कि वो हमेशा सच बोलते हैं. झूठ उन्होंने कभी नहीं बोला. इसलिए वह सत्य, धर्म और न्याय के सबसे बड़े प्रतीक माने लगे. हालांकि हम सभी को मालूम है कि उन्होंने महाभारत के युद्ध में एक बार झूठ बोला लेकिन क्या आप जानते हैं कि युधिष्ठिर ने अपनी जिंदगी में कई बार झूठ बोले. छल का भी सहारा लिया. एक बार वह बुरी तरह न्याय के पथ से भी भटके. हम आपको इसके बारे में आगे बताएंगे.
महाभारत की कहानी खुद इसे जगह जगह जाहिर करती है कि युधिष्ठर को कब कब असत्य बोलना पड़ा. झूठ का सहारा लेना पड़ा और धोखे को भी आड़ बनाना पड़ा. इसके बारे में आगे सबकुछ बताएंगे. लेकिन पहले जानते हैं कि क्या था युधिष्ठिर का सबसे बड़ा झूठ. जिसने उनके गुरु की ही जान ले ली. और काफी हद तक यही झूठ द्रौपदी से उनके पांचों पुत्रों की हत्या का कारण भी बना.
सबसे बड़ा झूठ, जिसने ली द्रौपदी के 5 बेटों की भी जान
युधिष्ठिर का सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला झूठ “अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा” (अश्वत्थामा मारा गया, मनुष्य हो या हाथी) है, जो महाभारत युद्ध के दौरान द्रोणाचार्य को हराने के लिए बोला गया था.
महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य एक अपराजेय योद्धा थे. उन्हें पराजित करना असंभव था, क्योंकि वे तब तक हथियार नहीं डाल सकते थे, जब तक उन्हें अपने पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु का विश्वास न हो. कृष्ण ने यह रणनीति बनाई कि द्रोणाचार्य को झूठ बोलकर उनके पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु का संदेश दिया जाए. भीम ने एक हाथी को मारकर उसे “अश्वत्थामा” नाम दिया, और कहा, “अश्वत्थामा मारा गया.”
जब द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से सत्यता की पुष्टि मांगी, तो युधिष्ठिर ने कहा, “अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा” (अश्वत्थामा मारा गया, चाहे वह मनुष्य हो या हाथी).
युधिष्ठिर ने यह वाक्य सत्य और झूठ का मिश्रण कर कहा, और कृष्ण ने “कुंजरो वा” (हाथी या मनुष्य) के शब्दों को दबा दिया, जिससे द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र की मृत्यु का विश्वास कर हथियार डाल दिए. उन्हें धृष्टद्युम्न ने मार दिया.
तब क्रोध में अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांच बेटों की हत्या कर दी
इस घटना की जानकारी जब द्रोणाचार्य के बेटे अश्वत्थामा को मालूम हुई और ये पता लगा कि युधिष्ठिर से झूठ कहलवा कर उसके पिता की हत्या की गई तो वह क्रोध से पागल हो गया. उसने इसका प्रतिशोध लेने की ठानी. इसी के चलते रात में पांडवों के कैंप में घुसा और पांचों पांडवों की गलतफहमी में द्रौपदी के लेटे हुए पांच बेटों की हत्या कर दी. जब युधिष्ठिर अज्ञातवास में राजा विराट के दरबार में कंक बनकर गए तो उन्हें अपनी पहचान के बारे में रोज ही झूठ बोलना पड़ता था. (image generated by Meta AI)
इसी झूठ की वजह से युधिष्ठिर नर्क भी गए
महाभारत की कथा बताती है कि अपने इस झूठ के कारण युधिष्ठिर को थोड़ी देर के लिए नर्क भी जाना पड़ा. हालांकि ये थोड़ी ही देर के लिए था. फिर वो स्थायी तौर पर स्वर्ग में आ गए. लेकिन ये झूठ युधिष्ठिर के लिए हमेशा का कलंक बन गया.
दूसरा झूठ कब बोला
युधिष्ठिर ने दूसरा झूठ तब बोला, जब सारे पांडव लाक्षागृह से बच निकले. वह गुपचुप रहने लगे. इस बीच जब राजा द्रुपद ने द्रौपदी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया. तब युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ ब्राह्णणों के भेष में पहुंचे. जब उनसे उनकी पहचान पूछी गई तब उन्होंने झूठ का सहारा लेते हुए खुद और भाइयों की पहचान छिपा ली. तब उन्होंने सभी को ब्राह्मण को बताया.
द्रौपदी के स्वयंवर में जब अर्जुन जीत गए और वहां पहुंचे सारे राजा इससे नाराज हो गए. तब युधिष्ठिर ने पांडवों की सही पहचान बताने की बजाए सभी को ब्राह्णण ही बताया.
तब भी युधिष्ठिर ने झूठ बोला
महाभारत के अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठिर जब अपनी और भाइयों की पहचान छिपाते हुए राजा विराट के दरबार में पहुंचे तो उन्होंने खुद को एक ब्राह्मण और कंक नामक पासा खेलने वाले व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया. ये झूठ तो था लेकिन इसे एक रणनीतिक छल या छद्मवेश कहा जा सकता है.
जब तक युधिष्ठिर ने कंक के रूप में राजा विराट की सेवा की, तब तक रोज ही अपनी पहचान छिपाई और अपने बारे में झूठ बोलते रहे. ये बताते रहे कि किस तरह जब वह पिछले राजा के साथ काम कर रहे थे तो वो उनके खेल और चातुर्य का कितना प्रशंसक था.
तब उन्हें राजा विराट से रोज ही अपनी पहचान के बारे में असत्य ही बोलना पड़ता था. हालांकि ये कह सकते हैं कि उन्होंने कोई ऐसा झूठ नहीं बोला जिससे किसी को सीधे नुकसान पहुंचे या जिससे नैतिकता का बड़ा उल्लंघन हुआ हो.
तब भी वह न्याय के पथ से भटक गए
जब युधिष्ठिर शकुनि के साथ पासा खेल रहे थे, तब वह खुद को हार गए इसके बाद भी उन्होंने अपने भाइयों और फिर द्रौपदी को दांव पर लगा दिया. न्याय कहता है कि युधिष्ठिर ऐसा नहीं कर सकते थे. ये भी युधिष्ठिर की न्याय राह में एक विचलन ही कहा जाता है.
अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाकर उन्होंने नैतिकता का उल्लंघन किया. युधिष्ठिर ने कई मौकों पर नीतिगत उलझनों में सत्य और धर्म के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की. कुछ जगहों पर उन्होंने सत्य को रणनीति के तहत तोड़ा या ढाल के रूप में इस्तेमाल किया. कई जगहों पर उन्होंने सत्य से समझौता भी किया, क्योंकि ये समय की जरूरत थी.
तो कहा जा सकता है कि परिस्थितिया युधिष्ठिर को कभी-कभी सत्य से समझौता करने के लिए मजबूर करती थीं. तब वह ऐसा करते भी थे.
Tags: MahabharatFIRST PUBLISHED : December 4, 2024, 15:30 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed