किसकी मृत्यु से युधिष्ठिर के शरीर में समाई दूसरी आत्मा शव बना सुदर्शन चक्र

Mahabharat Katha: महाभारत में युधिष्ठिर के साथ कई ऐसी बातें हुईं जो किसी के साथ नहीं हुई. वो सशरीर जीवित स्थिति में ही स्वर्ग पहुंचे. यही नहीं उनके शरीर में दूसरी आत्मा भी समा गई, जो उन्हीं के एक परिजन की थी.

किसकी मृत्यु से युधिष्ठिर के शरीर में समाई दूसरी आत्मा शव बना सुदर्शन चक्र
हाइलाइट्स वह नहीं चाहते थे कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार हो इसीलिए कृष्ण ने उनकी देह को सुदर्शन चक्र में बदल दिया युधिष्ठिर को कैसे महसूस हुआ कि उनके शरीर में कोई और आ गया सुनने में ये अजीब लगेगा लेकिन सच है कि युधिष्ठिर के शरीर में महाभारत के युद्ध के बाद उन्हीं के एक परिजन की आत्मा समा गई. जब ऐसा हो रहा था जब युधिष्ठिर को बहुत अजीब सा महसूस हुआ. फिर बाद में उन्हें पता चला कि उनके शरीर में एक और आत्मा आ गई है. ये तब हुआ जबकि उनके पिता के तीसरे भाई की मृत्यु हुई. हालांकि पांडु और धृतराष्ट्र के इन तीसरे भाई को महाभारत के युद्ध के बाद इतनी आत्मग्लानि महसूस हुई कि उन्होंने साफ कह दिया था कि वह नहीं चाहते कि उनकी मृत्यु के बाद उनका दाह संस्कार किया जाए. केवल यही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि उनके पार्थिव शरीर को ना तो पानी में प्रवाहित किया जाए और ना ही इसे जमीन में दफनाया जाए. तब उनके शव का क्या हुआ,. इस सवाल का जवाब देने से पहले हम आपको बता देते हैं कि ये शख्स कौन थे. वह विदुर थे. जो धृतराष्ट्र और पांडु के तीसरे भाई थे. लेकिन दासी पुत्र होने के कारण उन्हें राजगद्दी के लायक नहीं समझा गया लेकिन वह महाभारत के सबसे बुद्धिमान और सही-गलत समझने वाले शख्स थे. विदुर दूरदर्शी और बहुत बुद्धिमान शख्स थे. उनकी नीतियां और बातें बेशक व्यवहारिक होती थीं लेकिन जीवन में बहुत काम आती थीं. (image generated by Leonardo AI) कैसे हुआ था उनका जन्म विदुर का जन्म महर्षि वेदव्यास और रानी अम्बिका की दासी के गर्भ से हुआ. इस कारण वह दासी पुत्र माने गए. उन्हें राजगद्दी पर नहीं बैठाया गया. हालांकि वे धृतराष्ट्र और पांडु के बड़े भाई थे. वह अपने दोनों भाइयों की तुलना में कहीं ज्यादा सुलझे हुए और विद्वान थे. उनकी नीतियां हमेशा समय की कसौटी पर खरी उतरीं. वह हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री थे विदुर को हस्तिनापुर का प्रधानमंत्री बनाया गया था. उनकी सलाह ने कई बार पांडवों को संकट से बचाया. उन्होंने महाभारत युद्ध का खुलकर विरोध किया. धृतराष्ट्र को समझाने की कोशिश की कि युद्ध विनाशकारी होगा, लेकिन उनके पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र ने उनकी सलाह को अनसुना किया. इस युद्ध में हुए अपार विनाश और लोगों की मृत्यु ने उन्हें दुखी कर दिया. विदुर महाभारत युद्ध में महाविनाश से इतने मर्माहत थे कि उन्होंने तय कर लिया था कि उनके शरीर का ना तो अंतिम संस्कार होगा और ना ही उनके शरीर का कोई अंश धरती पर रहेगा. (image generated by leonardo ai) वह अपनी मृत देह के बारे में क्या चाहते थे इस युद्ध के बाद उन्होंने तय किया कि इस धरती पर वह मृत्यु के बाद अपने शरीर का कोई अंश नहीं छोड़ना चाहेंगे. लिहाजा उन्होंने किसी भी तरह के अंतिम संस्कार से मना कर दिया. तब उनकी मृत देह का क्या हुआ. तो युधिष्ठिर को क्यों अजीब सा लगा  विदुर ने युद्ध के बाद वन में साधारण जीवन बिताया. जब उनका अंतिम समय आया, तो पांडव उनसे मिलने पहुंचे. उनके पहुंचते हुए उनके सामने उन्होंने जैसे ही प्राण त्यागे तो युधिष्ठिर को बहुत अजीब सा महसूस हुआ. उन्हें ये लगा जैसे उनके शरीर में कोई और भी आ गया हो. वह खुद नहीं समझ पाए कि उनके साथ ये क्या हो गया है. विदुर की आत्मा युधिष्ठिर के शरीर में समा गई दरअसल विदुर की आत्मा युधिष्ठिर के शरीर में समा गई. ये बात युधिष्ठिर को कृष्ण ने बताई. उन्होंने ये भी बताया कि विदुर खुद धर्मराज के अवतार थे, लिहाजा उनकी आत्मा ने युधिष्ठिर के शरीर में मिलन कर लिया. युधिष्ठिर को खुद धर्मराज का पुत्र माना जाता था. लिहाजा युधिष्ठिर ने बाद का जीवन विदुर की आत्मा के साथ भी जिया. क्या थी अंतिम इच्छा  युद्ध के दौरान, विदुर ने भगवान श्री कृष्ण से अपनी अंतिम इच्छा जाहिर की थी. उन्होंने अनुरोध किया था कि उनकी मृत देह को सुदर्शन चक्र में बदल दिया जाए. लिहाजा भगवान कृष्ण ने ऐसा ही किया. इस तरह विदुर का अंतिम संस्कार नहीं हुआ. शरीर रुपांतरित हो गया. उनके कितने बच्चे थे विदुर की एक पत्नी सुलभा थी. उनके दो पुत्र अनासव और अनुकेतु थे. साथ में उनकी एक बेटी भी थी जिसका नाम अम्बावती था. लेकिन उनके दोनों पुत्रों और पुत्री के बारे में कोई जानकारी महाभारत में नहीं मिलती. युधिष्ठिर में क्या बदलाव आया इससे विदुर की आत्मा युधिष्ठिर में समाने का मतलब ये भी है कि विदुर की बुद्धिमत्ता और अनुभव का लाभ फिर युधिष्ठिर खुद ब खुद ही मिलता रहा. विदुर ने हमेशा धर्म और नैतिकता का पालन किया. लिहाजा फिर युधिष्ठिर को भी सही निर्णय लेने में मदद मिलती रही. Tags: MahabharatFIRST PUBLISHED : November 28, 2024, 13:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed