1971 में भारतीय सेनाएं पाकिस्तान में कहां तक घुसीं थी कि करतारपुर ले सकती थीं

वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को युद्ध में भारत के खिलाफ बुरी हार का सामना करना पड़ा था. भारतीय सेनाओं की मदद से एक ओर तो बांग्लादेश बना तो दूसरी ओर हमारी सेनाएं दुश्मन देश में काफी बड़े इलाके में कब्जा कर चुका था.

1971 में भारतीय सेनाएं पाकिस्तान में कहां तक घुसीं थी कि करतारपुर ले सकती थीं
हाइलाइट्स भारत ने तब पाकिस्तान के बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया था इसमें पीओके, पंजाब और सिंध के इलाके शामिल थे युद्ध 03 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर 1971 तक चला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटियाला में एक चुनावी रैली में कहा कि अगर मैं 1971 में प्रधानमंत्री होता तो पाकिस्तान में हमारी सेनाओं की बढ़त के बाद करतारपुर साहिब को कब्जे में लेता, उसे पाकिस्तान को नहीं देता. वैसे ये बात सही है कि वर्ष 1972 में भारतीय सेनाओं ने जो शानदार काम किया था, उसने पाकिस्तान के हौंसलों को बुरी तरह तोड़कर रखा ही नहीं था बल्कि इस दुश्मन देश को तोड़कर बांग्लादेश बना दिया था. तब भारतीय सेनाएं पाकिस्तान में काफी अंदर तक घुस गईं. तब भारतीय सेना ने पाकिस्तान में करीब 15,010 वर्ग किलोमीटर (5,795 वर्ग मील) भूमि पर कब्जा कर लिया था. 90000 से ज्यादा सैनिकों को बंदी बना लिया. प्रधानमंत्री मोदी का यही कहना है कि तब उस युद्ध में हम जिस बढ़त की स्थिति में थे, उसमें पाकिस्तान के इतने सैनिकों को रिहा करने के बदले उससे करतारपुर लेने का काम कर सकते थे. भारत ने वापस लौटा दी थी कब्जा की गई जमीन हालांकि तब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो शिमला में युद्ध में पराजय के बाद समझौता करने आए थे. इस समझौते के बाद भारत ने पाकिस्तान के सभी बंदी सैनिकों को रिहा कर दिया था.साथ ही भारत ने वो जमीन भी उसको लौटा दी, जहां तक भारतीय सेना ने अंदर घुसकर कब्जा कर लिया था. तब भारतीय सेना पाकिस्तान में अंदर घुसकर जिन क्षेत्रों पर कब्जा किया था, वो ये हैं – पाकिस्तान के पंजाब राज्य की समूची शकरगढ़ तहसील – राजस्थान के कुछ महत्वपूर्ण इलाके – पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के बाल्टिस्तान क्षेत्र में तीन महत्वपूर्ण गांव – 13 दिसंबर 1971 को नुब्रा घाटी में तुरतुक गांव भारत ने सदभावना के संकेत के रूप में 1972 के शिमला समझौते में जमीन वापस कर दी. कैसे तनाव पूर्ण हो गए भारत – पाकिस्तान संबंध दरअसल 1971 के आखिर तक बांग्लादेश की ओर से बड़े पैमाने पर शरणार्थी भारत आने और वहां की स्थिति से पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण हो चुके थे. तब तक बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था. जहां पाकिस्तान की सेनाएं दमनचक्र चला रही थीं. 1972 में शिमला में भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच समझौता हुआ. इसके बाद भारत ने पाकिस्तान को वो जमीनें लौटा दीं, जिन पर भारतीय सेनाओं ने घुसकर कब्जा कर लिया था. (फाइल फोटो) आपरेशन चंगेज खान से युद्ध की शुरुआत युद्ध की शुरुआत पाकिस्तान के ऑपरेशन चंगेज खान से हुई, जिसमें 08 भारतीय वायु स्टेशनों पर पाकिस्तान ने हवाई हमले शामिल किए. इन हमलों के कारण भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. भारतीय सेनाओं ने पूर्वी पाकिस्तान के मोर्चे पर बंगाली राष्ट्रवादी ताकतों का साथ दिया ताकि वो हिस्सा पाकिस्तान से अलग होकर खुद को आजाद घोषित कर सके. 03 दिसंबर 71 को युद्ध शुरू हो गया साथ ही पश्चिमी मोर्चों पर भी भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच संघर्ष शुरू हो गया. युद्ध 03 दिसंबर को शुरू हुआ और भारत ने अगले 13 दिनों में साफ बढ़त बना ली. भारतीय सेना द्वारा लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया गया था, जिनमें कुछ बंगाली सैनिक भी शामिल थे जो पाकिस्तान के प्रति वफादार रहे थे. भारत ने बड़े पाकिस्तानी इलाके पर कब्जा कर लिया इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने दोनों मोर्चों पर जबरदस्त हमलों में साथ दिया. नौसेना ने भी बखूबी पाकिस्तान की कमर तोड़ी. एक ओर तो पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के पैर उखड़ गए, वो मुकाबला ही नहीं कर पाए वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना पश्चिमी पाकिस्तान में भी घुसती जा रही थी. सेना ने काफी अंदर तक घुसकर करीब 15,010 किमी  (5,795 वर्ग मील) के इलाके पर कब्जा कर लिया, जिसमें आज़ाद कश्मीर, पंजाब और सिंध हमारे पास आ चुके थे. हालत ये हो गई थी कि पाकिस्तान सेना मानसिक और शारीरिक तौर पर युद्ध करने की स्थिति में ही नहीं रह गई थी. पाकिस्तान का आत्म समर्पण 16 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तान ने अंततः एकतरफा युद्धविराम का आह्वान किया. अपनी पूरी चार-स्तरीय सेना के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया – इस तरह 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध समाप्त हो गया. पाकिस्तान को बहुत नुकसान उठाना पड़ा ज़मीन पर पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा, जिसमें 8,000 लोग मारे गए और 25,000 घायल हुए. भारत के 3,000 लोग मारे गए और 12,000 घायल हुए. 16 दिसंबर को आत्मसमर्पण के बाद 17 दिसंबर को दोपहर 02.30 बजे युद्ध आधिकारिक तौर पर खत्म हो गया. युद्ध ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की पुष्टि की. क्या भारत को तब करतारपुर मिल जाता राष्ट्रपति याह्या खान को इस्तीफा देकर अपना राष्ट्रपति पद जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंपना पड़ा. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इस मौके पर इंदिरा गांधी ने अगर दबाव डाला होता तो पीओके का दोबारा कब्जा किया हुआ हिस्सा और करतारपुर पर वह पाकिस्तान को झुकाते हुए उन्हें ले सकता था लेकिन तब अंतरराष्ट्रीय दबाव भी ये थे कि भारत ने पाकिस्तान के एक टुकड़े को आजाद करके उसका काफी नुकसान कर दिया. अब उसे पश्चिमी ओर छीनी गए इलाकों को वापस कर देना चाहिए. Tags: Kartarpur Corridor, Kartarpur SahibFIRST PUBLISHED : May 25, 2024, 07:53 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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