कैसे इंदिरा गांधी लेकर आईं गुलाम नबी आजाद को राजनीति में फिर बढ़ता गया कद
कैसे इंदिरा गांधी लेकर आईं गुलाम नबी आजाद को राजनीति में फिर बढ़ता गया कद
कांग्रेस नेतृत्व और खासकर गांधी परिवार पर तीखा हमला करते हुए सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. एक जमाने में इंदिरा गांधी और संजय गांधी उन्हें सियासत में लेकर आए थे और उन्हें तेजी से बढ़ाया गया था. कांग्रेस में वह लगातार बड़े पदों पर रहे. उन्हें अहम जिम्मेदारियां भी सौंपी गईं. आजाद को कभी गांधी परिवार का खासा वफादार भी माना जाता था.
हाइलाइट्सवो 81 साल के हो चुके हैं लेकिन भरपूर फिट लगते हैं करीब 04 दशक के अपने करियर में वो कांग्रेस संगठन में भी रहे और सरकार में भी80 के दशक में वह कश्मीर के तेजतर्रार स्टूडेंट लीडर थे, जिन्हें संजय गांधी ने छांटा
कांग्रेस के असंतुष्ट ग्रुप जी – 23 के मुखर सदस्य गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस नेतृत्व खासकर गांधी परिवार पर तीखा हमला बोलते हुए पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी. एक जमाना था कि उन्हें गांधी परिवार का वफादार माना जाता था. इंदिरा गांधी और संजय गांधी कश्मीर की स्टूडेंट पॉलिटिक्स से मुख्य धारा और कांग्रेस की राजनीति में लेकर आए थे. वह यकीनन कश्मीर के लोकप्रिय नेता हैं बल्कि कांग्रेस के अनुभवी और बड़े नेताओं में शुमार किए जाते रहे थे.
ये 70 का दशक था. जम्मू-कश्मीर का एक तेज तर्रार युवा नेता गांधी परिवारों की नजर में आया. पहले उसे जम्मू कश्मीर में यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और फिर वो यूथ कांग्रेस का नेशनल प्रेसीडेंट हो गया. वो गुलाम नबी आजाद हैं. जिनकी राजनीति का सफर बिल्कुल नीचे से शुरू हुआ और फिर उन्होंने राष्ट्रीय पटल पर सियासत की लंबी पारी खेली. राज्यसभा से पिछले साल उनकी विदाई हुई थी. वो काफी समय से कांग्रेस के असंतुष्ट ग्रुप के मुखर सदस्य थे. ये भी कहा जाता है कि कांग्रेस में पुराने और नए नेताओं की जो जंग हो रही है, उसमें वह नए बदलावों के विरोधी थे.
जब पिछले साल 09 फरवरी में उनकी राज्यसभा से विदाई हुई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो गए. उन्होंने आजाद को एक अच्छा दोस्त बताया. याद किया कि किस तरह राजनीति से परे वो उनके दोस्त रहे हैं. ये भी याद किया कि किस तरह जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे और आजाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री तो उन्होंने वहां गुजरात के लोगों की सुरक्षा की थी.
अपने भाषण के दौरान उन्हें मोदी ने एक लंबी और यादगार राजनीतिक पारी के लिए सेल्यूट भी किया. उन्होंने कहा कि राजनीति में सत्ता रहती है और जाती है लेकिन मुख्य बात ये है कि आप उसको कैसे संभालते हैं. प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण के बाद राज्यसभा से विदा ले रहे आजाद अचानक सुर्खियों में आ गए.
क्या वाकई उनकी सियासी पारी खत्म हो गई
राजनीति के विश्लेषकों ने तब मोदी द्वारा गुलाम नबी आजाद को दिए खास सम्मान का अलग अलग तरीके से विश्लेषण करना शुरू कर दिया था. अब फिर उनके इस्तीफे के बाद कहा जा रहा है कि वो कश्मीर के आगामी चुनाव में बीजेपी के मददगार हो सकते हैं या बीजेपी के साथ राज्य के चुनावों में खास भूमिका अदा कर सकते हैं. ये कहना गलत होगा कि आजाद की सियासी पारी अब खत्म हो गई है.
हालांकि कांग्रेस ने उन्हें मनाने और रोकने की काफी कोशिश की. पिछले दिनों कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी ने उन्हें पार्टी में अहम जिम्मेदारी भी सौंपी थी. उनसे बात की थी लेकिन लगता है कि कुछ समय पहले ही उन्होंने अपना मन बना लिया था. उनका इस्तीफा भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है कि आने वाले समय के लिए उन्होंने अपनी सियासी योजनाएं तैयार कर ली हैं, इसी वजह से कांग्रेस को अब उन्होंने आखिरी तौर पर विदा कह दिया है.
गुलामी नबी आजाद ने राजनीति में 04 दशक की लंबी पारी खेली. वो कांग्रेस संगठन में अहम स्थितियों में तो केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री के तौर पर भी काम किया.
पांच बार राज्यसभा में चुनकर पहुंचे थे
गुलाम नबी आजाद फिलहाल राज्यसभा में कांग्रेस के नेता होने के साथ विपक्ष के नेता भी थे. 15 फरवरी को उनका राज्यसभा का पांचवां कार्यकाल खत्म हो रहा है. वो पिछली बार जम्मू कश्मीर से चुनकर आए थे. अब मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को केद्र शासित प्रदेश में बदलने के बाद अब वहां से कोई राज्यसभा की सीटें खत्म हो गई हैं.
जमीनी स्तर से ऊपर तक पहुंचे
आजाद ने अब सियासत में लंबी पारी खेली है. वो मृदुभाषी हैं. लंबे सियासी करियर में वो आमतौर पर कांग्रेस के संकटमोचक नेताओं में गिने जाते रहे है. जमीनी नेता रहे हैं. सियासत में अगर ऊपर तक पहुंचे तो उसके लिए उन्होंने अपने राज्य जम्मू कश्मीर में पहले जमीनी स्तर पर खासा काम भी किया. युवा नेता के तौर पर वह 70 और 80 के दशक में तेजतर्रार नेताओं में गिने जाते थे.
मेहनत और ऊर्जा से गांधी परिवार की नजर में आए
अपनी मेहनत और ऊर्जा से उन्होंने गांधी परिवार को आकर्षित किया. 70 के दशक में जब वो श्रीनगर यूनिवर्सिटी से जूलॉजी में एम एससी करके निकले तो बजाए कोई अच्छी नौकरी करने के राजनीति में आ गए. उन्होंने डोडा जिले में निचले स्तर से काम करना शुरू किया. 1973 में उन्हें भलेसा में ब्लाक कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया.
एक झटके में ब्लॉक स्तर से राज्य यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने
ब्लाक में कांग्रेस सचिव बनना निश्चित तौर पर कोई बड़ी बात नहीं कही जा सकती लेकिन उसके दो साल के अंदर राज्य में यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बन जाना वाकई खास बात थी. फिर उससे भी खास ये कि 1980 में वो यूथ कांग्रेस के नेशनल प्रेसीडेंट बन गए.
70 के दशक में संजय गांधी ने जिन युवा नेताओं को कांग्रेस के लिए तलाशा, वो उनमें एक थे लेकिन फिर अपनी मेहनत और ऊर्जा से आगे का रास्ता बनाते चले गए.
संजय गांधी पसंद करते थे
उनके इस सियासी छलांग के पीछे बड़ी वजह ये थी कि संजय गांधी उन्हें पसंद करने लगे थे. इंदिरा गांधी जानने लगी थीं. दोनों को उनके अंदर एक जुझारू और ऊर्जावान नेता के गुण नजर आए. कहा जा सकता है कि संजय गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आए और आगे बढ़ाया लेकिन फिर वो इंदिरा के करीब आए. इंदिरा और संजय के बाद भी वो गांधी परिवार के करीबी बने रहे.
असर और संपर्क देशभर में
वो 81 साल के हो चुके हैं लेकिन भरपूर फिट लगते हैं. करीब 04 दशक के अपने करियर में वो कांग्रेस संगठन में भी रहे और सरकार में भी. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रहे. उन्होंने कई मंत्रालय संभाले. कई राज्यों में कांग्रेस के प्रभारी रहे. कुल मिलाकर वो कांग्रेस के ऐसे नेता भी हैं, जिनका असर और संपर्क देशभर में हैं.
एम. एससी करने के बाद सियासत में आए
वो जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में 07 मार्च 1940 को पैदा हुए थे. पढ़ने में तेज थे. पहले गांव और कस्बे में ही शुरुआती पढ़ाई की फिर बी.एससी करने जम्मू करने गए. इसके बाद उन्होंने श्रीनगर से साइंस जूलॉजी में मास्टर्स डिग्री ली. इस लिहाज से ये भी कह सकते हैं कि वो राजनीति में आए ऐसे नेता भी रहे हैं, जिनकी बड़ी तालीम ली है.
कई बातों पर विवाद भी हुआ
हालांकि कई बार उनकी कई बातों पर विवाद भी हुआ है. वर्ष 2008 में उन्होंने हिंदू मंदिरों को जमीन स्थानांतरित करने की योजना पारित की, उनके इस फैसले से मुसलमान आक्रोशित हो गए. जिसके परिणामस्वरूप घाटी में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे. गुलाम नबी आजाद की बिगड़ती छवि के कारण कांग्रेस ने सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद गुलाम नबी आजाद ने बहुमत साबित करने की जगह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
वर्ष 2011 में एक प्रेस-कांफ्रेंस में गुलाम नबी आजाद ने समलैंगिकता को एक विदेशी बीमारी कहकर संबोधित किया. उनके इस कथन की बहुत आलोचना हुई.
उन्होंने केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए उन्होंने कई प्रकार के सुझाव दिए. जैसे लड़कियों का विवाह अगर 25-30 वर्ष के बीच किया जाए तो इससे जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है, इस बयान की अगर तारीफ हुई तो उनके इस बयान की बहुत हंसी भी उड़ी कि अगर गांवों में कम बिजली रहेगी तो लोग कम टीवी देखेंगे और फिर कम बच्चे पैदा होंगे.
दो बार लोकसभा के लिए भी चुने जा चुके हैं
उनके सियासी करियर की एक खास बात ये भी है कि वो अगर तीन बार जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा में पहुंचे तो दो बार महाराष्ट्र से. दो बार उन्होंने महाराष्ट्र से ही लोकसभा चुनाव जीता. अब ये सवाल जरूर उठता है कि क्या वो दोबारा राज्यसभा में पहुंचेंगे. हालांकि कयास तो यही हैं कि ऐसा होगा और अप्रैल में वो फिर संसद में दोबारा नजर आ सकते हैं.
पत्नी जानी मानी गायिका हैं
अब उनके पारिवारिक जीवन पर आते हैं. उनकी पत्नी शमीम जानी मानी कश्मीरी गायिका हैं. उनकी मधुर आवाज की सराहना हर कोई करता है. उन्हें पदमश्री मिल चुका है. शमीम से उनकी शादी 1980 में हुई. आजाद के एक बेटा और एक बेटी है. फुरसत के समय में उन्हें गार्डेनिंग करने का काफी सुकून मिलता है.
तो क्या जी-23 अब बिखरने की ओर है
इसमें कोई शक नहीं कि पिछले दो – तीन सालों में कांग्रेस के जी-23 ग्रुप के नेताओं ने लगातार पार्टी की नीतियों और शीर्ष नेताओं को निशाना बनाते हुए किनारा किया. लगातार इस ग्रुप के नेता पार्टी छोड़ कर सियासत में अपनी नई संभावनाएं तलाश रहे हैं. जी-23 से कई बड़े नेता जा चुके हैं. हालांकि उसमें कई नेता अब भी हैं लेकिन लगता है कि जी-23 अब धीरे धीरे खत्म हो रहा है. कांग्रेस भी अब करीब मान बैठी है कि वो जी-23 के नेताओं को नहीं रोक पाएंगे. गुलाम नबी आजाद के इस्तीफा से पहले ही हिमाचल प्रदेश के आनंद शर्मा ने भी कांग्रेस नेतृत्व को खरीखोटी सुनाते हुए पार्टी छोड़ दी थी.
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Tags: All India Congress Committee, Congeress, Gulam Nabi AzadFIRST PUBLISHED : August 26, 2022, 13:39 IST