क्या अब आसान नहीं होगा निजी संपत्तियों का अधिग्रहण क्या है आर्टिकल 39 बी

हम लोग देखते आए हैं कि सरकारी योजनाओं के लिए सरकार अक्सर निजी संपत्तियों का अधिग्रहण कर लेती है और जिसकी संपत्ति हो उसको इसके लिए बाध्य कर दिया जाता है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे में राहत देने वाला है

क्या अब आसान नहीं होगा निजी संपत्तियों का अधिग्रहण क्या है आर्टिकल 39 बी
हाइलाइट्स सरकार अब मनमाने तरीके से निजी संपत्तियों को अधिग्रहीत नहीं कर सकती है अधिग्रहण से पहले उसको सब बताना होगा कि ये देश और लोगों के लिए कितना जरूरी है इस पूरी योजना के बारे में उसको पारदर्शी से तरीके इसे तथ्यों के साथ साबित करना होगा सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है कि सरकार हर निजी संपत्ति को अधिग्रहित नही कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 39 (बी) के तहत ही ये फैसला सुनाया है. इससे बड़ा असर पड़ने वाला है. आखिर वो कौन सी वजह से कि सुप्रीम कोर्ट को अपने ही फैसले को पलटना पड़ा है. सवाल – क्या है भारतीय संविधान का आर्टिकल 39बी, जिसके तहत सरकार किसी भी निजी संपत्ति का अधिग्रहण करती रही है? – भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(बी) राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का एक हिस्सा है, जो यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य के दायित्व को रेखांकित करता है कि भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस तरह से हो वो आम लोगों के हित में हो. – आर्टिकल 39(बी) ये अनिवार्य करता है कि राज्य को अपनी नीतियों इस तरह बनानी चाहिए कि भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण पूरे समुदाय के लाभ में वितरित हो ना कुछ लोगों के हाथों में संपत्ति धन केंद्रीत हो. – हालांकि इसके तहत कई बार सरकार ऐसी संपत्तियों का अधिग्रहण कर लेती है, जो विवाद का विषय बन जाता है. अनुच्छेद 39(बी) सामाजिक समानता प्राप्त करने के उद्देश्य से नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सवाल – सुप्रीम कोर्ट का हालिया ताजा फैसला क्या है? – सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत सरकार द्वारा सभी निजी संपत्तियों का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता, इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि केवल वे निजी संसाधन जो प्रकृति में “भौतिक” होने और समुदाय के लिए लाभकारी होने के मानदंडों को पूरा करते हैं, उन्हें अधिग्रहण के लिए योग्य माना जा सकता है.केवल वे निजी संसाधन जो “भौतिक” के रूप में उपयुक्त हैं और सामुदायिक प्रभाव में हैं, अधिग्रहण और पुनर्निर्माण के स्वामित्व हो सकते हैं. इसका मतलब अब सरकार को ये बताना होगा कि जिस संपत्ति का वो अधिग्रहण करने जा रही है, वो किस तरह लोगों या समुदाय के लिए उपयोगी है. ये सरकारों की इस दिशा में मनमानी को रोकता है. सवाल – तो इससे किस तरह अधिग्रहण को लेकर सरकार की मनमानी रुकेगी? – अब सरकार को स्पष्ट तौ पर बताना होगा कि कैसे जिस निजी संपत्ति का वो अधिग्रहण करने जा रही है, वो करना जरूरी है, उससे किस तरह लोगों और सामुदायिक फायदा होगा. मतलब ये है कि भविष्य में निजी संपत्ति के मालिकों के अधिकारों की भी रक्षा होगी. सरकारों को इस पर सावधानी से विचार करने की जरूरत होगी. अधिकारियों को अधिग्रहण को उचित ठहराने के लिए समुदाय से संबंधित व्यापक स्पष्ट लाभ दिखाने की आवश्यकता होगी, जिससे संभावित रूप से अधिक कठोर आकलन और सार्वजनिक परामर्श की जरूरत होगी. सवाल – सुप्रीम कोर्ट का फैसला निजी संपत्ति मालिकों को क्यों राहत देने वाला है? – सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जाहिर किया है कि निजी संपत्ति के भी अपने अधिकार हैं, जिसकी अवहेलना नहीं की जा सकती. अब नीति निर्माताओं को भूमि अधिग्रहण और अन्य निजी संपत्ति अधिग्रहम के लिए अधिक न्यायसंगत और पारदर्शी रूपरेखा बनानी होगी. सवाल – तो क्या अब राज्य सरकार के अधिग्रहण का दायरा सीमित होगा और इस पर उसका डंडा नहीं चलेगा? – बिल्कुल ऐसा ही है. अगर सरकार बलपूर्वक ऐसा करती है तो अदालत में जा सकते हैं, जहां सुप्रीम कोर्ट का मौजूदा फैसला एक मिसाल पेश करेगा. सरकार को अब हर निजी संपत्ति भौतिक संसाधन के रूप में अधिग्रहण के लिए नहीं मिलेगी. सरकार की जवाबदेही बढ़ेगी. उसे ये साबित करना ही होगा कि उसका अधिग्रहण कैसे लाखों-करोड़ों या बड़े पैमाने पर लोगों के काम का है, इससे लोगों का भला होगा. सरकारों को अधिग्रहण या पुनर्वितरण का प्रस्ताव करते समय समुदाय के लाभ के पर्याप्त सबूत देने की जरूरत होगी. सवाल – सुप्रीम कोर्ट ने अगर ये फैसला दिया है कि तो उसके कुछ प्रमुख मामले क्या रहे हैं? – कर्नाटक राज्य बनाम रंगनाथ रेड्डी (1978): यह मामला महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें इस बात पर अलग-अलग राय थी कि क्या निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को “समुदाय का भौतिक संसाधन” माना जा सकता है. इसी में सरकार को अधिकार दिया गया कि वो सरकारी कामकाज के लिए निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है. हालांकि तब न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर इससे सहमत नहीं थेचॉ. संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (1982): इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति अय्यर के रंगनाथ रेड्डी से असहमति वाले दृष्टिकोण की पुष्टि की, जो जाहिर करता है कि सभी तरह के भौतिक संसाधनों में निजी स्वामित्व वाली संपत्तियां शामिल हो सकती हैं. मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ (1997): सर्वोच्च न्यायालय ने संकेत दिया कि अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या को और अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता है. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – इस ऐतिहासिक मामले ने मूल संरचना सिद्धांत की स्थापना की, जिसमें जोर दिया गया कि कुछ मौलिक अधिकारों को संवैधानिक संशोधनों द्वारा बदला या नष्ट नहीं किया जा सकता. इसने अनुच्छेद 39(बी) और 31सी के महत्व को भी बरकरार रखा. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980) – सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 31सी के दायरे का विस्तार करने वाले संशोधनों को खारिज कर दिया, जिससे मौलिक अधिकारों और निर्देशक सिद्धांतों के बीच संतुलन की आवश्यकता पर बल मिला. सवाल – निजी संपत्ति के अधिग्रहण वाला मामला भारत में क्यों विवादित रहा है? – ऐतिहासिक रूप से भारत में भूमि अधिग्रहण अक्सर विवादास्पद रहा है, जिसमें औद्योगिक परियोजनाओं या बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़े पैमाने पर अधिग्रहण से महत्वपूर्ण विरोध प्रदर्शन हुए हैं. सिंगूर और नंदीग्राम जैसे मामलों ने सरकारी अधिग्रहण के खिलाफ भूमि मालिकों और किसानों के प्रतिरोध को उजागर किया, जिसके कारण राजनीतिक नतीजे और शासन में बदलाव हुए. सवाल – अब भविष्य के अधिग्रहणों में क्या होगा? – इस फैसले से भविष्य के भूमि अधिग्रहण प्रस्तावों की कड़ी जांच हो सकती है, विशेष रूप से निजी संपत्ति के बड़े हिस्से को शामिल करने वाले प्रस्तावों की. राज्य सरकारों को अधिग्रहणों को अधिक कठोरता से उचित ठहराने की आवश्यकता होगी. भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 में संशोधन की जरूरत होगी. इसका मतलब ये भी होगा कि अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किए बिना अनिवार्य अधिग्रहण और उसके बाद मालिकों को मुआवजा देने से विलय संवैधानिक नहीं हो जाएगा. सवाल – क्या है निजी संपत्ति का मूल अधिकार? – निजी संपत्ति का अधिकार एक महत्वपूर्ण कानूनी और मानवाधिकार है, जो व्यक्तियों को अपनी संपत्ति के स्वामित्व, उपयोग और निपटान का अधिकार प्रदान करता है. भारत में, निजी संपत्ति का अधिकार पहले मौलिक अधिकार था, जिसे संविधान के अनुच्छेद 31 के तहत मान्यता प्राप्त थी. हालांकि, 1978 में 44वें संविधान संशोधन के बाद इसे मौलिक अधिकार से हटा दिया गया. अब यह अनुच्छेद 300(A) के तहत एक संवैधानिक अधिकार माना जाता है. इस अनुच्छेद के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति को कानून की इजाजत के बिना उसकी निजी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा.” सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि भले ही निजी संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, फिर भी इसे एक मानवाधिकार माना जाता है. न्यायालय ने यह भी कहा है कि राज्य किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है. Tags: Land acquisition, Property, Property sizedFIRST PUBLISHED : November 5, 2024, 13:06 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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