Explainer: क्या है वो पुष्पक स्पेस यानजिससे भारत अंतरिक्ष की और बड़ी ताकत बना
Explainer: क्या है वो पुष्पक स्पेस यानजिससे भारत अंतरिक्ष की और बड़ी ताकत बना
भारत ने एक दिन पहले सफलता के साथ अपने रियूजबल स्पेस रॉकेट यान पुष्पक का प्रयोग किया. आमतौर पर अंतरिक्ष में एक बार भेजे जाने वाले रॉकेट नष्ट हो जाते हैं लेकिन इसे बार-बार इस्तेमाल किया जा सकेगा. जानें इसके बारे में सबकुछ
हाइलाइट्स ये सफल परीक्षण इसरो ने तीसरी बार किया है हर बार ये परीक्षण और बेहतर होता गया पुष्पक विमान में सभी एडवांस सिस्टम हैं
इसरो ने तीसरी बार अपना रियूजेबल लांच व्हीकल रॉकेट का सफल परीक्षण किया. हेलीकॉप्टर ने जब इस पुष्पक को हवा में ऊपर ले जाकर छोड़ा तो ये तेज गति से उड़ता हुआ नीचे आया और कर्नाटक के साइंस नगरी कही जाने वाले चिल्लाकेरे के रन-वे पर उतर गया. ऐसा करके भारत ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है कि वो यान को अंतरिक्ष को लेकर जाए और वहां से सफलतापूर्वक वापस लेकर आ सके.
पुष्पक इसरो द्वारा विकसित भारत का पहला रियूजेबल लांच व्हीकल रॉकेट (आरएलवी) है. यह एक पंखों वाला वाहन है जिसे पूरी तरह से फिर से इस्तेमाल करने के लिए सिंगल-स्टेज-टू-ऑर्बिट (एसएसटीओ) प्रणाली के रूप में डिजाइन किया गया है.
इसकी खास बातें
स्वचालिक लैंडिंग (Autonomous Landing Precision) पुष्पक ने एडवांस मार्गदर्शन और कंट्रोलिंग सिस्टम का प्रदर्शन करते हुए रनवे पर सटीक तरीके से उतरने और नेविगेशन के जरिए सही जगह पर उतरने का प्रदर्शन किया है.पुष्पक ने 4.5 किमी दूर रिलीज पॉइंट से भी रनवे सेंटरलाइन पर पिनपॉइंट सटीकता के साथ खुद को नेविगेट किया और लैंडिंग क्षमता का प्रदर्शन किया.
एडवांस स्लो स्पीड सिस्टम – पुष्पक 320 किमी/घंटा से अधिक की स्पीड पर सुरक्षित तरीके से उतरा. उसके लिए उसने ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग जैसे सोफिस्टिकेटेड स्लो स्पीड सिस्टम का इस्तेमाल किया. हालांकि ये इससे भी कहीं स्पीड के साथ उतरने में सक्षम है. कार्मंशियल विमान जब जमीन पर उतरते हैं तब उनकी स्पीड 260 किमी/घंटा और लड़ाकू जेट की 280 किमी/घंटा की होती है.
अंतरिक्ष वापसी की स्थितियों के साथ तालमेल – पुष्पक मिशन ने अंतरिक्ष से आरएलवी की वापसी यात्रा के दौरान आने वाली स्थितियों के साथ सफलतापूर्वक ना केवल तालमेल किया बल्कि उन्हीं कंडीशन को फॉलो करते हुए सुरक्षित और परफेक्ट स्पेस एक्सप्लोरेसन के लिए खास तकनीक को अपनाया.
स्वदेशी तकनीकी – पुष्पक मिशन ने नेविगेशन, नियंत्रण प्रणाली, लैंडिंग गियर और मंदी प्रणाली जैसे क्षेत्रों में इसरो की स्वदेशी रूप से विकसित तकनीक पर फिर ठप्पा लगाकर साबित किया कि किस तरह स्पेस टेक्नॉलॉजी में भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चुका है.
फिर से रियूजेबल – पुष्पक मिशन ने पिछले परीक्षणों की तरह पंख वाली बॉडी शरीर और उड़ान प्रणालियों का फिर इस्तेमाल किया, इससे स्पेस मिशन की लागत कम करने की इसरो की क्षमता भी साबित हुई.
कुल मिलाकर पुष्पक मिशन पूरी तरह से रियूजेबल लॉन्च वाहन विकसित करने के इसरो के कोशिश का महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. इसके जरिए भारत ने दिखाया है कि अंतरिक्ष तक जाना ना केवल सस्ता हो सकता है बल्कि सुरक्षित भी.
भारत के पुष्पक और अन्य रियूजेबल स्पेस रॉकेट में अंतर
– दूसरे रियूजेबल यान लैंडिंग के दौरान मानव कंट्रोल पर ज्यादा निर्भर होते हैं. जबकि पुष्पक के साथ ऐसा नहीं है.
– ज्यादा स्पीड से इसे कम करने और रन-वे पर आसानी से उतरने की तकनीक जितनी बेहतर पुष्पक ने दिखाई, वैसी दूसरे रियूजेबल रॉकेट के साथ नहीं है.
– पुष्पक मिशन ने उन्हीं कठोर परिस्थितियों का सामना किया, जो अंतरिक्ष में होती हैं. अन्य रियूजेबल रॉकेट इतने फोकस नहीं हैं.
– कहा जा सकता है कि तकनीक, सिस्टम में ये रॉकेट काफी सटीक है
इसे आकाश में बहुत ऊपर हेलिकॉप्टर से क्यों छोड़ा गया
– 4.5 किमी की ऊंचाई पर हेलिकॉप्टर से पुष्पक को लांच करने से पुष्पक को हाईस्पीड, उच्च ऊंचाई वाली स्थितियों को फिर से बनाने की स्थितियां मिलीं.
– हेलीकॉप्टर से लांच करने से इसकी परीक्षण उड़ानों और प्रणालियों को परखने का असरदार तरीका मिलता है. पुष्पक मिशन पिछले RLV-LEX-01 प्रयोगों की सफलता पर आधारित है, इसमें हर परीक्षण अधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को सामने लाता है.
क्यों इसे पुष्पक नाम दिया गया
रामायण में भारत के जिस पौराणिक अंतरिक्ष यान का जिक्र हुआ है, उसका नाम पुष्पक है, जिसे धन के देवता कुबेर का वाहन माना जाता है. इसलिए इस यान को पुष्पक नाम दिया गया.
इसकी लंबाई और वजन कितना है
इसकी लंबाई 6.5 मीटर है और वजन 1.75 टन है. उसके ऊपरी हिस्से में सभी महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण लगे हैं. ये विमान जब पृथ्वी पर आ जाता है तो उन्हीं उपकरणों को फिर मोडिफाई किया जाता है.
कैसे उड़ाया जाता है
उड़ान परीक्षण के लिए विमान को भारतीय वायु सेना (IAF) के हेलीकॉप्टर पर चढ़ाया गया. फिर हवा में ये छोटे थ्रस्टर वाहनों से छोड़ा गया. हवा में आते ही ये गति पकड़ लेता है और फिर अपने नेविगेशन के जरिए नीचे आकर सटीक जगह पर उतरता है
कब कब इसका परीक्षण किया
भारत ने करीब 15 साल पहले स्पेस शटल का अपना संस्करण बनाने के बारे में सोचा. 10 साल पहले इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की एक टीम ने RLV को हकीकत बनाने में जुटी. RLV ने 2016 में श्रीहरिकोटा से पहली बार उड़ान भरी. बंगाल की खाड़ी में एक वर्चुअल रनवे पर सफलतापूर्वक उतरा. फिर RLV योजना के अनुसार समुद्र में डूब गया. उसे वापस नहीं लाया जा सका.
दूसरा परीक्षण अप्रैल 2023 में चित्रदुर्ग एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (ATR) में किया गया. RLV-LEX-01 नामक इस पंख वाले रॉकेट को IAF चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा एक ऊंचाई तक ले जाकर हवा में छोड़ा गया. इसके बाद यह ग्लाइड हुआ और अपने आप लैंड हो गया. परीक्षण पूरी तरह सफल रहा. तीसरा परीक्षण ये फिर सफल रहा.
चिल्लाकेरे रन-वे रेंज कहां, जहां ये उतरा
कर्नाटक में चित्रदुर्ग जिला में एक जगह चिल्लाकेरे, जहां पिछले कुछ सालों में एक पूरा का पूरा शहर विकसित कर दिया गया है. विदेशी मीडिया इसे सीक्रेट सिटी ऑफ इंडिया कहते हैं, जहां भारत के परमाणु शस्त्रों को गोपनीय तौर पर विकसित किया जा रहा है. वैसे भारत में इस जगह को साइंस सिटी कहते हैं. यहां देश के सारे बड़े वैज्ञानिक संस्थान भी हैं. यहीं पर वो रेंज है, जहां रन-वे पर पुष्पक को उतारा गया, यहां एयर ट्रैफिक डिस्प्ले सिस्टम के साथ रेंज कंट्रोल सेंटर (आरसीसी) है. रडार केंद्र भी है. विमान उतरने के लिए दो हैंगर हैं, जिनमें मानवरहित हवाई वाहन रुस्तम-1 और रुस्तम-2 रखे हैं. रनवे वर्तमान में 2.2 किमी लंबा है.
ये तकनीक कितने देशों के पास है
– ये तकनीक अमेरिका, यूरोप, रूस, चीन समेत छह देशों के पास है. इन देशों के पास पूर्ण प्रक्षेपण क्षमताएं हैं. हालांकि रियूजेबल रॉकेट तकनीक में अमेरिका और चीन बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन भारत की खास बात ये है कि इसके अंतरिक्ष मिशनों की लागत सबसे कम है, जो इसे बड़ा ग्लोबल बाजार देता है.
प्राइवेट तौर पर स्पेसएक्स और ब्लूवर्जिन ने इसी तर्ज पर अपने रॉकेट बनाए हैं, जिससे वो स्पेस टूरिज्म को प्रोमोट कर रहे हैं. तो ये कहा जा सकता है कि भारत अपने इस सफल पुष्पक विमान के जरिए आने वाले समय सबसे कम कीमत में लोगों अंतरिक्ष की सैर कराकर बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकता है.
Tags: Isro k shivan, Space, Space Exploration, Space newsFIRST PUBLISHED : June 24, 2024, 14:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed