केरल से गुजरात तक वेस्टर्न घाट क्यों राज्यों को पर्यावरण रिपोर्ट्स पर आपत्ति
केरल से गुजरात तक वेस्टर्न घाट क्यों राज्यों को पर्यावरण रिपोर्ट्स पर आपत्ति
Western Ghat : दरअसल पश्चिमी घाट दक्षिण से पश्चिम तक फैली पर्वत श्रृंखला की संवेदनशील बेल्ट है, यहां पारिस्थितिकी से खिलवाड़ जारी है. गाडगिल और कस्तूरीरंगन दोनों कमेटियों की रिपोर्ट्स को इससे संबंधित 06 राज्य खारिज कर चुके हैं.
हाइलाइट्स पिछले 20 सालों में माधव गाडगिल और के कस्तूरीरंगन कमेटी बनाई गईं दोनों कमेटियों ने वेस्टर्न घाट की पारिस्थितिकी को संवेदनशील मानते हुए कुछ सिफारिशें कीं दोनों कमेटियों की सिफारिशों को 06 राज्य करीब खारिज कर चुके हैं, जिसमें केरल भी शामिल
पारिस्थितिकी यानि इकोलॉजी के लिहाज से देश के सबसे संवेदनशील इलाकों में एक है पश्चिमी घाट, एक ऐसी भौगोलिक पठारी पट्टी जो केरल से होते हुए गोवा तक चली आती है. यहां के इलाके ऐसे पठार के ऐसे कोण पर बसे हैं कि उनमें सबसे बड़ा खतरा भूस्खलन का है, जो हमने अभी हाल ही में वायनाड में भयावह त्रासदी के साथ देख लिया. वहां जमीन खिसकी. तीन बड़े भूस्खलन हुए. गांव के गांव अलग हो गए. इस पठारी बेल्ट को सुरक्षित रखने का जायजा लेने के लिए दो खास कमीशन खुद सरकार ने ही बनाए थे लेकिन दोनों को खुद सरकार ने ही देखने तक ही जहमत नहीं उठाई.
यहां तक पश्चिमी घाट के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अब तक नोटिफाई करने या उनके बारे में विचार करने तक की जहमत हीं उठाई है. पारिस्थितिकीविद् माधव गाडगिल की समिति ने 2011 में इस पूरे इलाके पर गंभीरता से ध्यान देते हुए कुछ संस्तुतियां की थीं. लेकिन इसका जबरदस्त विरोध संबंधित राज्यों ने ही किया. इस सिफारिश को 14 साल बीत चले हैं, अब ये रिपोर्ट ठंडे बस्ते में है.
इसके बाद कस्तूरीरंगन कमेटी बनाई गई. जिसे गाडगिल कमेटी के बाद इसलिए बनाया गया कि जो राज्य को प्रतिबंधात्मक कदम उठाने के लिए गाडगिल ने कहा था, उसे शायद कस्तूरीरंगन कुछ हद तक कम कर पाएं. लेकिन उनकी रिपोर्ट भी राज्यों के लिए लागू करना मुश्किल हो गया. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय भी इन कमेटियों को लेकर कोई पहल नहीं कर सका.
क्या हुआ दोनों रिपोर्ट्स का
गाडगिल पैनल ने सिफारिश की थी कि पश्चिमी घाट के 129,037 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के 75% हिस्से को पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि वहां घने जंगल हैं. बड़ी संख्या में स्थानिक प्रजातियां मौजूद हैं. वर्ष 2012 में रॉकेट वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में बने पैनल ने 50% इलाके को संवेदनशील माना. इस रिपोर्ट की सिफारिशों को भी काफी कमजोर कर दिया गया. तब से चार मसौदा नोटिफिकेशन जारी किए गए.
– बीते 22 जुलाई को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने लोकसभा को बताया, “पश्चिमी घाट की समृद्ध जैव विविधता की रक्षा के लिए, इस मंत्रालय ने 06 जुलाई 2022 को एसओ 3072 (ई) के माध्यम से पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र पर मसौदा अधिसूचना जारी की है, जिसमें छह राज्यों यानि गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में फैले 56,825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल हैं लेकिन राज्य लगातार उक्त मसौदा अधिसूचना में शामिल पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) में संशोधन के लिए कहते रहे हैं.” वायनाड में लैंडस्लाइड की वजह से भारी तबाही (Photo_PTI)
केरल और कर्नाटक क्यों विरोध में थे
केरल और कर्नाटक विशेष रूप से कुछ क्षेत्रों को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने के विरोध में थे, जिससे संरक्षण में देरी हो रही थी. चट्टान उत्खनन, खनन और नए उद्योगों की स्थापना जैसी गतिविधियों को भी जारी रखने में देरी हो रही थी.
फिर एक और जांच कमेटी
पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा, “राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए मुद्दों को हल करने के लिए मंत्रालय ने कई पहलुओं को देखते छह राज्य सरकारों के सुझावों की समग्र रूप से फिर से जांच करने के लिए एक समिति गठित की है. केरल और कर्नाटक सहित राज्य सरकारों की चिंताओं पर समिति द्वारा विचार-विमर्श किया जाएगा. फिर समिति की सिफारिशों के आधार पर मसौदा अधिसूचना को अंतिम रूप दिया जाएगा.”
संवेदनशील क्षेत्र को घटा दिया गया
अधिसूचना के नवीनतम संस्करण (नए मसौदे को अंतिम रूप दिए जाने से पहले) में ईएसए के रूप में अधिसूचित किए जाने वाले क्षेत्र को पश्चिमी घाट के लगभग 37% तक घटा दिया गया है. यह मसौदा 3 अक्टूबर, 2018 को जारी किया गया था, लेकिन मंत्रालय ने कोविड महामारी को देखते हुए पिछले साल 16 जून को इसकी वैधता 31 दिसंबर, 2021 तक बढ़ा दी. वायनाड हादसे में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई. इन सबके पीछे सबसे बड़ी वजह इस इलाके का खास कोणीय तौर पर पठार पर बसा होना है, पूरे पश्चिमी घाट की स्थिति करीब करीब ऐसी ही है. लिहाजा वैज्ञानिकों का भी कहना है कि वायनाड ही नहीं पश्चिमी घाट की खास स्थिति ऐसी है कि वहां नेचर के साथ खिलवाड़ बहुत भारी पड़ेगी. (jharkhabar.com)
खनन पर पूर्ण प्रतिबंध के बाद भी सब जारी
वर्ष 2018 के दस्तावेज में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने; अंतिम अधिसूचना जारी होने की तिथि से पांच वर्ष के भीतर या मौजूदा खनन पट्टे की समाप्ति (जो भी पहले हो) के भीतर सभी मौजूदा खदानों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने; नई ताप विद्युत परियोजनाओं या मौजूदा संयंत्रों के विस्तार पर प्रतिबंध लगाने; तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट प्रदूषणकारी उद्योगों के नए या विस्तार पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई थी. लेकिन ये सभी कुछ जारी रहा.
पश्चिमी घाट पर गाडगिल समिति की रिपोर्ट
माधव गाडगिल समिति का गठन पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 2010 में कार्यकारी आदेश द्वारा किया गया था. इसे पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) नाम दिया गया. इसे पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण के निर्माण के संबंध में तौर-तरीके सुझाने का भी कार्य सौंपा गया, जो पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी के प्रबंधन के लिए एक पेशेवर निकाय होगा.
गाडगिल समिति की सिफारिशें
– गाडगिल रिपोर्ट ने पूरे वेस्टर्न घाट श्रृंखला को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई थी.
– पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 में नए खनन अनुरोधों के लिए पर्यावरण मंजूरी देने पर रोक लगाने की सिफारिश
– पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र 1 से खनन को पूरी तरह समाप्त करने की सिफारिश
– पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 दोनों में आठ वर्षों में सभी रासायनिक कीटनाशकों को समाप्त करना चाहिए. प्लास्टिक की थैलियों को चरणबद्ध तरीके से खत्म किया जाए.
– कोयला आधारित बिजली संयंत्र जैसे उद्योग, जो लाल और नारंगी उद्योगों के अंतर्गत आते हैं उनको संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 में प्रतिबंधित किया जाए. यहां कोई ऐसे उद्योग नहीं लगाएं जाएं.
– समिति ने पश्चिमी घाट की सीमा से लगे 142 तालुकों को श्रेणी 1, 2 और 3 के पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों में विभाजित किया.
– पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 क्षेत्रों में बांधों, रेलवे परियोजनाओं, प्रमुख सड़क परियोजनाओं, हिल स्टेशनों या विशेष आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित नये निर्माण पर रोक.
– पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 क्षेत्रों में किसी भी भूमि को वन से गैर-वनीय उपयोग में तथा सार्वजनिक से निजी स्वामित्व में नहीं बदला जाएगा.
– पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण (डब्ल्यूजीईए) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय होगा।
– गाडगिल रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि क्षेत्र में पर्यटन को कम करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है.
क्यों गाडगिल समिति की रिपोर्ट की आलोचना हुई
– सिफारिशों को क्रियान्वयन के लिहाज से अव्यवहारिक माना गया.
– पूरे पश्चिमी घाट को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के अंतर्गत लाने से छह राज्यों की ऊर्जा और विकास जरूरतों पर गंभीर असर पड़ेगा.
– एक नए वैधानिक पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण (WGEA) की स्थापना की सिफारिश की भी आलोचना
– रिपोर्ट में सिफारिशों के कारण होने वाली राजस्व हानि के लिए कोई समाधान नहीं सुझाया गया.
– देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के मद्देनजर बांधों के निर्माण पर प्रतिबंध से विद्युत क्षेत्र पर नकारात्मक असर होगा.
– रेत खननकर्ताओं ने इन सिफारिशों की कड़ी आलोचना की, क्योंकि नए खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था.
– केरल के किसान इस बात से बहुत आशंकित थे कि यदि गाडगिल रिपोर्ट की सिफारिशें लागू कर दी गईं तो उनकी आजीविका छिन जाएगी.
क्या थी कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट
चूंकि 6 संबंधित राज्यों में से किसी ने भी गाडगिल समिति की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया, इसलिए सरकार ने 2012 में कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में पश्चिमी घाट पर एक अन्य उच्च स्तरीय कार्य समूह का गठन किया.
कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशें
– कस्तूरीरंगन रिपोर्ट में सिफारिश की गई कि पश्चिमी घाट के केवल 37% क्षेत्र को ही पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए.
– पश्चिमी घाट का लगभग 60% क्षेत्र मानव बस्तियों, वृक्षारोपण और कृषि के साथ ‘सांस्कृतिक परिदृश्य’ के रूप में वर्गीकृत है.
– शेष क्षेत्र, जो लगभग 60,000 वर्ग किमी में फैला है, को ‘प्राकृतिक परिदृश्य’ के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए, जो कि जैविक रूप से विविध क्षेत्र है.
– कस्तूरीरंगन रिपोर्ट ने पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) में खनन, उत्खनन, ताप विद्युत संयंत्रों, टाउनशिप परियोजनाओं और अन्य ‘लाल उद्योगों’ पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की.
– पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) में चल रहे खनन कार्यों के मामले में, उन्हें अगले 5 वर्षों में या उनके पट्टे की अवधि समाप्त होने पर बंद करने की सिफारिश.
– सामुदायिक स्वामित्व आधारित पारिस्थितिकी-संवेदनशील पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
– रेलवे परियोजनाओं की सावधानीपूर्वक योजना बनाने की जरूरत ताकि पारिस्थितिकी पर उनका नकारात्मक प्रभाव न्यूनतम हो सके.
क्यों हुई कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट की भी आलोचना
– पश्चिमी घाट को अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित करने का काम ज़मीनी आकलन के बजाय हवाई डेटा और रिमोट सेंसिंग के आधार पर किया गया. इससे ज़मीनी स्तर पर कई ग़लतियां हुईं.
– किसानों को डर था कि अगर सिफारिशें लागू की गईं तो उन्हें बेदखल कर दिया जाएगा
– पर्यावरणविदों को डर था कि इस रिपोर्ट से खनिकों को खुली छूट मिल जाएगी और पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा.
– कस्तूरीरंगन रिपोर्ट में रबर बागान गांवों को पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) के अंतर्गत शामिल करने को गलत माना गया.
– रिपोर्ट में पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) के अंतर्गत कुछ संवेदनशील क्षेत्रों पर विचार नहीं किया गया.
पश्चिमी घाट क्या हैं?
पश्चिमी घाट पहाड़ों की एक श्रृंखला है जो भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलती है. ये पहाड़ कई राज्यों में फैले हुए हैं: गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल. वे 1,40,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करते हैं. इन राज्यों में 1600 किलोमीटर तक फैले हुए हैं. पर्वत श्रृंखला अपेक्षाकृत निरंतर है, केवल पालघाट दर्रे पर लगभग 39 किलोमीटर तक रुकती है.
पश्चिमी घाट को जैव विविधता, उच्च स्थानिकता और भूविज्ञान, संस्कृति और सौंदर्यशास्त्र में उच्च मूल्य के मामले में विश्व स्तर पर अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. अध्ययनों से पता चलता है कि इसका निर्माण पश्चिमी तट के समानांतर एक लंबी दरार के कारण हुआ था.इसका निर्माण हिमालय से पहले हुआ था.
पश्चिमी घाट दक्षिण-पश्चिम मानसून की पश्चिमी शाखा के लिए एक प्राकृतिक अवरोध है. इससे घाट के पश्चिमी किनारों पर भारी मात्रा में वर्षा होती है जैव विविधता के मामले में पश्चिमी घाट को दुनिया के आठ सबसे गर्म ‘हॉट स्पॉट’ में एक माना जाता है. इसमें सात से ज़्यादा तरह की वनस्पतियां, 1740 से ज़्यादा फूलों वाले पौधे, 400 से ज़्यादा पक्षियों और 400 से ज़्यादा दूसरी प्रजातियां पाई जाती हैं.
पश्चिमी घाट का महत्व क्या है
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर) पश्चिमी घाट के महत्व को इस प्रकार समझाता है कि ‘यह महत्वपूर्ण जल विज्ञान और जलग्रहण कार्य करता है. उन क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 245 मिलियन लोगों को पश्चिमी घाट से निकलने वाली प्रायद्वीपीय नदियों के माध्यम से पानी की आपूर्ति मिलती है. इस प्रकार, इस क्षेत्र का पानी और मिट्टी लाखों लोगों की आजीविका को बनाए रखती है.
यहां पाई जाने वाली 650 वृक्ष प्रजातियों में 350 से अधिक स्थानिक हैं. 179 उभयचर प्रजातियों में से 65% स्थानिक हैं, 157 सरीसृप प्रजातियों में से 62% स्थानिक हैं और 219 मछली प्रजातियों में से 53% स्थानिक हैं. इसके अलावा, यहां कई लुप्तप्राय प्रजातियां भी पाई जाती हैं, जैसे नीलगिरि लंगूर, शेर पूंछ वाला मैकाक, नीलगिरि तहर आदि. इसके महत्व को समझते हुए पश्चिमी घाट को कई भारतीय कानूनों के तहत संरक्षित किया गया है, जैसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, वन संरक्षण अधिनियम 1980, भारतीय वन अधिनियम 1927 आदि.
Tags: Environment, Environment ministry, Environment news, Save environment, Uttarakhand landslideFIRST PUBLISHED : August 5, 2024, 12:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed