Birthday Radhakrisnan : स्तालीन को कैसे अपना मुरीद बना लिया था डॉ राधाकृष्णन ने
Birthday Radhakrisnan : स्तालीन को कैसे अपना मुरीद बना लिया था डॉ राधाकृष्णन ने
डॉक्टर राधाकृष्णन की प्रसिद्धि एक जाने माने शिक्षाविद और दार्शनिक के तौर पर तो थी ही लेकिन वो बहुत चतुर राजनीतिज्ञ और राजनयिक भी थे. जब सोवियत संघ के तत्कालीन प्रमुख स्तालिन ने भारत की राजदूत विजयलक्ष्मी पंडित से मिलने तक से इनकार कर दिया था, तब राधाकृष्णन ने कैसे इस बिगडैल तानाशाह को शीशे में उतारकर उसे अपना प्रशंसक बना लिया.
हाइलाइट्सराधाकृष्णन को बहुत चुनौतीपूर्ण समय में सोवियत संघ का राजदूत बनाया गया थातत्कालीन रूसी शासक स्तालिन भारत के प्रति कोई बहुत अच्छी राय नहीं रखता थातब राधाकृष्णन ने न केवल उसकी राय बदली बल्कि अपने लिए सम्मान भी हासिल किया
एक शिक्षाविद के रूप में सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन की ख्याति तो थी ही साथ ही उन्हें एक दार्शनिक तौर पर भी विदेशों में खूब सराहा गया. वह एक राजनयिक के रूप में पैने और चतुर थे. माना जाता है कि इस मामले में वह चाणक्य परंपरा का अनुसरण करते थे. उन्हें मालूम था कब, कहां क्या करना है. सोवियत संघ में जब उन्हें राजदूत बनाकर भेजा गया तो उन्होंने भारत के खिलाफ बह रही उल्टी हवा को बदलने का काम बखूबी किया.
रूस में लंबे समय तक रहे अशोक कपूर ने अपनी किताब ”द डिप्लोमेटिक आइडियाज एंड प्रैक्टिसेस ऑफ एशियन स्टेट्स” में लिखा है कि वर्ष 1950 में राधाकृष्णन को मास्को में राजदूत के रूप में भेजा गया तो उनका काम बहुत मुश्किल था.
स्टालिन नहीं रखते थे अच्छी राय
सोवियत संघ और तत्कालीन राष्ट्रपति जोसेफ स्टालिन भारत के बारे में बहुत अच्छी राय नहीं रखते थे. ये वो दौर था, जब दोनों देशों के बीच संबंधों में कोई प्रगाढ़ता नहीं थी, बल्कि कहना चाहिए कि संबंध थे ही नहीं. मास्को में भारत की छवि नकारात्मक बनी हुई थी. उन्हें लगता था कि आजादी के बाद भी भारत साम्राज्यवादी ताकतों के हाथों में खेल रहा है. मास्को के अखबार भारत को साम्राज्यवादियों का पिछलग्गू मानकर खबरें लिखते थे.
राधाकृष्णन संयुक्त राष्ट्र में भारत के पहले राजदूत थे
विजयलक्ष्मी कुछ नहीं कर सकीं थी
भारत ने विजयलक्ष्मी पंडित को आजादी के बाद सोवियत संघ में अपना पहला राजदूत बनाकर भेजा. उन्होंने स्टालिन से कई बार मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें अनुमति ही नहीं दी गई. स्टालिन उन्हें एरोगेंट और कुछ ज्यादा ही अभिजात्य मानते थे. लिहाजा विजयलक्ष्मी पंडित दो साल तक मास्को में केवल भारतीय दूतावास तक सीमित रहीं. नतीजतन वह दो साल बाद ही वहां से बैरंग लौट आईं. लोगों का मानना है कि स्टालिन उनसे नाखुश ही रहा.
मुश्किल काम
ऐसी स्थिति में समझा जा सकता है कि कि जब राधाकृष्णन को विजयलक्ष्मी की जगह मास्को भेजा गया होगा तो उनके सामने कितनी बड़ी चुनौती रही होगी. मास्को से जाने से पहले राधाकृष्ण संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत थे. अब उन्हें स्टालिन को साधना था, जो बहुत मूडी भी था. और दिमाग मेें अगर कोई धारणा बिठा ली तो जल्दी उससे बाहर भी नहीं निकलते थे. उन्होंने उन्होंने भारत और नेहरू के खिलाफ एक नकारात्मक धारणा बिठाई हुई थी.
मास्को में हालात राजदूत के रूप में आसान नहीं थे
प्रोपेगेंडा रात में बस दो घंटे नींद का
राधाकृष्णन चालाक शख्स थे. वह फिलास्फर भी थे. उन दिनों रूस में दार्शनिकों को काफी सम्मान दिया जाता था. लिहाजा उन्होंने मास्को में खुद को अलग और खास दिखाने के लिए अपनी इस छवि को भुनाने की कोशिश की. मास्को के राजनयिक सर्किल में उनके बारे में प्रोपेगैंडा फैलाया जाने लगा कि वह रात में केवल दो घंटे सोते हैं. रातभर दर्शन की किताबें लिखने में बिजी रहते हैं. दिन में राजनयिक की भूमिका निभाते हैं.वह रहस्यपूर्ण शख्सियत बन गए
स्टालिन पर जादू कर दिया
ये प्रचार बहुत काम आया. राधाकृष्णन की एक अलग छवि सोवियत संघ में बनने लगी. जब उन्होंने स्टालिन से मिलने का समय मांगा तो तुरंत समय मिल गया. भारतीय दूतावास के विदेश मंत्रालय को भेजे गए केबल में कहा गया कि पहली मुलाकात बहुत उपयोगी रही, जिसने भारत के बारे में स्टालिन की ढेर सारी धारणाएं बदल दीं. उन्होंने भारत के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर किया. आदत के खिलाफ इस मुलाकात में स्टालिन हंसे और अनौपचारिक भी हुए.
जब राधाकृष्णन मास्को से लौटे तो स्टालिन उनके मुरीद बन चुके थे
जानते थे क्या जवाब देना है
स्टालिन को लगता था कि भारत में अंग्रेजी भाषा का राज चलता है. उन्होंने पूछा-आपके यहां कौन सी भाषा में काम होता है. राधाकृष्णन ने चतुराई से जवाब दिया कि देश की सबसे लोकप्रिय भाषा हिन्दी है. इस पर सोवियत प्रमुख खुश हुआ. अगर राधाकृष्णन का जवाब अंग्रेजी होता तो शायद ये स्टालिन को अच्छा नहीं लगता.
सफल टास्क पूरा कर लौटे
राधाकृष्णन ने ढाई साल बाद मास्को से कूच किया. उन्हें आठ अप्रैल को वापस भारत लौटना था. इससे महज तीन दिन पहले उन्होंने स्टालिन से मिलने की कोशिश की. समय मिल गया, स्टालिन विदेशी राजदूतों को मिलने के लिए काफी इंतजार कराया करते थे. वह काफी हद तक भारत के बारे में एक अलग तस्वीर स्टालिन के सामने पेश कर चुके थे. साथ ही नेहरू और मास्को भी करीब लाने में सफल रहे थे.अपनी आखिरी मुलाकात में भी उन्होंने भारत के बारे में बची खुची भ्रातियों को दूर किया.
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Tags: Diplomat, Dr. Radhakrishnan, India russia, Teachers dayFIRST PUBLISHED : September 05, 2022, 08:05 IST