जब औरंगजेब को एक हिंदू तवायफ से हुआ प्यार क्यों बार-बार मिली दुत्कार
जब औरंगजेब को एक हिंदू तवायफ से हुआ प्यार क्यों बार-बार मिली दुत्कार
Love Story Of Aurangzeb : मुगल बादशाह औरंगजेब को चाहे शुष्क, कट्टर और धर्मांध मुगल शासक के तौर पर याद किया जाता रहा हो लेकिन अजीब इत्तफाक है कि उसे दो बार प्यार हुआ लेकिन दोनों बार निराशा हाथ लगी.
हाइलाइट्स पहला प्यार औरंगजेब को युवा उम्र में औरंगाबाद में हुआ दूसरा प्यार तब हुआ जब वह दिल्ली की गद्दी पर बैठ चुका था क्यों हिंदू तवायफ उसे बार बार दुत्कारती रही
इसे क्या कहेंगे कि मुगल सम्राट औरंगजेब को दो बार जबरदस्त प्यार हुआ. ऐसा कि उसकी रातों की नींद और चैन हराम हो गया. दोनों बार वो जिनसे प्यार कर बैठा, वो तवायफ थीं. एक उसे तब मिली जब वह जवान था. बादशाह नहीं बना था बल्कि खुद को बनाए रखने की लड़ाई लड़ रहा था. दूसरी तवायफ को तो वो दिलोजान से चाहने लगा था लेकिन उसने एक बार नहीं बार बार उसे दुत्कारा. यानि वो भी उसको नहीं मिली.
औरंगजेब बहुत शुष्क मिजाज और धर्म के लिए कट्टर शासक था. हकीकत में औरंगजेब को कई बार प्यार हुआ. दो प्यार के किस्से कुछ अलबेले हैं. ये प्यार खूबसूरत, मनमोहक और गीत संगीत के जरिए मदहोश कर देने वाली दो तवायफों से हुआ. पहला किस्सा तब का है जब वो एकदम युवा था. दूसरा किस्सा तब का है जब वो दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ था.
औरंगजेब का वो पहला प्यार
हम यहां जिसकी चर्चा करने जा रहे हैं, वो उसका पहला प्यार है. जिसे औरंगजेब जिंदगी में कभी भूल नहीं पाया. इसके किस्से कई जगह मिल जाते हैं. उसके इस प्यार का नाम हीरा बाई था. वो ईसाई थी. वह औरंगाबाद के पास उसके मौसा के हरम में रहने वाली तवायफ थी. बेइंतिहा सुंदर, गजब की गायिका और मनमोहक नृत्यांगना. अदाओं से दिल पर चाकू चलाने वाली.
तब औरंगजेब युवा था. उसकी बहादुरी के चर्चे तो खूब थे लेकिन शाहजहां का सबसे प्रिय था उसका बड़ा भाई दारा शिकोह. जब बादशाह शाहजहां ने औरंगजेब को दोबारा दक्खन को संभालने भेजा गया तो वह बेमन से गया. दिल्ली की सियासी चालों से वह खिन्न था तो अपने पिता की बेरुखी से क्षुब्ध.
हेरम्ब चतुर्वेदी ने अपनी किताब “दो सुल्तान, दो बादशाह और उनका प्रणय परिवेश” में औरंगजेब के जीवन में आए पहले प्यार पर लिखा है. किताब कहती है, ” औरंगजेब अजीब मनोदशा में दक्खन पहुंचा. इसके बाद वो अपनी मौसी से मिलने के लिए जैनाबाद, बुरहानपुर चला गया. उसके मौसा थे मीर खलील. जिनको बाद में औरंगजेब ने खानदेश का सूबेदार भी बनाया. इन मौसा-मौसी से उसके रिश्ते काफी अच्छे थे. जब तवायफ हीराबाई छत पर आकर संगीत का रियाज करती तो औरंगजेब मंत्रमुग्ध सा उसे नीचे से देखता रहता.
दिलकश अदाएं
एक दिन वह घूमने निकला. घूमते घूमते जैनाबाद-बुरहानपुर के हिरन उद्यान जा पहुंचा. तभी वहां वो जैनाबादी से रू-ब-रू हुआ. दिलकश चेहरा, जादू बिखेरने वाला संगीत कौशल और नाजो अदाएं बहुत दिलकश थी. किसी को भी अपनी ओर खींच लेती थीं.
जब औरंगजेब वहां पहुंचा तभी जैनाबादी हरम की अन्य स्त्रियों के साथ वहां आई. फलों से लदे आम के पेड़ से आम तोड़ा. फिर अदाएं दिखाते हुए गाना गाने लगी. उसकी नाजो-अदा, अप्रतिम सुंदरता और सुरीली गुनगुनाहट के साथ बेतकल्लुफ अंदाज ने औरंगजेब का ध्यान उसकी ओर खींचा.
और उसकी नींद चैन गायब हो गया
औरंगजेब अनायास उस पर मोहित हो गया.उसकी ये हालत हो गई कि अगर वो जैनाबादी को देख ना ले तो नींद नहीं आती थी. उस पर एकदम लट्टू. व्यवहार अजीबगरीब हो गया. जैनाबादी अल्हड़ उम्र की तवायफ थी. मौसा के दरबार में मनोरंजन करती. औरंगजेब चाहता था कि उस बांदी को उसके लिए छोड़ दिया जाए.
मुराद पूरी हो गई. वह उसके पास भेज दी गई. अब वह दक्खन में शासन-प्रशासन के अलावा अगर कहीं वक्त गुजारता तो सिर्फ जैनाबादी के साथ. वो वही सबकुछ करता था जो जैनाबादी उससे कहती थी. एक बार तो हद ही हो गई. एक दिन जैनाबादी ने मदिरा का प्याला औरंगजेब के हाथों में दिया. पीने का निवेदन किया. औरंगजेब जितनी मजबूती से इसको मना करता, वो उतने ही प्यार से निवेदन करती. वह अदाओं से रिझाती. कसमें खिलाती और प्यार का वास्ता देती. औरंगजेब डिग ही गया.
‘अहकाम’ के लेखक के अनुसार, “जैसे ही औरंगजेब ने मदिरा का प्याला होठों से लगाया, तभी जैनाबादी ने उसे छीन लिया. उसने कहा मेरा उद्देश्य बस तुम्हारे प्रेम की परीक्षा लेने का था.” औरंगजेब के इस प्यार की खबर दिल्ली में बादशाह शाहजहां तक भी पहुंची. औरंगजेब उसके प्यार में डूबता ही जा रहा था. हर शाम और खाली वक्त उसी के साथ गुजारता. फिर एक दिन बीमारी से वह चल बसी. बस इतना समझ लीजिए मुगल शहंशाह ने बस किसी तरह खुद को संभाला. औरंगजेब का दूसरा प्यार एकतरफा रहा, जिसके ख्वाब उसने जरूर देखे लेकिन वो उसको नसीब नहीं हुआ.
और वो दूसरी तवायफ जो हिंदू थी
अब आइए दूसरी उस तवायफ के बारे में जानते हैं, जिसे औरंगजेब अपनी रानी बनाना चाहता था. वह तवायफ थी हिंदू धर्म की. संस्कृत और धर्म की जानकार. प्रखर और तार्किक. धर्म को लेकर कट्टर. विचारों और चरित्र में दृढ़. शाहजहां के दरबार में नृत्य और संगीत की महफिलें सजाती थी. लोग दीवाने हो जाते थे.उसका नाम राणा गुल.
वो बड़े भाई दारा शिकोह की बीवी बन चुकी थी
शाहजहां का बड़ा बेटा और औरंगजेब का सबसे बड़ा भाई दारा शिकोह उस पर मर मिटा. धीरे धीरे दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ गया. ये प्यार शाहजहां की आंखों की किरकिरी बन गया.उसने कोशिश की कि किसी भी तरह दोनों के सिर से प्यार का भूत उतार दिया जाए. हर कोशिश नाकाम हो गई. जिसमें दारा को दिल्ली से दूर बाहर भेजने का था. लेकिन जब बात नहीं बनी तो शाहजहां को मन मारकर दोनों का मुता निकाह कराना पड़ा.
बार – बार दुत्कारती रही
जब औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह की हत्या करा दी तो वह चाहता था कि बड़े भाई की बेवा उससे शादी कर ले. तरह तरह से प्रेम प्रस्ताव भिजवाए. दिल खोलकर रख दिया. राणा टस से मस नहीं हुई. दुत्कारते हुए साफ कह दिया कि औरंगजेब ख्वाब में भी ना सोचे कि वो उसकी होगी. वो मर जाना पसंद करेगी.
दरअसल जब दारा शिकोह की हत्या हुई तो उसकी दो उप बीवियां थीं. एक थी राणा गुल और दूसरी थी उदैपुरी महल. दूसरी तुरंत औरंगजेब की बीवी बनकर उसके हरम में शामिल हो गई. जिंदगीभर आराम और सुख से रही. जिसे असल में औरंगजेब रानी बनाना चाहता था, वो तो सपने में भी इस शहंशाह नहीं देखना चाहती थी.
हर कोई उसका मुरीद हो जाता
राणा गुल ऐसी तवायफ थी, जो पढ़ाई-लिखाई, अध्ययन, कामकाज और फैसला लेने की क्षमता वाली शख्सियत थी. उसमें कुछ ऐसी बात थी. जो उसके करीब आता था. उसका मुरीद हो ही जाता था. एक ओर औरंगजेब उसके लिए तड़फने लगा, वहीं राणा बार बार इनकार कर देती. हर इनकार औरंगजेब की बेकरारी बढ़ा देता. ये एकतरफा प्यार की बेचैनी थी. वह हठी, जिद्दी, अडिग और निर्भीक थी.
सारे घने बाल काटे और भेज दिए
एशियाई परंपरा के अनुसार बड़े भाई की विधवा पत्नियों और उप पत्नियों पर छोटे भाई का अधिकार माना जाता है. औरंगजेब ने जब इस अधिकार की बात की तब भी राना ने दो-टूक इनकार कर दिया.औरंगजेब ने पैगाम भेजा कि वह उसकी जुल्फों का मुरीद है. अगले ही दिन औरंगजेब के इस पत्र के जवाब में उसने अपने सारे लंबे घने काले बाल काटकर औरंगजेब को भेज दिए. साथ में पत्र लिखा-आपको मेरे ये बाल बहुत प्रिय लगे, इसलिए आपको समर्पित. आशा है कि आप संतुष्ट होंगे.
इस तरह राणा ने पत्र के लिए साफ जाहिर कर दिया कि औरंगजेब उसको भूल ही जाए. उसके मतानुसार, नया मुगल बादशाह उस जैसी विधवा से इतना ही पा सकता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं. राना के गंजे सिर को देखकर हर कोई अवाक रह गया. औरंगजेब को जब राना के बाल और पत्र मिला तो वह अवाक रह गया.
अबकी बार उसे मिला खून से रंगा चाकू
अब भी औरंगजेब ने हार नहीं मानी. उसने दोबारा प्रणय निवेदन में उसके सौंदर्य की तारीफों के पुल बांध दिये. तब राना ने जो जवाब दिया, उससे रक्त रंजित रास्ते से सत्ता से शीर्ष पर पहुंचा औरंगजेब भी घबरा गिया. उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कठोर और साफ जवाब मिलेगा.
उसने चाकू से चेहरे पर चीरा लगाया. खून से सना वो चाकू भेजा. ये लिखा कि जिस सौंदर्य की उसने तारीफ की, उस पर तो अब चाकू से चीरा लग चुका है. ये संदेह स्पष्ट, निश्चित, दृढ़ और अंतिम था. राणा ने ये समझा दिया था कि उसका प्यार केवल दारा के लिए ही था, उसके लिए तो कतई नहीं. अब जाहिर था कि अगर औरंगजेब ने ज्यादा किया तो वह जान दे देगी.
मुगल बादशाह की समझ में आ गया कि सबकुछ जीता नहीं जा सकता. एक बार फिर उसका दिल बुरी तरह टूटा लेकिन अब कुछ नहीं कर सकता था. ये बात अलग है कि औरंगजेब ताजिंदगी राणा को भूल तो नहीं पाया.
Tags: Love, Love Story, Mughal EmperorFIRST PUBLISHED : May 28, 2024, 21:00 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed