10 दिनों तक जैन धर्मावलंबी मनाते हैं यह पर्व जानें इसका महत्व
10 दिनों तक जैन धर्मावलंबी मनाते हैं यह पर्व जानें इसका महत्व
जैन मुनि अमित सागर महाराज ने बताया कि यह पर्व साल में तीन बार आता है, लेकिन भाद्रपक्ष की पंचमी से शुरु होने वाला पर्व महापर्व है. यह पर्व आत्मा को पवित्र बनाने के लिए मनाया जाता है. साथ ही आत्म साधना, इंद्रि साधना के बारे में बताते हैं, जिससे आत्मा का उत्थान होता है. उन्होंने बताया कि धर्म वही है जो जीव को हर सांसारिक दुख से निकालकर उत्तम सुख में पहुंचा दे.
फिरोजाबाद. जैन धर्म में पर्यूषण पर्व का एक अलग ही महत्व है. इस पर्व को सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है, इसलिए पर्यूषण पर्व को महापर्व भी कहा जाता है. जैन धर्म में यह पर्व दस दिन तक मनाया जाता है. जैनियों द्वारा इसे दशलक्षण पर्व के रुप में भी मनाया जाता है.
पर्यूषण पर्व भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म: और जियो और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है. साथ ही मोक्ष का द्वार भी खोलता है. दस दिन तक जैनी अलग-अलग नियम और कर्म करते हैं. जिससे उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिलती है.
आत्मा में धर्म को स्थापित करने का नाम है पर्यूषण पर्व
फिरोजाबाद के जैन मुनि अमित सागर महाराज ने लोकल 18 को बताया कि वैसे तो पर्यूषण पर्व आत्महित का साधन है और विश्व में जितने भी धर्म हैं, उनमें दस धर्मों की व्याख्या का गई है. सभी धर्मों में दस धर्म प्रमुख माने गए हैं. गीता में भी इनका वर्णन किया गया है. धर्म आत्म उत्थान के लिए होता है, लेकिन धर्म यदि साम्प्रदायिक बन जाता है तो वह आत्मीय स्वभाव से दूर ले जाता है. वास्तव में हमारी आत्मा संसार के सभी धर्मों में पैदा हुई है. जहां भी गए उसी को मान लिया और उसी के लिए लड़ते-झगड़ते रहे. पर्यूषण पर्व आत्मा के अंदर धर्म पैदा करता है. आत्मा के स्वभाव को पहचानता है और धर्म हमें आत्म विशुद्धि सिखाता है. उन्होंने बताया कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया आदि से आत्मा को बचाने की शिक्षा का नाम पर्यूषण पर्व है.
भाद्रपक्ष की पंचमी से शुरु होता है ये पर्यूषण पर्व
जैन मुनि महाराज ने बताया कि यह पर्व आत्मा को पवित्र बनाने के लिए मनाया जाता है. साथ ही आत्म साधना, इंद्रि साधना के बारे में बताते हैं, जिससे आत्मा का उत्थान होता है. उन्होंने बताया कि धर्म वही है जो जीव को हर सांसारिक दुख से निकालकर उत्तम सुख में पहुंचा दे. धर्म को हम अनेक प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं. यह पर्व साल में तीन बार आता है, लेकिन भाद्रपक्ष की पंचमी से शुरु होने वाला पर्व महापर्व है. जिसमें क्षमा, मार्दव, आर्दव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचनता, ब्रह्मचर्य ये दशलक्षण हैं, जो इस पर्व पर अलग-अलग दिन बताया जाता है.
Tags: Dharma Aastha, Firozabad News, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : September 6, 2024, 15:59 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed