क्या है सती मठ की कहानी स्थानीय के लिए क्यों है महत्वपूर्ण यहां जानें सबकुछ
क्या है सती मठ की कहानी स्थानीय के लिए क्यों है महत्वपूर्ण यहां जानें सबकुछ
Sati Math Etawah: इन सती मठों के प्रति स्थानीय लोगों की गहरी आस्था है. यह स्थल न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय अस्मिता और श्रद्धा से भी जुड़ा हुआ है. हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर लोग यहां सुहाग सामग्री अर्पित कर अपने परिवार के कल्याण की कामना करते हैं.
रजत कुमार/इटावा: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले का इतिहास महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़ा हुआ है, लेकिन उचित संरक्षण और दस्तावेजीकरण के अभाव में कई ऐतिहासिक स्थल बदहाल स्थिति में हैं. इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण स्थल है सती मठ, जहां पर सैकड़ों हिंदू सेनापतियों की विधवाओं ने सामूहिक जौहर किया था. ऐसा माना जाता है कि यह जौहर मोहम्मद गौरी के आक्रमण के समय हुआ था, जब मुस्लिम आक्रांताओं से बचने के लिए इन वीरांगनाओं ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अग्नि स्नान किया था.
समय की मार के कारण अधिकांश सती मठ ध्वस्त हो चुके हैं, लेकिन कुछ मठ अब भी बचे हुए हैं जिन्हें स्थानीय जागरूक लोगों ने अपनी सीमित संसाधनों के साथ संरक्षित करने की कोशिश की है. हालांकि, बिना सरकारी सहायता के यह स्थल पूरी तरह से संरक्षित नहीं हो सकते हैं. इसी कारण, स्थानीय निवासियों ने राज्य के पर्यटन और नगर विकास मंत्रियों से इन ऐतिहासिक स्थलों के विकास और संरक्षण की मांग की है.
सती मठों के विस्तार की मांग
इस मांग को उठाने वालों में इटावा नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रतिभा रंजन दीक्षित के पुत्र समाजसेवी राममनोहर दीक्षित, अरविंद दीक्षित और सुनील मिश्रा प्रमुख हैं. इन सती मठों का विस्तार करीब सौ बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है, जहां एक हनुमान जी और भगवान शिव का मंदिर भी है. यहां पर नियमित रूप से धार्मिक आयोजन होते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोग हिस्सा लेते हैं. हाल ही में हुए भागवत आयोजन में इटावा सदर की विधायक सरिता भदौरिया भी शामिल हुई थीं.
सती मठ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इतिहासकार अरविंद दीक्षित के अनुसार, 1193 ईस्वी में चंदावल (वर्तमान फिरोजाबाद) में मोहम्मद गौरी और कन्नौज के राजा जयचंद के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें जयचंद की हार हुई. इसके बाद गौरी ने इटावा और इसके निकट स्थित आसई के किले पर हमला किया, जिसका प्रतिरोध इटावा के राजा सुमेर सिंह ने किया. इस युद्ध में गौरी के 22 प्रमुख सरदार और लगभग 22,000 सैनिक मारे गए. राजा सुमेर सिंह की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए हिंदू सैनिकों की विधवाओं ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सामूहिक जौहर किया.
समाधि स्थल को कहते हैं सतियन
ये वीरांगनाएं विभिन्न जाति-उपजातियों से संबद्ध थीं और उनके समाधि स्थल आज भी इटावा शहर के दक्षिण-पश्चिम में छिपैटी मोहल्ले में स्थित हैं. इन स्थलों को स्थानीय भाषा में ‘सतियन’ कहा जाता है और यहां शादी-विवाह जैसे शुभ कार्यों में पूजा करने की परंपरा है. कार्तिक पूर्णिमा पर इन सती के वंशज सुहाग सामग्री के साथ पूजा अर्चना करने आते हैं.
स्थानीय लोगों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है सती मठ?
इन सती मठों के प्रति स्थानीय लोगों की गहरी आस्था है. यह स्थल न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय अस्मिता और श्रद्धा से भी जुड़ा हुआ है. हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर लोग यहां सुहाग सामग्री अर्पित कर अपने परिवार के कल्याण की कामना करते हैं. इतिहास के पन्नों में मुगल आक्रमण और गीत-कविता पर प्रतिबंध के कारण इन स्थलों को उतनी प्रसिद्धि नहीं मिल पाई जितनी मिलनी चाहिए थी, लेकिन स्थानीय लोगों की श्रद्धा आज भी इन स्थलों से जुड़ी हुई है. यह जरूरी है कि इन स्थलों का उचित संरक्षण किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां इन ऐतिहासिक धरोहरों से परिचित हो सकें और उनकी महत्ता को समझ सकें.
Tags: Etawah latest news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : September 2, 2024, 15:29 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed