दास्तान-गो : राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ‘काकोरी-कांड’ के चौथे शहीद जो भुला दिए गए!

Daastaan-Go ; Rajendra Nath Lahiri, Forgotten Martyr of Kakori Case : यह 10 नवंबर की तारीख़ थी. कहते हैं, पुलिस के दस्तक देने पर एक नौजवान लीडर रखल चंद्र डे ने दरवाज़ा खोला. उन्होंने पुलिस को कुछ देर गुमराह करने की कोशिश की. ताकि उनके साथी पीछ़े के रास्तों से भाग निकलने में कामयाब हो सकें. मगर वे ख़ुद अपनी कोशिश में ज़्यादा कामयाब न हो पाए. पुलिस धड़धड़ाते हुए भीतर घुस आई और वहां मौज़ूद तमाम लोगों को गिरफ़्तार कर लिया. राजेंद्रनाथ को भी, जो उस कमरे से ही ऊपर की मंज़िल की तरफ़ जाने वाली सीढ़ियों से भागने की कोशिश कर रहे थे.

दास्तान-गो : राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ‘काकोरी-कांड’ के चौथे शहीद जो भुला दिए गए!
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक्ती तौर पर मौजूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज…  ——- सबको याद है जनाब, अच्छी तरह से. नौ अगस्त 1925 की तारीख़, जब ब्रितानिया हिन्दुस्तान के ‘यूनाइटेड प्रोविंस ऑफ आगरा एंड अवध’ के काकोरी क़स्बे में ‘ट्रेन लूट’ ली गई थी. ट्रेन में सरकारी रकम थी. इसे लखनऊ के सरकारी ख़ज़ाने में जमा कराया जाना था. लिहाज़ा, सरकार ने सुरक्षा का पूरा बंदोबस्त किया था. लेकिन लखनऊ से क़रीब 16 किलोमीटर पहले काकोरी में जब ट्रेन को रोका गया तो ये बंदोबस्त किसी काम न आया. सुरक्षा गारद देखते रहे और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की अगुवाई में हिन्दुस्तान के 10 क्रांतिकारियों ने ट्रेन में लदी सरकारी रकम लूट ली. मुल्क की आज़ादी के लिए चलाए जा आन्दोलन को पैसों की ज़रूरत थी क्योंकि. अलबत्ता, पैसों का इंतिज़ाम तो दूसरे तरीकों से भी हो सकता था, लेकिन क्रांतिकारियों का मकसद एक यह भी था कि अंग्रेज सरकार उन पर ग़ौर करे. उनकी मौजूदगी से घबराया करे. इसलिए भी लूट को अंजाम दिया. सबको याद ही है जनाब फिर, इसके बाद 19 दिसंबर 1927 की तारीख़ भी. वह दिन जब रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफ़ाक़-उल्ला खां को फ़ैज़ाबाद और ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद की नैनी जेल में फ़ांसी पर चढ़ा दिया गया. उसी ‘काकोरी कांड’ के दोष में. लेकिन इन दो तारीख़ों और तीन नामों के बीच किसी कड़ी की तरह ठहरे एक नाम और एक तारीख़ ने अब तक शायद कम लोगों की ही यादों में जगह बनाए रखी होगी. राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, इसी ‘काकोरी कांड’ के चौथे शहीद, जिन्हें 17 दिसंबर 1927 को गोंडा की जेल में फ़ांसी पर चढ़ा दिया गया. बहुत कम लोग ये जानते हैं कि काकोरी में जिस ट्रेन को लूटा गया उसमें राजेंद्रनाथ लाहिड़ी पहले से सवार थे. और उन्होंने तय वक़्त और जगह पर ट्रेन को जंजीर खींचकर रोका. ताकि उनके साथी उसमें चढ़कर लूट को अंज़ाम दे दें. बल्कि कहते तो यहां तक हैं कि लूट के इस मंसूबे के मास्टरमाइंड ही लाहिड़ी थे. Rajendra Nath Lahiri, Forgotten Martyr of Kakori Case इन्हीं राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की आज यानी 29 जून की तारीख़ को पैदाइश हुई थी. साल 1901 में. तब की बंगाल प्रेसिडेंसी में एक जिला हुआ करता था पबना. आज-कल बांग्लादेश में है. उसी जिले के मोहनपुर क़स्बे में एक बरहमन ख़ानदान में राजेंद्रनाथ पैदा हुए. मुल्क की आज़ादी के लिए लड़ना, मरना ख़ानदानी रिवायत थी उनके यहां. वालिद क्षिति मोहन लाहिड़ी बड़े ज़मींदार होते थे. लेकिन इससे ज़्यादा उनका नाम इसलिए हुआ कि वे क्रांतिकारियों की तंज़ीम (संगठन) ‘अनुशीलन समिति’ के अहम रुक्न (सदस्य, स्तंभ) होते थे. इसी सिलसिले में कई बार जेल भी जाना पड़ जाता था. और जब राजेंद्रनाथ महज आठ-नौ बरस के थे, तब भी उनके वालिद को इसी वज़ा से जेल जाना पड़ गया. तब मां बसंत कुमारी ने उन्हें अपने मायके बनारस भेज दिया. ताकि वहां वे पहले अपनी तालीम पूरी कर सकें, जो कि राजेंद्रनाथ ने नाना-मामा के घर पर रहकर की भी. लेकिन जैसा पहले ज़िक्र किया, मुल्क की आज़ादी के लिए लड़ना, मरना ख़ानदानी रिवायत थी उनकी. सो, बनारस में अभी जब वे काशी हिन्दू यूनिवर्सिटी में एमए (इतिहास) फर्स्ट इयर की पढ़ाई कर ही रहे थे कि तभी उनकी मुलाक़ात हो गई शचींद्रनाथ सान्याल से. ‘अनुशीलन समिति’ के बड़े नेता थे. उन्होंने राजेंद्रनाथ के भीतर मुल्क के लिए लड़-मरने की छटपटाहट पहचानी और उन्हें साथ जोड़ लिया. तंज़ीम की बनारसी शाख़ (बनारस ब्रांच) के महकमा-ए-फ़ौज (सशस्त्र सेना विभाग) का ज़िम्मा-दार (प्रभारी) बना दिया. साथ ही मैगज़ीन ‘बंग वाणी’ के संपादक का ओहदा भी दे दिया. अब इस हैसियत से महज़ कुछ दिनों में ही राजेंद्रनाथ एक दूसरी हथियारबंद तंज़ीम ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ से जुड़े और उसकी ख़ुफ़िया बैठकों में शामिल होने लगे. ये तंज़ीम शचींद्रनाथ सान्याल ने ही पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर 1924 में बनाई थी. यही वह तंज़ीम थी जिसके मेंबरान (सदस्यों) ने ‘काकोरी कांड’ का मंसूबा बांधा और उसे अंज़ाम दिया था. बताते हैं कि उस कारनामे के बाद सान्याल ने राजेंद्रनाथ को कलकत्ते भेज दिया था. ताकि वे वहां रहकर तंज़ीम के दूसरे मेंबरान के साथ मिलकर आतिशीं-असलहे (बम, बारूद वग़ैरा) का बंदोबस्त कर सकें. राजेंद्रनाथ ने ऐसा किया भी. कलकत्ते जाकर वे दक्षिणेश्वर इलाके में सोवा-बाज़ार गली के एक मकान में ठहरे. इस मकान में क्रांतिकारियों की आवा-जाही होती रहती थी. इसी वज़ा से वह कलकत्ता पुलिस की निगरानी में रहा करता था. बताते हैं, ‘काकोरी कांड’ के बाद अंग्रेजी पुलिस ने और तमाम जगहों की तरह इस मकान पर भी ख़ुफ़िया निगरानी बिठा दी थी. अनंत हरि मित्रा, तब एक और बड़े क्रांतिकारी होते थे. पुलिस को उनकी तलाश थी और उन्हें पकड़ने की ग़रज़ से निगहबानी की जा रही थी. इस उम्मीद से कि उन्हें पकड़ लिया तो बड़ा सुराग लग सकता है. तब के पुलिसिया दस्तावेज़ बताते हैं कि छह नवंबर (1925) की शाम मुख़बिर ने पुलिस को ख़बर दी कि अनंत हरि अपने दो अन्य साथियों के साथ उस मकान में आए हैं. इसके बाद पुलिस ने अगले दो-तीन दिनों तक ख़ुफ़िया तौर पर अनंत हरि के हर कदम की निगरानी की. इस दौरान पाया गया कि उन्होंने कुछ संदिग्ध सा नज़र आने वाला सामान दक्षिणेश्वर इलाके के दूसरे मकान में ले जाकर रखा है. जब पुलिस ने इन तमाम सरगर्मियों पर पुख़्तगी कर ली तो तलाशी वारंट के साथ मकान पर छापा मारा, जहां क्रांतिकारियों के ठहरे होने का शुबा था. यह 10 नवंबर की तारीख़ थी. कहते हैं, पुलिस के दस्तक देने पर एक नौजवान लीडर रखल चंद्र डे ने दरवाज़ा खोला. उन्होंने पुलिस को कुछ देर गुमराह करने की कोशिश की. ताकि उनके साथी पीछ़े के रास्तों से भाग निकलने में कामयाब हो सकें. मगर वे ख़ुद अपनी कोशिश में ज़्यादा कामयाब न हो पाए. Rajendra Nath Lahiri, Forgotten Martyr of Kakori Case पुलिस धड़धड़ाते हुए भीतर घुस आई और वहां मौज़ूद तमाम लोगों को गिरफ़्तार कर लिया. राजेंद्रनाथ को भी, जो उस कमरे से ही ऊपर की मंज़िल की तरफ़ जाने वाली सीढ़ियों से भागने की कोशिश कर रहे थे. बताते हैं, कमरे से असलहा भी बरामद किया गया. एक ज़िंदा बम, एक भरी हुई रिवॉल्वर, एक पिस्तौल वग़ैरा. क़रीब 11 लोग पकड़े गए. इनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला. सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश और बम बनाने के आरोप लगे. जनवरी की नौ तारीख़, साल 1926 को फ़ैसला आया. सभी कानून की अलग-अलग धाराओं में दोषी ठहराए गए. इनमें से तीन लोगों को 10 साल से कुछ ज़्यादा की सख़्त क़ैद की सज़ा हुई. इनमें राजेंद्रनाथ भी थे. बताते हैं कि उन्हें सज़ा भुगतने के लिए पहले अंडमान-निकोबार की जेल भेजा गया. बाद में लखनऊ और फिर गोंडा जेल ले आया गया. तारीख़ में ये मामला ‘दक्षिणेश्वर बम मामले’ के नाम से जगह पाता है. वैसे, इसी मामले में एक किस्सा यूं भी कहा जाता है कि उस मकान में बम बनाते वक़्त किसी की लापरवाही से धमाका हो गया था. इसके बाद राजेंद्रनाथ वग़ैरा पकड़े गए. हालांकि, पुलिस ने जांच से जुड़े जो दस्तावेज़ अदालत में पेश किए, उसमें इस तरह के धमाके का ज़िक्र नहीं मिलता. बहरहाल, जनवरी-फरवरी के महीनों तक ही इस तरफ़, ‘काकोरी कांड’ से जुड़े क़रीब 40 लोगों को अंग्रेज सरकार गिरफ़्तार कर चुकी थी. शचींद्रनाथ सितंबर और अशफ़ाक़-उल्ला दिसंबर के महीने में पकड़े गए. अब तक पुलिस को यह भी पता चल चुका था कि राजेंद्रनाथ ही वह शख़्स थे, जिन्होंने काकोरी में जंजीर खींचकर ट्रेन रोकी थी. और वे साज़िश की शुरुआत से ही इसमें अहम किरदार अदा कर रहे थे. लिहाज़ा, उन्हें भी अंडमान से यूनाइटेड प्रोविंस ऑफ़ आगरा एंड अवध ले आया गया. यहां सब पर मुक़दमे चले, जिनका आख़िरी फ़ैसला छह अप्रैल 1927 को आया. इस मामले में राजेंद्रनाथ समेत चार लोगों को फ़ांसी की सज़ा दी गई. इसके लिए तारीख़ तय हुई 19 दिसंबर 1927 की. अलग-अलग जेलों में बंद सभी क्रांतिकारियों को इसी दिन एक साथ फ़ांसी पर चढ़ाया जाना था. लेकिन तभी पुलिस को ख़ुफ़िया तौर पर ख़बर मिली कि मनमथ नाथ गुप्ता की अगुवाई में आज़ाद घूम रहे कुछ क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ को जेल से छुड़ाने का मंसूबा बांध चुके हैं. गोंडा की जेल में सुरक्षा के इंतज़ामात बहुत पुख़्ता न थे. इसलिए यहां मंसूबे को अंज़ाम में देने के लिहाज़ से क्रांतिकारियों को आसानी होने वाली थी. लिहाज़ा उनका मंसूबा नाकाम करने के लिए जेल अफ़सरों ने राजेंद्रनाथ को तय तारीख़ से दो रोज़ पहले ही फ़ांसी पर लटका दिया. कहते हैं, तब बाक़ायदा रोज़ की वर्ज़िश करने के बाद फ़ांसी का फ़ंदा चूमने निकले थे राजेंद्रनाथ. किसी ने पूछा, ‘ऐसा क्यूं?’ तो कहने लगे, ‘इसलिए ताकि अगली बार मुल्क की आज़ादी के लिए लड़ने को फिर से, सेहतमंद शरीर के साथ लौट सकूं.’ इस तरह के तेवर वाले थे राजेंद्रनाथ लाहिड़ी. —– (इस दास्तान के लिए कुछ संदर्भ ‘इंडियनकल्चर डॉट गॉव डॉट इन’ की अर्काइव में मौज़ूद ‘दक्षिणेश्वर बम मामले’ के फ़ैसले की प्रति और मनमथ नाथ गुप्ता की आत्मकथा ‘दे लिव्ड डेंजरसली’ से लिए गए हैं.) ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Birth anniversary, Hindi news, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : June 29, 2022, 14:28 IST