दास्तान-गो: ‘मीरी पैबी’ की बेटी मीरा बाई चानू जिसने पाकिस्तान को भी राह दिखाई!
दास्तान-गो: ‘मीरी पैबी’ की बेटी मीरा बाई चानू जिसने पाकिस्तान को भी राह दिखाई!
Daastaan-Go ; Mira Bai Chanu Birth Day : जनाब, ‘नूह दस्तगीर की प्रेरणा’ मीरा बाई चानू इस बार भी उनके आगे-आगे ही नज़र आईं. उन्होंने दो दिन बाद, यानी पांच अगस्त को पहले 88 और फिर 113 (कुल 201) किलोग्राम वज़न उठाकर हिन्दुस्तान के ख़ाते में पहला गोल्ड मैडल डालकर साबित कर दिया कि नूह का ख़्याल उनके बारे में सही है.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, हिन्दुस्तान के पूर्वोत्तर में स्थानीय औरतों की एक जमात है, ‘मीरा पैबी’. साल 1970 के बाद की दहाई के आख़िर में मणिपुर के ककचिंग जिले में समाजी आंदोलन के दौरान यह जमात बनी. इसमें शामिल औरतें अक्सर रात के वक़्त हाथ में मशाल लेकर आंदोलन करने वालों को राह दिखाती हैं. मणिपुर जैसे सूबों में तमाम मसले चूंकि अब भी ऐसे हैं, जिन पर लोगों को आवाज़ बुलंद करने की ज़रूरत महसूस होती है. लिहाज़ा, ‘मीरा पैबी’ की जमात आज भी पीछे चलने वालों की राहें रोशन करने और उन्हें राह दिखाने की ज़िम्मेदारी बख़ूबी निभाया करती है. इसी जमात में एक नाम है, सैकहोम ओंग्बी तोंबी लीमा. राजधानी इंफाल से क़रीब 20 किलोमीटर दूर एक क़स्बा है, नोंगपोक ककचिंग. वे वहीं चाय की दुकान लगाती हैं. लेकिन जनाब, आज उनकी पहचान सिर्फ़ इतनी नहीं है. क्योंकि अब वे मीरा बाई चानू की मां के नाम से मशहूर हो चुकी हैं.
‘मीरा पैबी’ सैकहोम ओंग्बी तोंबी लीमा की बेटी मीरा बाई भी आज अपनी मां की तरह हिन्दुस्तान ही नहीं, पड़ोसी पाकिस्तान को भी राह दिखा रही हैं. यक़ीन न आए तो वहां के गुजरांवाला के रहने वाले नूह दस्तगीर बट की ज़ुबानी ख़ुद सुन लीजिए. इन्होंने अभी इसी तीन अगस्त को कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान वज़न उठाने के खेल (वेटलिफ्टिंग) में गोल्ड मैडल जीता है. उनके मुल्क के लिए उनकी जानिब से यह तारीख़ी क़ामयाबी है. लेकिन वे इसके लिए सीधे तौर पर मीरा बाई चानू को मंसूब करते (श्रेय देना) हैं. वे कहते हैं, ‘बीते साल टोक्यो ओलंपिक के दौरान मेरे लिए सबसे बड़ा यादगार लम्हा वह था, जब मीरा बाई ने सिल्वर मैडल जीता. अस्ल में, वही मौका मेरे लिए सबसे बड़ी इंस्पिरेशन बना. वहां से मुझे यक़ीन हो गया कि हम दक्षिण एशिया के लोग भी इस तरह के खेलों में अपने मुल्क के लिए मैडल जीत सकते हैं. और देखिए जीत भी लिया’.
जनाब, ‘नूह दस्तगीर की प्रेरणा’ मीरा बाई चानू इस बार भी उनके आगे-आगे ही नज़र आईं. उन्होंने दो दिन बाद, यानी पांच अगस्त को पहले 88 और फिर 113 (कुल 201) किलोग्राम वज़न उठाकर हिन्दुस्तान के ख़ाते में पहला गोल्ड मैडल डालकर साबित कर दिया कि नूह का ख़्याल उनके बारे में सही है. वैसे जनाब, मीरा बाई की क़ामयाबी पर ख्याल तो अंग्रेजी फिल्मों के अदाकार क्रिस हेम्सवर्थ ने भी रखा है. वे ‘थोर’ के नाम से बनी फिल्म से दुनियाभर में मशहूर हुए हैं. इसमें वे भारी-भरकम हथौड़े की तरह दिखने वाला हथियार लिए हुए नज़र आते हैं. इससे वे खलनायकों की अक़्ल ठिकाने लगाया करते हैं. अलबत्ता, जब मीरा बाई ने 201 किलोग्राम वज़न उठाकर कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मैडल जीता तो किसी ने सोशल मीडिया पर हेम्सवर्थ को मशवरा दे दिया, ‘अब अपना हथौड़ा छोड़ना पड़ेगा आपको!’. तो वे बोले, ‘वाक़’ई में, मीरा बाई इसकी हक़दार हैं’.
जनाब, इस तरह की मिसालें बताने का मक़सद सिर्फ़ ये जताना-बताना है कि देखिए, एक ‘मीरा पैबी’ की बेटी मीरा बाई आज ख़ुद कैसी मशाल की तरह हिन्दुस्तान ही नहीं, उसके बाहर भी जगमग है. हालांकि उनका गुज़रा वक़्त घने अंधियारे से ढंका रहा है. उसको चीरकर बाहर निकलते हुए वह ख़ुद किस तरह रोशन हुई, ये जानना अपने आप में दिलचस्प है. बीते साल की ही बात है जनाब, जब मीरा बाई चानू ने ओलंपिक का सिल्वर मैडल जीता था, तो उनके बारे में तमाम सुर्ख़ियां सामने आई थीं. उन्हीं में अंग्रेजी ज़बान के एक बड़े अख़बार ने बताया था कि मीरा बाई के पिता सैकहोम कृति मैतेई इंफाल में मज़दूरी करते थे. परिवार बेहद ग़रीबी में गुज़ारा करता था. उस पर से छह बच्चों का भरण-पोषण. इनमें मीरा बाई उम्र में सबसे छोटीं लेकिन ज़िद में बड़ीं. उन्होंने टीवी पर एक बार कुंजरानी देवी को देखा और तय कर लिया कि उनकी तरह बनना है.
कुंजरानी देवी ने विश्व चैंपियनशिव में सात बार वज़न उठाने के खेल में सिल्वर मैडल जीता. फिर कॉमनवेल्थ में गोल्ड भी. उन्हें मिली इज़्ज़त और पहचान ने मीरा बाई को एक मक़सद दे दिया था. उन्हें भी यह सब चाहिए था. लेकिन परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे. हालांकि मां थीं, जो बेटी की ज़िद में उसके साथ चल पड़ीं. खेलों से लगाव था उन्हें. सो, इंफ़ाल में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के केंद्र में उन्होंने अपनी 12 साल की बेटी का दाख़िला करा दिया. अब वह बच्ची रोज़ अपने गांव से सुबह-सुबह 20 किलोमीटर दूर साई सेंटर तक जाती. साधन नहीं होता तो कभी किसी ट्रक पर चढ़कर, कभी साइकिल से. कभी आधी दूर कोई साधन मिलता. बाकी का रास्ता पैदल पार करना होता. इसी तरह का हाल लौटते वक़्त भी रहता. पर मीरा बाई के क़दम न डगमगाए. इस बीच, बताते हैं मां को बेटी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए एक बार अपने जेवर भी बेचने पड़े.
इसके बावज़ूद मां का हौसला भी न टूटा और सिलसिला जारी रहा. इसमें पहली क़ामयाबी मिली साल 2011 में. जूनियर कैटेगरी में जब मीरा बाई ने राष्ट्रीय स्तर पर मैडल जीता. और उसके बाद जो हुआ, वह तो पूरी दुनिया ने ही जाना और समझा फिर. हालांकि एक बात जो कम लोग जानते हैं, वह उनके भाई सैकहोम सनातोंबा मैतेई की ज़ुबानी सामने आई थी. वे बताते हैं, ‘हम जब छोटे थे तो एक बार जंगल में लकड़ियां लेने गए. मेरी उम्र तक 16 बरस थी और मीरा 12 के आस-पास. वहां जंगल में हमने लकड़ियों का गट्ठर बनाया. लेकिन वह कुछ ज़्यादा भारी हो गया था. मुझसे भी नहीं उठाया गया. लेकिन मैं यह देखकर तब अचरज में पड़ गया था कि वह गट्ठर मीरा ने आसानी से उठा लिया. उसे लेकर वह घर तक भी चली आई. ये बात मैंने घर पर बताई. तभी शायद मां ने तय किया कि मीरा को आगे ऐसे ही किसी खेल में ले जाना है.’
जनाब, ऐसी कमाल शख़्सियत मीरा बाई आज, यानी आठ जुलाई को अपना जन्म दिन मना रही हैं. भरपूर क़ामयाबी के आलम में. और सुना है कि इस मौके पर उन्होंने एक बड़ा मंसूबा बांध लिया है. ये कि वह जल्द ही अपना एक ट्रेनिंग सेंटर खोलेंगी. वहां वे अपनी तरह के ग़रीब बच्चों को इस खेल की ट्रेनिंग दिया करेंगी. वह भी मुफ़्त में. उनकी मां ने भी यह बात पुख़्ता की है. उनके मुताबिक, अभी ‘ट्रेनिंग सेंटर के लिए ज़मीन देखे जाने की क़वायद जारी है’. यानी मीरा बाई अभी आगे भी कई लोगों के लिए ‘मीरा पैबी’ बनने वाली हैं. जनाब, अगर ये मुमकिन हुआ तो वाक़’ई किसी को अचरज़ न होगा. क्योंकि अच्छी, बुरी तमाम बातें, मां-बाप से ही तो बच्चों में आती हैं.
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Tags: Birthday special, Hindi news, Mirabai Chanu, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : August 08, 2022, 15:10 IST