दास्तान-गो : शंकर-जयकिशन…इनको हमारी उमर लग जाए!

Daastaan-Go ; Jaikishan (Of Musician Duo Shankar-Jaikishan) Death Anniversary : वह ‘बरसात’ फिल्म ही थी, जिसमें शंकर-जयकिशन की जोड़ी की शक़्ल में पहली बार ‘जोड़ीदार संगीतकार’ फिल्मी दुनिया में नुमायां हुए. शायद यही वह फिल्म थी, जिसमें ऑर्केस्ट्रा का पहली बार प्रयोग किया गया, बिल्कुल अलहदा तरीके से. इसी फिल्म से राज कपूर साहब अपनी ख़ास चार्ली चैपलिन जैसी फिल्मी सूरत में नज़र आए. कहते हैं, यही फिल्म थी जिसमें रोमांटिक गाने गाते हुए राज कपूर और नरगिस की मोहब्बत परवान चढ़ी थी. और इसी फिल्म के गाने गाते हुए लता मंगेशकर ने पहली मर्तबा मशहूरियत को उंगली से छूकर देखा था.

दास्तान-गो : शंकर-जयकिशन…इनको हमारी उमर लग जाए!
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…  ———– जनाब, साल 1964 में एक फिल्म आई थी, ‘आई मिलन की बेला’. उसी में एक गाना है. ख़ूबसूरत, कमसिन, नाज़ुक सी अदाकारा सायरा बानो एक घरेलू जलसे के दौरान फिल्म में अपनी मोहब्बत और अदाकार राजेंद्र कुमार के लिए गा रही हैं, ‘तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवा, तुमको हमारी उमर लग जाए’. अलबत्ता जनाब, इस नग़्मे के बोल गीत-संगीत को पसंद करने वाले तमाम लोग भी थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ दोहरा सकते हैं, उन संगीतकारों के लिए जिन्होंने यह धुन रची. यूं, ‘इन्हें और क्या दें अब दिल के सिवा, इनको हमारी उमर लग जाए’. वज़ह ही ऐसी है जनाब. ये कि इस क़िस्म की धुन रचने वाले मूसीक़ार, अव्वल तो कोई एक नहीं थे, बल्कि दो थे. यानी जोड़ी के संगीतकार. दूसरी बात कि उन्होंने जोड़ी बनाकर संगीत देने का सिलसिला भी तब शुरू किया, जब किसी ने इस बारे में सोचा तक नहीं था और बड़ा जाेखिम का तज़रबा समझा जा सकता है. यह जोख़िम भी जनाब, इन दो लोगों ने तब उठाया जबकि तमाम दिग्गज और नामी संगीतकार फिल्मों की दुनिया में अकेले दम अपना असर दिखा रहे थे. मिसाल के तौर पर, राम गांगुली, सलिल चौधरी, सचिन देब बर्मन, सी रामचंद्र, नौशाद वग़ैरा. उस दौर में, अपनी शुरुआत से ही पूरी तरह मुख़्तलिफ़ मिज़ाज के दो लोग साथ आए और तय किया कि वे मिलकर संगीत दिया करेंगे. इतना ही नहीं, इन्होंने शुरू में ही यह भी तय कर लिया कि ये लोग 50-60 लोगों की बड़ी भारी ऑर्केस्ट्रा के साथ संगीत दिया करेंगे. ये भी कि ज़्यादातर नग़्मे अपने पसंदीदा दो नग़्मा-निगारों (हसरत जयपुरी और शैलेंद्र) से ही लिखवाया करेंगे. और फिर जिस बैनर (पृथ्वीराज कपूर का पृथ्वी थिएटर) ने उन्हें फिल्मी दुनिया में उतरने, पैर जमाने का मौका दिया, उसे छोड़ेंगे नहीं. सोचकर देखिए जनाब, क्या इस तरह के सभी फ़ैसले जोखिम भरे नहीं थे. लेकिन इन दोनों मूसीकारों ने लिए और उन्हें सही भी साबित किया. इन दो संगीतकारों का नाम जानते हैं जनाब क्या हुआ? शंकर-जयकिशन. आज, यानी 12 सितंबर को इस संगीतकार जोड़ी में से जयकिशन की रुख़सती का दिन है. साल 1971 में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा था. हालांकि, इनका ज़िक्र शंकर सिंह राम सिंह रघुवंशी के बिना हो, यह मुमकिन नहीं. इसलिए कि जयकिशन के जाने के बाद भी अगले 10-12 बरस अगर किसी ने इस ‘संगीतकार जोड़ी’ का नाम ज़िंदा रखा तो वह शंकर सिंह ही थे. दक्खन के शहर हैदराबाद में पैदा हुए थे. साल 1922 में अक्टूबर की 15 तारीख़ को, जो आने वाली है. हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ता’लीम इन्होंने कई उस्तादों से ली. शुरू-शुरू में तबला बजाया करते थे. और बंबई में भी पहले-पहल ‘पृथ्वी थिएटर’ में तबला बजाने का काम ही किया करते थे. वहीं इन्होंने आगे सितार, पियानो सीख लिया. साथ ही, संगीत तैयार करने में ‘पृथ्वी थिएटर’ के साथ जुड़े संगीतकार हुसनलाल भगतराम की मदद भी करने लगे. इस तरह जोड़ी में उम्र और अनुभव के लिहाज़ से बड़े हुए शंकर सिंह. जबकि जयकिशन हिन्दुस्तान के उत्तर-पश्चिम में पैदा हुआ. आज के गुजरात और उस ज़माने की बॉम्बे प्रेसिडेंसी में. यह बात है, साल 1929 की. नवंबर महीने की चार तारीख़ को दयाभाई पांचाल के घर पर पैदाइश हुई जयकिशन की. बंसदा क़स्बे में रहने वाले दयाभाई और उनके परिवार की संगीत से अच्छी वाक़फ़ियत थी. सो, जयकिशन को बचपने से ही संगीत का शौक़ लग गया. लेकिन उन्होंने छुटपन में जो साज़ अपने हाथ में थामा, वह कुछ-कुछ अंग्रेजी किस्म का था. हारमोनियम, जिसमें बटन, की या चाबी (जो भी कहें) दबाने से धुन निकला करती है. यानी इसी उम्र में यह नज़र आने लगा था कि जयकिशन दयाभाई पांचाल आख़िर किस राह पर चलने वाले हैं और उनके लिए नाम बनाने का ज़रिया क्या बनने वाला है. वैसे, शास्त्रीय संगीत की ता’लीम इन्होंने भी ली थी. वाडीलाल जी और प्रेमशंकर नायक इनके उस्ताद कहे जाते हैं. हालांकि इसके बावज़ूद जयकिशन जी की दिलचस्पी ज़्यादातर पश्चिम के साज़ों, धुनों में रही. इसीलिए जब इनकी मुलाक़ात बंबई में शंकर सिंह से हुई, साल 1947 के आस-पास, और इन्होंने मिलकर संगीत रचने का फ़ैसला किया तो दोनों ने एक समझ बना ली. यूं कि एक शास्त्रीय संगीत और नृत्य पर आधारित धुनें, ख़ास तौर पर, बनाया करेगा. और दूसरा फिल्मों का बैकग्राउंड म्यूज़िक और रोमांटिक नग़्मों की धुनें वग़ैरा तैयार किया करेगा. इस तरह, पहला वाला काम आया शंकर सिंह के ज़िम्मे और दूसरा जयकिशन के ख़ाते में. तो इस हिसाब से ऊपर जिस नग़्मे के ज़िक्र के साथ इस दास्तान की शुरुआत हुई, उसकी धुन पर शंकर जी का असर मानिए. धुनों के उनके हुनर से थोड़ा और नज़दीक आना चाहें तो ‘आई मिलन की बेला’ का ही टाइटल सॉन्ग सुन लीजिए, ‘आ हा आई मिलन की बेला देखो आई’. इसमें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, साज़ और नृत्य की झलकियां बड़े क़रीने से रखी हुई नज़र आएगीं. और जनाब, जयकिशन के संगीत की ख़ासियतों से रू-ब-रू होना चाहें तो उसी फिल्म का एक और नग़्मा है, ‘तुम कमसिन हो, नादां हो, नाज़ुक हो, भोली हो, सोचता हूं मैं, कि तुम्हें प्यार न करूं’. सवाल-ज़वाब की सी शक़्ल में है. इसमें आगे अदाकारा कह रही हैं, ‘मैं कमसिन हूं, नादां हूं, नाज़ुक हूं, भोली हूं, थाम लो मुझे, मैं यही इल्तिज़ा करूं’. हसरत जयपुरी साहब ने क्या सटीक लाइनें लिखी, उन अदाकारा के लिए, जिन्हें लोग सायरा बानो कहा करते हैं. और उस दौर में जो दिखती भी थीं किसी  ‘छुई-मुई ख़ूबसूरती’ सी. जबकि हसरत साहब की लाइनों पर उतनी ही सटीक धुन तैयार की ख़ासतौर पर जयकिशन जी ने. और सिर्फ़ धुन नहीं. इस नग़्मे के पिक्चराइज़ेशन में राजेंद्र कुमार पर ग़ौर कीजिए. यू-ट्यूब पर वीडियो मौज़ूद है, आराम से मिल जाएगा. इसमें राजेंद्र कुमार साहब पेड़ के पीछे से निकलने वाली अपनी ख़ास अदा के साथ सायरा बानो के सामने अपना इरादा ज़ाहिर करते हुए नज़र आते हैं. जनाब, बहुत कम लोगों को शायद पता होगा कि फिल्मों के रोमांटिक सीन में राजेंद्र कुमार साहब के लिए इस क़िस्म की इमेज़ गढ़ने वाले शंकर-जयकिशन ही थे. ख़ास तौर पर जयकिशन जी. बताते तो यहां तक हैं कि राज कपूर साहब के लिए भी पश्चिम की फिल्मी दुनिया के मशहूर हास्य कलाकार चार्ली चैपलिन जैसी इमेज हिन्दी फिल्मों में गढ़ने वाले शंकर-जयकिशन ही थे. इतना ही नहीं, लता मंगेशकर भी जब फिल्मों में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही थीं, एकदम नई-नई थीं, तो उन्हें भी ऊंचे मक़ाम की तरफ़ जाने का रास्ता देने वाले शंकर-जयकिशन ही थे. और ये तमाम चीजें इस संगीतकार जोड़ी ने अपने शुरुआती दौर में ही कर ली थीं. दिलचस्प वाक़ि’आ है इसका भी. वही साल 1946-47 के आस-पास की बात है. या इससे एकाध बरस पहले की रही होगी. महज 17-18 बरस के जयकिशन इस वक़्त बंबई आए ही आए थे. काम तलाश रहे थे. उसी दौरान उनकी मुलाक़ात हो गई शंकर सिंह से. उस दौर में फिल्मों के एक गुजराती डायरेक्टर हुआ करते थे चंद्रवदन भट्‌ट. जयकिशन जी से छह-सात साल ही बड़े थे. और शंकर सिंह जी के हमउम्र हुआ करते थे, जिनकी चंद्रवदन साहब से अच्छी पहचान हो गई थी और जयकिशन जी तो गुजरात का नाता लेकर ही उन तक पहुंचे थे. तो वहीं, चंद्रवदन जी के दफ़्तर में शंकर की जयकिशन से मुलाक़ात हो गई. बात की बात में पता चला कि जयकिशन जी काम तलाश रहे हैं. हारमोनियम अच्छा बजाते हैं. तब शंकर जी कहने लगे, ‘अरे भई, संगीत तो मैं भी करता हूं. अपना पृथ्वी थिएटर है न, वहां तबला बजाता हूं. ये तो बढ़िया रही, हम दोनों एक ही पेशे के लोग आ मिले’. तो जनाब, यूं इनकी जान-पहचान बन गई. उसी दौरान ‘पृथ्वी थिएटर’ में एक गुंज़ाइश निकली हारमोनियम बजाने वाले की तो शंकर जी के कहने पर जयकिशन जी ने उसके लिए अपनी अर्ज़ी लगा दी. और इस तरह जयकिशन भी अब ‘पृथ्वी थिएटर’ से जा लगे, बतौर हारमोनियम-वादक. इसी दौर में पृथ्वीराज कपूर अपने बड़े साहबज़ादे राज कपूर को फिल्मों में उतारने की तैयारी कर रहे थे. एक फिल्म बनाई जा रही थी उन्हें लेकर ‘आग’ (1949). इसमें शंकर-जयकिशन ने राज कपूर को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि वे फिल्म के संगीतकार राम गांगुली की कुछ मदद कर दिया करेंगे, संगीत तैयार करने में. अब इतने से भला किसी को क्या दिक़्क़त होने लगी? तो राज कपूर साहब ने उन्हें मौका दिलवा दिया. इसका शंकर-जयकिशन ने ऐसा फ़ायदा उठाया कि वे तुरंत राज कपूर साहब की निग़ाह में आ गए. नतीज़ा ये हुआ कि जब राज कपूर साहब अपनी अगली फिल्म ‘बरसात’ (1949) बनाने को हुए तो उन्होंने उसमें संगीतकार के तौर पर लेने का फ़ैसला किया, शंकर-जयकिशन को. और फिर जनाब, यहां से जो हुआ, वह फिल्मी दुनिया की तारीख़ में दर्ज़ है ही. इस फिल्म से ऐसा बहुत कुछ हुआ, जो फिल्मी दुनिया के लिए पहली बार था. एक-एक कर मिसालें गिनिए इसकी. पहला- वह ‘बरसात’ फिल्म ही थी, जिसमें शंकर-जयकिशन की जोड़ी की शक़्ल में पहली बार ‘जोड़ीदार संगीतकार’ फिल्मी दुनिया में नुमायां हुए. शायद यही वह फिल्म थी, जिसमें ऑर्केस्ट्रा का पहली बार प्रयोग किया गया, बिल्कुल अलहदा तरीके से. इसी फिल्म से राज कपूर साहब अपनी ख़ास चार्ली चैपलिन जैसी फिल्मी सूरत में नज़र आए. कहते हैं, यही फिल्म थी जिसमें रोमांटिक गाने गाते हुए राज कपूर और नरगिस की मोहब्बत परवान चढ़ी थी. और यही गाने गाते हुए लता मंगेशकर ने पहली मर्तबा मशहूरियत को उंगली से छूकर देखा था. अलबत्ता, इन नग़्मों में लता जी की आवाज़ को आसानी से पहचानना थोड़ा मुश्किल होगा. क्योंकि वे इस वक़्त तक नूरजहां, शमशाद बेगम, जैसी गायिकाओं की नक़ल किया करती थीं. उन्हीं की तरह आवाज़ बनाकर गाती थीं. हालांकि बाद में, 1949 के ही साल में जो ‘महल’ फिल्म आई, उसमें लता के गले से लता जी ही गाती सुनाई दीं, अपने अंदाज़ में. ख़ैर जनाब, तो इस तरह शंकर-जयकिशन ने अपने पहले ही कारनामे में फिल्मी दुनिया में कई नज़ीरें खड़ी कर दीं. ऐसी लकीरें खींच दीं, जिन्हें पार करना किसी के लिए मुमकिन न हुआ फिर. यह सिलसिला अगले 25-30 बरस तक बे-रोक चलता रहा. यहां तक कि साल जयकिशन जी की रुख़्सती के बाद भी. बताते हैं, वे शराब ज़्यादा पिया करते थे. इससे उनका लिवर ख़राब हो गया और उन्हें कम उम्र में ही दुनिया से रुख़्सत होना पड़ा. अलबत्ता, उनके बाद शंकर जी ने इस संगीतकार जोड़ी और उसके संगीत को ज़िंदा रखा. और उसकी भी मिसाल लेनी है, तो ‘संन्यासी’ फिल्म से ली जा सकती है. साल 1975 में आई थी यह फिल्म. संगीत इसमें सिर्फ़ शंकर जी ने दिया था. लेकिन उसे सुनने के बाद मज़ाल कि कोई भी जयकिशन जी के ख़ास अंदाज़ वाले संगीत की कहीं भी कमी महसूस किया करे. हालांकि, 26 अप्रैल 1987 को जब शंकर जी ख़ुद इस दुनिया को अलविदा कह गए, तब ज़रूर एक कमी, एक ख़ालीपन पीछे छोड़ गए अपने. ऐसा, जो कभी भरा नहीं जा सका फिर. —– (नोट- यह दास्तान लिखने में जाने-माने लेखक अश्विनी कुमार रथ की किताब ‘शंकर जयकिशन द किंग म्यूज़िक कंपोजर डुओ’ से भी मदद ली गई है.) ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Death anniversary special, Hindi news, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : September 12, 2022, 06:31 IST