सर्ट‍िफ‍िकेट लेने न‍िकले केजरीवाल आत‍िशी पर दांव लगाने के हो सकते हैं 5 फायदे

अरविंद केजरीवाल ने दिल्‍ली विधानसभा चुनाव से पहले गद्दी क्‍यों छोड़ी? केजरीवाल ने आत‍िशी को ही मुख्‍यमंत्री क्‍यों चुना, अपनी पत्‍नी सुनीता केजरीवाल या क‍िसी और को क्‍यों नहीं? आइए जानते हैं इसके पीछे की इनसाइड स्‍टोरी.

सर्ट‍िफ‍िकेट लेने न‍िकले केजरीवाल आत‍िशी पर दांव लगाने के हो सकते हैं 5 फायदे
क्‍या दिल्‍ली में व‍िधानसभा के चुनाव फरवरी के बजाय नवंबर में ही हो जाएंगे? इन द‍िनों राष्‍ट्रीय राजधानी के राजनीतिक गल‍ियारों में यह चर्चा हो रही है. इसके दो कारण हैं. एक तो अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक रूप से नवंबर में चुनाव कराए जाने की मांग की है. दूसरा, भाजपा के कुछ नेता भी ऐसा चाहते हैं. वे पार्टी के बड़े नेताओं के सामने भी यह बात उठा चुके हैं. हालांक‍ि, भाजपा आलाकमान नहीं चाहता क‍ि चुनाव नवंबर में हों. नवंबर के ह‍िसाब से अभी उनकी तैयारी नहीं है. चुनाव जब भी हों, लेक‍िन सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने प्रचार अभियान आज से ही शुरू कर द‍िया है. आत‍िशी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने के अगले दिन से ही आम आदमी पार्टी (आप) के मुख‍िया अरव‍िंद केजरीवाल ‘जनता की अदालत’ में न‍िकल पड़े हैं. 22 सितंबर को ‘ईमानदारी का सर्टिफिकेट’ लेने का अभ‍ियान शुरू करने के ल‍िए केजरीवाल ने जगह का भी बहुत सोच-समझ कर चयन क‍िया. द‍िल्ली का जंतर मंतर. सभी जानते हैं क‍ि आम आदमी पार्टी के लिए इस जगह का बड़ा प्रतीकात्मक महत्व है. केजरीवाल इसे याद द‍िलाना भी नहीं भूले. केजरीवाल ने भाषण की शुरुआत ही इस बात से की, ‘जंतर मंतर पर आकर पुराने द‍िन याद आ गए. मुझे तो तारीख भी याद है. 4 अप्रैल, 2011 को यहीं से आजाद भारत का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार व‍िरोधी आंदोलन शुरू हुआ था.’ केजरीवाल ने पूरे भाषण में अपनी ‘ईमानदारी’ पर सबसे ज्यादा जोर द‍िया. यहां तक कह द‍िया क‍ि दस साल सीएम रहने के बाद भी उनके पास रहने का घर तक नहीं है. श्राद्ध खत्म होने के बाद जब वह सीएम का बंगला खाली करेंगे तो क‍िसी समर्थक के घर ही रहने के ल‍िए जाएंगे. यह अलग बात है क‍ि आप ने एक राष्ट्रीय पार्टी का प्रमुख होने के नाते केजरीवाल के लिए सरकारी बंगले की मांग की है. केजरीवाल के राजनीत‍िक जीवन का एक नया मोड़ करीब 12 साल के राजनीत‍िक जीवन में अरव‍िंद केजरीवाल के ल‍िए यह नया मोड़ है। इस मोड़ पर उन्होंने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए ‘अग्‍न‍िपरीक्षा’ देने की चाल चली है. इस ‘अग्‍न‍िपरीक्षा’ में पास होने तक के ल‍िए सहयोगी आत‍िशी को गद्दी सौंप दी है. आत‍िशी को गद्दी देना अग्निपरीक्षा पास करने के ल‍िहाज से भी फायदेमंद है. और, इसके एक नहीं, अनेक फायदे हैं. आत‍िशी को सीएम बनाने के कई फायदे  आत‍िशी को सीएम बनाकर केजरीवाल अपने मुख्य प्रत‍िद्वंद्वी भाजपा पर ज्यादा धारदार वार कर सकते हैं. वजह यह क‍ि आतिशी बेदाग छव‍ि की नेता हैं. आप के ज्यादातर बड़े नेता किसी न किसी मामले में आरोपी हैं. केजरीवाल ने ‘ईमानदारी’ को अपना हथियार बनाया है. ऐसे में आत‍िशी को चुनकर केजरीवाल ने एक मामले में भाजपा का मुंह बंद कर द‍िया है. आत‍िशी को सीएम बनाने का व‍िरोध करने के नाम पर व‍िरोधी यह नहीं कह पा रहे क‍ि केजरीवाल ने फ‍िर क‍िसी भ्रष्टाचारी या दागी को अपनी कुर्सी सौंप दी. उनकी आलोचना ‘र‍िमोट सीएम’ कह कर की जा रही है. जाह‍िर है, व‍िपक्ष का यह वार उतना असरदार नहीं बन पा रहा है. बगावत की आशंका खत्‍म करना भी मकसद   एक और बात. केजरीवाल साफ कह रहे हैं क‍ि वह ‘जनता से ईमानदारी का सर्टिफ‍िकेट म‍िलने तक’ सीएम नहीं रहेंगे. मतलब अगर, चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी सरकार बनाने की स्‍थ‍ित‍ि में आई तो केजरीवाल ही सीएम की कुर्सी पर वापसी करेंगे. करीब दस साल मुख्यमंत्री रह चुके केजरीवाल ने इस्तीफे का दांव पहली बार खेला है. इसल‍िए, इस बात का ध्यान रखना जरूरी है क‍ि उन्हें कुर्सी पर वापसी की स्‍थ‍ित‍ि में कोई बगावत नहीं झेलनी पड़े. आत‍िशी के चयन को इस नजर‍िए से भी देखा जाना चाह‍िए. केजरीवाल और मनीष स‍िसोद‍िया को आत‍िशी अपना राजनीत‍िक गुरू मानती हैं. वह साफ कह भी रही हैं क‍ि उनका मुख्य‍ लक्ष्य होगा चुनाव के बाद केजरीवाल की मुख्यमंत्री के रूप में वापसी कराना. इसल‍िए आज की स्‍थ‍ित‍ि में आत‍िशी वह नेता लगीं, जो कहे जाने पर आसानी से कुर्सी छोड़ देंगी. ब‍िहार में जीतन राम मांझी और झारखंड में चंपाई सोरेन का उदाहरण सामने है. दोनों को क्रमश: नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन ने सबसे ज्यादा व‍िश्वासपात्र समझ कर कुछ समय के ल‍िए कुर्सी सौंपी. बाद में दोनों ने मजबूरी में सीएम की कुर्सी तो छोड़ दी, पर पार्टी में भी नहीं रहे. आत‍िशी को सीएम बना कर केजरीवाल इस तरह के डर से कम से कम फ‍िलहाल मुक्त हैं. आत‍िशी ने खुद भी बनाई अपनी जगह  एक और कारण यह भी माना जा सकता है कि जब केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जेल में थे तो आतिशी को पार्टी ने जो जिम्मेदारी दी, उसे उन्होंने बखूबी निभाया. इससे आत‍िशी पर केजरीवाल का भरोसा और मजबूत हुआ. इस बीच आत‍िशी द‍िल्‍ली में पार्टी का चेहरा बन कर भी उभरीं. मध्‍य वर्ग की नाराजगी का ख्‍याल  आप करीब दस साल से लगातार द‍िल्‍ली की सत्‍ता में है. पार्टी को इस चुनाव में सत्‍ता व‍िरोधी लहर का सामना पड़ सकता है. केजरीवाल का द‍िल्‍ली में काम का दावा अब कई लोगों को प्रभाव‍ित नहीं कर रहा है. वे उन्‍हें ‘हर बात के ल‍िए एलजी या मोदी जी को जवाबदेह ठहराने वाले नेता’ के रूप में देखने लगे हैं. ऐसे लोगों को लगता है क‍ि केंद्र से नाहक टकराव में उलझ कर व‍िकास को अवरुद्ध करने की राजनीत‍ि करने वाली पार्टी बन गई है आप. आत‍िशी मध्‍य वर्ग के मतदाताओं के बीच पार्टी के ख‍िलाफ नाराजगी थामने में  मददगार साब‍ित हो सकती हैं. मह‍िला कार्ड खेलना भी रहेगा आसान  नया सीएम बनाने के बाद 22 स‍ितंबर को पहली सभा में तो केजरीवाल ने ज्‍यादातर भाजपा को ही न‍िशाने पर ल‍िया. लेक‍िन, आगे चल कर वह मह‍िला का मुद्दा भी उठा सकते हैं. इस ल‍िहाज से भी आत‍िशी को सीएम बनाना आप के ल‍िए फायदेमंद रहेगा. कांग्रेस और बीजेपी द‍िल्‍ली को मह‍िला मुख्‍यमंत्री दे चुकी हैं. भाजपा की द‍िवंगत हो चुकीं नेता सुषमा स्‍वराज 1998 में कुछ समय के ल‍िए द‍िल्‍ली की मुख्‍यमंत्री थीं. कांग्रेस की ओर से शीला दीक्ष‍ित लंबे समय तक (1998-2013) मुख्‍यमंत्री रहीं. लेक‍िन, आप के करीब दस साल के शासन में भी कोई मह‍िला मुख्‍यमंत्री नहीं हुई थी. अब आप यह कह सकती है क‍ि उसने द‍िल्‍ली को सबसे कम उम्र की मह‍िला मुख्‍यमंत्री द‍िया. क‍िसी एक राज्‍य में तीन मह‍िला मुख्‍यमंत्री होने का उदाहरण व‍िरले ही है. सबसे कम मुश्‍क‍िल वाला नाम  केजरीवाल के उत्‍तराध‍िकारी के रूप में कुछ लोग पार्टी के अंदर से राखी ब‍िड़लान और बाहर की सुनीता केजरीवाल (अरव‍िंद की पत्‍नी) का नाम भी ले रहे थे. लेक‍िन, ये दोनों नाम केजरीवाल की मुश्‍क‍िल बढ़ाने वाले थे. राखी ब‍िड़लान एक तो दल‍ित हैं. ऐसे में चुनाव के बाद उनको हटाया जाता तो व‍िरोधी आप को ‘दल‍ित व‍िरोधी’ पार्टी बता कर हमला बोलते. फ‍िर, राखी ब‍िड़लान के तेवर भी आत‍िशी जैसे नरम नहीं हैं. पत्‍नी को तो केजरीवाल सीएम बना ही नहीं सकते थे. अगर ऐसा करते तो उन पर घोर पर‍िवारवाद का आरोप लगता और वह राजनीत‍िक लड़ाई को ज‍िस द‍िशा में मोड़ रहे हैं, उधर मोड़ना लगभग असंभव ही होता. ऐसे में, अरव‍िंंद केजरीवाल ने द‍िल्‍ली की ब‍िसात पर पहली चाल चल दी है. बीजेपी और कांग्रेस अभी इसकी काट ढूंढ़ने में ही व्‍यस्‍त हैं. अंत‍िम बाजी क‍िसके हाथ में होगी, यह तो वक्‍त ही बताएगा. Tags: Arvind kejriwal, Atishi marlena, Delhi AAPFIRST PUBLISHED : September 22, 2024, 17:54 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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