CJI ने मां की वजह से पलटा था फैसला अब बोले- नाबालिग का दृष्टिकोण भी जरूरी
CJI ने मां की वजह से पलटा था फैसला अब बोले- नाबालिग का दृष्टिकोण भी जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रजनन स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है इसलिए गर्भावस्था की समाप्ति का निर्णय लेते समय अगर एक नाबालिग गर्भवती व्यक्ति की राय अभिभावक से भिन्न होती है तो गर्भवती व्यक्ति के दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए.
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के बाद 30 सप्ताह गर्भवती हुई नागालिग लड़की को गर्भपात का आदेश देने के बाद अपना फैसला वापस लेने के मामले में सोमवार को अहम टिप्पणी की. सीजेआई डीवाय चंद्रचूड़ की बेंच ने कि गर्भावस्था की समाप्ति का फैसला लेने में नाबालिग की सहमति सर्वोपरि है. अदालती आदेश में कहा गया कि इसलिए गर्भावस्था की समाप्ति का निर्णय लेते समय अगर एक नाबालिग गर्भवती की राय अभिभावक से भिन्न होती है तो गर्भवती व्यक्ति के दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रजनन स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है इसलिए गर्भावस्था की समाप्ति का निर्णय लेते समय अगर एक नाबालिग गर्भवती व्यक्ति की राय अभिभावक से भिन्न होती है तो गर्भवती व्यक्ति के दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हाल ही में मुंबई की एक 14 वर्षीय रेप पीड़िता के गर्भवती होने से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए, लगभग 30 सप्ताह के भ्रूण को गिराने का आदेश 22 अप्रैल को दिया था. हालांकि बाद में मां के दृष्टिकोण के बदलाव को देखते हुए कोर्ट ने अपने ही इस फैसले को पलट दिया था.
Tags: DY Chandrachud, Justice DY Chandrachud, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : May 6, 2024, 23:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed