बंजर जमीन को शिक्षक ने बना दिया बगीचा फिर हुए जुड़वा बेटे

Banda News: बांदा जिले के शिक्षक आलोक के एक बेटा था. उनके बेटे दिल में छेद होने की वजह से ढाई साल में ही मौत हो गई. बेटे की मौत की याद में उन्होंने वीरान पड़ी बंजर जमीन को बगीते में बदल दिया.

बंजर जमीन को शिक्षक ने बना दिया बगीचा फिर हुए जुड़वा बेटे
विकाश कुमार/बांदा: इंसान जब जुनून और जिद पद अड़ जाए तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है. कुछ ऐसा ही मुश्किल काम बुंदेलखंड के आलोक ने अपने ढाई साल के मासूम बेटे की याद में कर डाला जो किसी भी आम आदमी के लिए संभव नहीं था. बुंदेलखंड हमेशा एक सूखा प्रभावित इलाका रहा है. बांदा जिले के शिक्षक आलोक ने महज अपने बेटे की कमी को पूरा करने के लिए नामुमकिन काम को भी मुमकिन कर डाला और जो लोग इस क्षेत्र को सूखा प्रभावित क्षेत्र मानते हैं, उनकी धारणा को बदल दिया है. उन्होंने एक बंजर पड़ी जमीन को कड़ी मेहनत से हरा भरा कर डाला इतना ही नहीं कश्मीर में उगने वाला सेब का पेड़ भी उनकी बगिया में फल फूल रहा है. बेटे के दिल में था छेद हम बात कर रहे है बांदा जिले के रहने वाले आलोक की. उन्होंने बताया की उनका एक बेटा था, जिसका नाम नमो था और उसकी उम्र ढाई साल थी. उसके दिल में छेद था, वह उसे बड़े से बड़े हॉस्पिटल में दिखाए, आखिर में उसके दिल सर्जरी भी कराई, लेकिन बेटे की जान नहीं बचा सके. जिसके बाद उनका जीवन वीरान सा हो गया. वह डिप्रेशन के शिकार हो गए. सबसे दूर खेतों में अकेले समय बिताने लगे फिर उन्हें क्यों न बेटे की याद में कुछ वृक्ष लगाया जाए. इसके बाद उन्होंने यहां से बागवानी की शुरुआत की. वह बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने की जिद कर बैठे. बता दें कि 2017 में उनके बेटे की मृत्यु हुई थी और तभी से वह बंजर पड़ी जमीन को उपजाऊ बनाने में जुट गए थे. बेटे की याद में बंजर जमीन को बना दिया उपजाऊ उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर पर उन्होंने कुछ पौधे लगाए, लेकिन जमीन बंजर होने की वजह से वो पनप नहीं रहा था, सभी पौधे मुरझा गए. फिर वह जमीन को हरा भरा करने की जिद में अड़ गए और आज कई किस्म के पेड़ उनके बगीचे की शोभा बढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं वह बगीचे में ही फसलों को भी उगाते हैं जो लोग कहते हैं कि पौधे लगने के बाद फसल नहीं उगाई जा सकती है. उन लोगों को उन्होंने अपनी मेहनत से झूठा साबित कर दिया है. आलोक ने यह भी बताया कि वह पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती करते हैं, ताकि ना वह जहर खाएं और ना किसी को खिलाएं. वह अपने घर का खान-पान का 90% सामान अपने खेतों से ही उत्पन्न कर लेते हैं. वह 7 साल की कड़ी मेहनत के बाद एक मुकाम हासिल किए. उन्हें जिला, मंडल और प्रदेश स्तर पर कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. बड़ी बात यह है की उन्हें ईश्वर ने इस मेहनत का बहुत बड़ा फल दिया बेटे की मृत्यु के 1 साल बाद ही उन्हें जुड़वा बच्चे हुए. अब उनका बेटा 6 साल का हो चुका है. इस समय उनके बेटे को भी  प्रकृति से काफी लगाव है. Tags: Banda News, Chitrakoot News, Local18FIRST PUBLISHED : July 14, 2024, 12:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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