पैदा करके जिन बच्चों को छोड़ जाते हैं मां-बाप ये मदर्स उनके लिए बनती हैं देवी

Child orphanage: छत्रपति संभाजीनगर की संस्था साकार अनाथ बच्चों को मां की ममता और देखभाल देती है. यहां काम करने वाली महिलाएं इन्हें अपनी कोख के बच्चे की तरह पालती हैं. यह काम उनके लिए आनंद और गौरव का प्रतीक है.

पैदा करके जिन बच्चों को छोड़ जाते हैं मां-बाप ये मदर्स उनके लिए बनती हैं देवी
छत्रपति संभाजीनगर में एक ऐसी संस्था काम कर रही है, जो उन बच्चों के सपनों को साकार करने में जुटी है, जिनके सिर पर माता-पिता का साया नहीं होता. शिशु के स्वस्थ विकास के लिए माता-पिता दोनों का प्यार जरूरी होता है, लेकिन कुछ दुर्भाग्यशाली बच्चों को यह नसीब नहीं होता. कुछ माता-पिता अपनी परिस्थितियों के चलते बच्चों को अनाथालय में छोड़ देते हैं. इस संस्था में आकर बच्चों को मां का स्नेह और देखभाल मिलती है. इन बच्चों की देखभाल करने वाली महिलाएं उन्हें अपनी कोख के बच्चे की तरह पालती हैं और उनका जीवन संवारती हैं. अनाथ बच्चों का सहारा ज्योति नगर, छत्रपति संभाजीनगर में स्थित यह सामाजिक संगठन 1994 से काम कर रहा है. यह संस्था उन बच्चों की देखभाल करती है जिन्हें उनके माता-पिता सड़क किनारे या अनाथालय में छोड़ देते हैं. यहां 0 से 6 साल तक के बच्चों का पालन-पोषण किया जाता है. बच्चों की देखभाल करने वाली महिलाओं को “मां” कहा जाता है. उनका स्नेह और ममता बच्चों के जीवन को खुशियों से भर देती है. बच्चों के लिए मां जैसा प्यार सुशीला गवई पिछले 10-12 सालों से इस संस्था से जुड़ी हैं. वह कहती हैं, “शुरुआत में बच्चों को देखकर दुख होता था. मन में डर था कि क्या मैं यह जिम्मेदारी निभा पाऊंगी. लेकिन धीरे-धीरे बच्चों के साथ जुड़ाव हो गया. अब जब ये बच्चे मुझे मम्मी कहते हैं, तो मेरे लिए इससे बड़ी खुशी कोई नहीं. मैं उन्हें अपने बच्चे जैसा प्यार देती हूं. उनका ध्यान रखना और उनकी इच्छाएं पूरी करना मेरे लिए गर्व की बात है.” बच्चों को संभालने का सुकून छाया वरेकर भी पिछले कुछ सालों से इस संस्था का हिस्सा हैं. वह कहती हैं, “जब मुझे नौकरी की जरूरत थी, तो एक दोस्त ने इस आश्रम के बारे में बताया. पहले दिन मेरी नाइट शिफ्ट थी और मैंने अपने दो साल के बेटे को घर पर छोड़ दिया. इन बच्चों को देखकर मन उदास था, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें संभालना आसान हो गया. अब ये बच्चे मुझे मां कहकर बुलाते हैं. उनका स्नेह मेरे लिए सबसे बड़ा सुख है.” नवजात बच्चों को संवारती मांएं सुशीला गवई और छाया वरेकर जैसे महिलाएं इन अनाथ बच्चों को नवजात की तरह देखभाल करती हैं. बच्चे कुछ महीने के हों या कुछ दिन के, वे उन्हें मां की ममता का एहसास कराती हैं. उनका कहना है कि इस काम में उन्हें गहरा आनंद और संतोष मिलता है. यह उनके लिए केवल नौकरी नहीं, बल्कि गौरवपूर्ण जीवन का हिस्सा है Tags: Local18, Maharashtra latest news, Special ProjectFIRST PUBLISHED : December 2, 2024, 14:37 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed