यूपी के इस गांव से विहंगम योग की हुई थी शुरूआत इस महान संत की है साधाना भूमि
यूपी के इस गांव से विहंगम योग की हुई थी शुरूआत इस महान संत की है साधाना भूमि
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि इस पूरे दिव्य स्थान का वर्णन बलिया विरासत में मिलता है. पकड़ी गांव में स्थित विहंगम योग संस्थान के संस्थापक आद्य गुरु स्वामी सदाफल देव जी की साधना भूमि के साथ उनका मकान भी है. स्वामी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे और अब उनके पौत्र स्वतंत्र देव जी महाराज ब्रह्म विद्या को विस्तार दे रहे हैं.
बलिया. दुनियाभर में प्रचलित विहंगम योग की शुरुआत उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से हुई थी. इस धरती पर जन्म लिए स्वामी सदाफल देव जी ने जिले के पकड़ी में अपनी साधना संपन्न किया था. उसके बाद इन्होंने खुद विहंगम योग को लेकर प्रचार-प्रसार किया. प्रकृति के गोद में बसे इस पर्यटन स्थल पर देश-विदेश से लोग आकर गदगद हो जाते हैं.
विहंगम योग के माध्यम से वर्तमान में इनके शिष्य या अनुयायी ध्यान, साधना और योग के माध्यम से ब्रह्मा का साक्षात्कार कराने के लिए शिक्षा देते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि ये लोग किसी भी देवी और देवता की मूर्ति नहीं रखते हैं.
महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे गुरू सदाफल देव जी
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि इस पूरे दिव्य स्थान का वर्णन बलिया विरासत में मिलता है. यह विहंगम योग संस्थान के संस्थापक आद्य गुरु स्वामी सदाफल देव जी की साधना भूमि के साथ-साथ उनका मकान भी है. यह उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के पकड़ी गांव में स्थित है. स्वामी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे. उन्होंने गुलामी के दिनों में देश को आजाद कराने के लिए भी काम किया और इस दौरान बिहार के गया में इनको बंदी भी बनाया गया था. जहां तक विहंगम योग की बात है तो यह आज देश-विदेश में प्रसिद्ध है. इसकी शुरुआत बलिया जनपद के पकड़ी गांव से हुई थी. इस स्थान पर एक गुफा है, जिसके अंदर सदाफल देव जी को गुरु सुकृत देवाय का दर्शन हुआ था
पौत्र स्वतंत्र देव जी महाराज ब्रह्म विद्या को दे रहे हैं विस्तार
स्वामी सदाफल देव जी को ब्रह्म ज्ञान भी यहीं प्राप्त हुआ था. साधना के बाद अगहन शुक्ल पंचमी संवत 1981 विक्रमी को अ अंकित ध्वज फहराकर इस पंथ की नींव रखी. जिसका प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में उन्होंने किया. आज पूरी दुनिया के अंदर इस विहंगम योग प्रसिद्ध है. सदाफल देव जी सेंगर वंशीय क्षत्रिय थे. इनके पिता का नाम महावीर सिंह और माता का नाम मुक्ति देवी था. विहंगम योग से जुड़े लोग सफेद कपड़े पर बने अ अक्षर का ध्वज (झंडा) फहराते हैं. ये अपने गुरु की मूर्ति और चरण पादुका केवल लगाते हैं. यहां के लोग निराकार (जिनका कोई आकर न हो) ब्रह्म को मानते हैं. यहां लाखों लोग दर्शक करने को आते हैं. सदाफल देव जी माघ शुक्ल नवमी संवत 2011 विक्रमी को झूसी इलाहाबाद स्थित अपने आश्रम में शरीर त्याग कर दिया था. वर्तमान में उनके पौत्र स्वतंत्र देव जी महाराज ब्रह्म विद्या को विस्तार दे रहे हैं.
Tags: Ballia news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : August 23, 2024, 18:36 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed