NCRB Report: बिहार में जमीन विवाद में 59% हत्‍याएं तमाम उपायों के बावजूद नहीं बदल रहे हालात

NCRB Report 2021: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हाल ही में जारी 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में विभिन्न विवादों के कारण हुई 1,081 हत्याओं में से 59 प्रतिशत हत्याएं संपत्ति या भूमि विवाद से संबंधित हैं. जमीन के विवाद में हत्या के मामले में बिहार की लगभग दोगुनी आबादी वाला उत्तर प्रदेश 227 मामलों के साथ दूसरे, जबकि 172 मामलों के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है.

NCRB Report: बिहार में जमीन विवाद में 59% हत्‍याएं तमाम उपायों के बावजूद नहीं बदल रहे हालात
राजीव कुमार पटना. वर्ष 2021 में राज्य में विभिन्न विवादों के कारण हुई 1,081 हत्याओं में से 635 हत्‍याएं संपत्ति या जमीन विवाद में हुईं. मतलब हत्‍या के 59 प्रतिशत मामले जमीन या संपत्ति विवाद से जुड़े हैं. पिछले साल बिहार में हर पांचवीं हत्या संपत्ति या जमीन के विवाद के कारण हुई. लगातार 3 वर्षों में राज्य में संपत्ति या भूमि विवाद के कारण सबसे अधिक हत्या के मामले सामने आए हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो (NCRB) के आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है. बता दें कि बिहार सरकार की ओर से जमीन विवाद को सुलझाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन NCRB के आंकड़ों को देखें तो वे सब नाकाफी साब‍ित हो रहे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हाल ही में जारी 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में विभिन्न विवादों के कारण हुई 1,081 हत्याओं में से 59 प्रतिशत हत्याएं संपत्ति या भूमि विवाद से संबंधित हैं. जमीन के विवाद में हत्या के मामले में बिहार की लगभग दोगुनी आबादी वाला उत्तर प्रदेश 227 मामलों के साथ दूसरे, जबकि 172 मामलों के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल देश में हत्या के कुल 2,488 मामले संपत्ति या भूमि विवाद से प्रेरित थे. पिछले कुछ वर्षों के एनसीआरबी के आंकड़ों पर नज़र डालने से पता चलता है कि बिहार में भूमि या संपत्ति के विवाद में हत्याओं का एक समान चलन है. 2020, 2019, 2018, और 2017 में, संपत्ति या भूमि संबंधी विवादों के परिणामस्वरूप क्रमशः 815, 782, 1,016 और 939 हत्याएं हुईं. दिल्‍ली के बाद पटना में सबसे ज्‍यादा वाहन चोर, 200% तक बढ़ी चोरी की घटना  आर्थिक पिछड़ापन और भौगोलिक स्थितियां बड़े कारण सवाल उठता है कि भूमि और संपत्ति के विवाद में हिंसक वारदातों में बिहार सबसे ऊपर क्यों है? विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य की सामाजिक गतिशीलता से लेकर इसके आर्थिक पिछड़ेपन और बाढ़ के कारण भूगोल भी बड़े कारण हैं. एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, पटना में सहायक प्रोफेसर डॉ अविरल पांडे का कहना है कि वर्तमान समाज राज्य में संयुक्त परिवार व्यवस्था के तहत काम नहीं कर रहा है. इसका अंतिम परिणाम संपत्ति का विभाजन है. बिहारी समाज के लिए जमीन अमूल्य संपत्ति है. यह उनकी सामाजिक पहचान की भावना से भी संबंधित है. इसलिए, परिवार के सदस्य, पड़ोसी जमीन को लेकर लड़ते हैं. परिवार के सदस्य जो आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं, वे पारिवारिक भूमि का अधिक हिस्सा चाहते हैं. यह सब परिवारों और समाज में संघर्ष की ओर ले जाता है. 88 फीसद से ज्‍यादा आबादी ग्रामीण बिहार प्रमुख रूप से एक ग्रामीण राज्य है. 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की 88 प्रतिशत से अधिक आबादी भीतरी इलाकों में निवास करती है. लेकिन अब शहरों में जाने और भारत की विकास गाथा का हिस्सा बनने की तीव्र इच्छा है. डॉ. पांडे कहते हैं कि वास्तविकता यह है कि हर कोई शहरों या कस्बों में जमीन या अपार्टमेंट का एक भूखंड खरीदना चाहता है. नतीजतन, शहरी क्षेत्रों में जमीन की कीमत रोज बढ़ रही है. इसके कारण, शहरी क्षेत्रों में भूमि से जुड़े विवाद और मुद्दे हैं. राज्य में गांवों और शहरी क्षेत्रों (राजधानी पटना सहित) में आवास के लिए कोई महत्वपूर्ण योजना नहीं है. सड़क या पैदल मार्ग के लिए अस्पष्ट जगह होने के बावजूद, लोग अपने घरों का निर्माण करते हैं. यदि अन्य लोग उसी रणनीति का उपयोग करते हैं, तो इससे भी समस्याएं होती हैं. लोग सड़कों और पथों पर लड़ाई करते हैं. दीवानी मामलों में 66 फीसदी जमीन या प्रॉपर्टी के विवाद रिसर्च थिंक टैंक दक्ष द्वारा किए गए ‘एक्सेस टू जस्टिस सर्वे, 2016’ के अनुसार, भारत में सभी दीवानी मामलों में से 66.2 प्रतिशत भूमि या संपत्ति विवादों से संबंधित हैं. इसके अलावा, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए सभी मामलों में से 25 प्रतिशत भूमि विवाद से जुड़ी हैं. निचली अदालतों में ये मामले दशकों तक चलते रहते हैं. इस साल मई में, बिहार के आरा में एक जिला अदालत ने 1914 में शुरू हुए एक भूमि विवाद मामले में अपना फैसला सुनाया, यानी मामले को तय करने में सिर्फ निचली अदालत को 108 साल लग गए. डॉ. अजीत झा कहते हैं कि इस तरह की कानूनी देरी निराशा पैदा करती है और वादी कभी-कभी कानून अपने हाथ में लेने का फैसला करते हैं. नदियां भी जिम्‍मेदार! राज्य के उत्तरी भाग में हिमालयी नदियों के बदलते रुख ने भी भूमि विवाद को जन्म दिया है. हर साल गंगा, कोसी, कमला और गंडक जैसी नदियां अपना रास्ता बदलती हैं, भूमि को जलमग्न करके कुछ वर्षों के बाद वापस दे देती हैं. भूमि के स्वामित्व पर परस्पर विरोधी दावे कभी-कभी खूनी हो जाते हैं. ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार मौजूदा स्थिति से अनभिज्ञ है, और तदनुसार इन मामलों के समाधान के लिए प्रगतिशील कदमों की एक श्रृंखला शुरू की है. भूमि अभिलेखों को अपडेट करने के लिए एक विशेष सर्वेक्षण वर्तमान में चल रहा है और मार्च 2024 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है. इसके अलावा, भूमि अभिलेख उत्परिवर्तन की अनुपस्थिति को विवादों के प्रमुख कारणों में से एक के रूप में मान्यता देते हुए, राज्य विधानसभा ने बिहार भूमि उत्परिवर्तन संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया, जिससे भूमि मानचित्रों का उत्परिवर्तन अनिवार्य हो गया. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Bihar News, NCRB ReportFIRST PUBLISHED : September 01, 2022, 14:35 IST