यादव मुस्लिम भूमिहार राजपूत नहीं इसने भाजपा को सिखाया सबक धवस्त हुआ किला!

बिहार की मौजूदा राजनीति में ओबीसी की प्रमुख जातियां यादव, कुशवाहा और कुर्मी का महत्व काफी बढ़ गया है. ये जातियां आर्थिक और शैक्षणिक रूप से करीब-करीब अगड़ी जातियों के बाराबर की हैं. ऐसे में राजद, भाजपा और जदयू की राजनीति के केंद्र में भी यही तीन जातियां हैं.

यादव मुस्लिम भूमिहार राजपूत नहीं इसने भाजपा को सिखाया सबक धवस्त हुआ किला!
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार में भाजपा को तगड़ा झटका लगा है. बिहार की 40 सीटों में से केवल 12 सीटें उसे मिली हैं. एनडीए के तमाम दलों में उसका ही स्ट्राइक रेट सबसे खराब रहा है. उसने राज्य की 17 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत केवल 12 सीटों पर मिली. जदयू ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे भी 12 सीटों पर जीत मिली. चिराग पासवान की लोजपा अपनी पांच की पांच सीटें जीत ली. हम पार्टी के जीतन राम मांझी भी अपनी सीट पर बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रहे. यानी एनडीए के सभी दलों ने भाजपा से बेहतर प्रदर्शन किया. दूसरी तरफ महागठबंधन को नौ और निर्दलयी पप्पू यादव की जीत हुई है. इस तरह उन्हें 10 सीटें मिली हैं. इसमें राजद को चार, कांग्रेस को दो और भाकपा माले को दो सीटें मिली हैं. वैसे तो महागठंधन के लिए यह बहुत बड़ी जीत नहीं है लेकिन 2019 के आंकड़ों को देखते हुए यह बड़ी जीत बन जाती है. 2019 में बिहार की 40 में से केवल एक सीट महागठबंधन के तहत कांग्रेस को मिली थी. के फैक्टर ने दिखाया रंग इसके बाद से तेजस्वी यादव, मुस्लिम-यादव से इतर अपना जनाधार बढ़ाने के लिए अन्य जाति समूहों की ओर नजर दौड़ाने लगे. फिर मंगलवार का नतीजा उनके प्रयासों को रंग दिखा दिया. दरअसल, राज्य में ओबीसी की एक जाति है कुशवाहा. जनसंख्या में यह जाति यादव समुदाय के बाद दूसरी सबसे बड़ी जाति है. बिहार सरकार के हाल के सर्वे के मुताबिक राज्य में इनकी आबादी 4.2 फीसदी है. यह जाति ओबीसी वर्ग में आर्थिक और शैक्षणिक रूप से अच्छी स्थिति में है. परंपरागत रूप ये यह जाति नीतीश कुमार की जदयू और भाजपा के वोटर रहे हैं. नीतीश कुर्मी समुदाय से हैं. कुशवाहा और कुर्मी एक वर्ग की जातियां हैं. इनके बारे में कहा जाता है कि ये दोनों जातियां भाई-भाई हैं. भाजपा ने की अनदेखी लेकिन, 2024 के चुनाव में भाजपा ने कुशवाहा समुदाय की अनदेखी कर दी. उसने एक भी कुशवाहा नेता को अपनी ओर से टिकट नहीं दिया. हालांकि भाजपा ने बिहार में कुशवाहा समुदाय के सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम की कुर्सी दे रखी है. फिर एनडीए की सहयोगी दल के रूप में काराकाट में उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ पवन सिंह के निर्दलीय मैदान में उतरने से यह संदेश पूरी तरह फैल गया कि भाजपा इस जाति को दरकिनार कर रही है. भले ही दिखावे के लिए उसने सम्राज चौधरी को आगे कर रखा है. पवन सिंह भाजपा के नेता थे लेकिन निर्दलीय मैदान में उतर गए. महागठबंधन ने सात उम्मीदवार बनाए दूसरी तरफ, महागठबंधन ने कुशवाहा समुदाय के सात नेताओं को उम्मीदवार बनाया. राजद ने तीन कुशवाहा को टिकट दिया. फिर कांग्रेस, वीआईपी, भाकपा माले और माकपा ने एक-एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा. काराकाट में पवन सिंह के मैदान में उतरने की वजह से राजपूत वोटर्स खुलेआम उनके समर्थन में आ गए. फिर इस धारणा को बल मिला कि भाजपा कुशवाहा समुदाय को उचित महत्व नहीं दे रही है. कुछ ऐसा ही हाल सीवान लोकसभा सीट पर दिखा जहां जदयू के कुशवाहा समुदाय की उम्मीदवार विजयलक्ष्मी देवी के खिलाफ अगड़ी जातियां करीब-करीब एकजुट हो गईं और उन्होंने शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शाहाब को खुलेआम समर्थन देने की घोषणा की. इससे पूरे राज्य में माहौल बना कि भाजपा कुशवाहा समुदाय के खिलाफ माहौल को हवा दे रही है. हालांकि सीवान में विजयलक्ष्मी देवी की जीत हुई है. इस माहौल में राज्य में कुशवाहा समुदाय का वोट दोफाड़ हो गया. इस समुदाय का एक बड़ा वर्ग महागठबंधन की ओर झुक गया. फिर क्या था काराकाट के आसपास की पांच सीटों पर भाजपा बुरी तरह फंस गई. काराकाट में भाकपा माले के कुशवाहा समुदाय के उम्मीदवार राजाराम सिंह विजयी हुए. औरंगाबाद में राजद के कुशवाहा उम्मीदवार अभय कुशवाहा विजयी हुए. इसके अलावा भाजपा को आरा, बक्सर और सासाराम में भी हार का मुंह देखना पड़ा. Tags: Bihar News, Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 10:58 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed