नीतीश ने RJD का समीकरण बिगाड़ा तो PK ने उड़ा दी नींद अब रिवाइवल प्लान पर लालू
नीतीश ने RJD का समीकरण बिगाड़ा तो PK ने उड़ा दी नींद अब रिवाइवल प्लान पर लालू
बिहार में राजनीतिक दलों के बीच मुस्लिम जमात को अपने साथ जोड़ने की होड़ लगी हुई है. लालू यादव मुस्लिम-यादव (M-Y) समीकरण बना कर 15 साल तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहे. नीतीश ने नरेंद्र मोदी का विरोध कर मुसलमानों को आरजेडी से अलग किया. जन सुराज के प्रशांत किशोर तो मुसलमानों को आबादी के हिसाब से विधानसभा में हिस्सेदारी की बात ही करते हैं. घबराहट में आरजेडी बिछड़े मुस्लिम लीडरान को जोड़ने की योजना पर काम कर रहा है
मुसलमान भाजपा को पसंद नहीं करते. यह कोई हाल-फिलहाल की बात नहीं है. जनसंघ के जमाने से ही मुसलमानों की यही नीति-रीति रही है. अलबत्ता भाजपा ने कई बार यह एहसास जरूर कराया कि वह मुसलमानों की विरोधी नहीं है. शुरुआती दिनों में जनसंघ को मुस्लिम लीग के साथ सरकार में शामिल होने पर कोई एतराज नहीं हुआ. बंगाल प्रांत में बने मंत्रिमंडल में जनसंघ के नेता मुस्लिम लीग के साथ शामिल थे. ताजातरीन मामला 2014 में जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने का रहा. मुसलमानों के भाजपा विरोध को दूसरे दल भुनाने का प्रयास करते रहे हैं.
समाजवादियों से भी भाजपा को चिढ़ नहीं है
भाजपा को समाजवादियों से भी कभी नफरत नहीं रही. लालू यादव को बिहार में आरंभिक दिनों में भाजपा ने समर्थन दिया था तो 2005 से लगातार नीतीश कुमार के साथ भाजपा बनी हुई है. इसके बावजूद बिहार में भाजपा के खिलाफ मुस्लिम गोलबंदी होती रही है. बिहार में आरजेडी का लगातार यह प्रयास रहा है कि भाजपा की आलोचना कर उसके खिलाफ मुसलमानों को एकजुट किया जाए. सीवान के दिवंगत पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब की आरजेडी में वापसी और उनके बेटे ओसामा की नई एंट्री इसी की कड़ी है.
नीतीश के मुस्लिम प्रेम से नहीं बिदकी BJP
भाजपा 1999 से ही समाजवादी नेता नीतीश कुमार के साथ है. भाजपा ने बिहार में शाहनवाज हुसैन को छोड़ कर कभी किसी मुस्लिम नेता को तवज्जो नहीं दी. हालांकि भाजपा का अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ भी है. इसके बावजूद नीतीश कुमार का पीरों के मजार पर चादरपोशी करने या मुस्लिम कल्याण के लिए किए जाने वाले कार्यों से भाजपा ने कभी मुंह नहीं बिचकाया. यानी नीतीश के इन कामों में भाजपा की मौन सहमति ही रही. भाजपा इससे इनकार भी नहीं कर सकती, क्योंकि कुछ समय के दो मौकों को छोड़ पार्टी नीतीश कुमार की सरकार में शामिल रही है.
2020 से मुसलमानों का नीतीश से मोह भंग
मुसलमानों के लिए नीतीश कुमार ने काफी काम किया है. इस दिशा में नीतीश का सबसे बड़ा काम कब्रिस्तानों की घेराबंदी है. अक्सर कब्रिस्तानों की जमीन को लेकर विवाद होता था. घेराबंदी के बाद विवाद थम गया है. इतना ही नहीं, विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में भी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू मुसलमानों को टिकट देती रही है. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश ने 10 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. हालांकि एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया. बसपा के टिकट पर जीते जमा खान ने जब जेडीयू ज्वाइन किया तो नीतीश ने उन्हें मंत्री भी बना दिया.
मंदिर प्रकरण से मुस्लिम लालू के करीब हुए
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली. रथयात्रा बिहार पहुंची तो लालू यादव ने बहैसियत सीएम उन्हें गिरफ्तार करा दिया. बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर बनाने के लिए आडवाणी की यात्रा से मुस्लिम समाज पहले से ही खफा था. आडवाणी की गिरफ्तारी से मुस्लिम तबका लालू को अपना हितैषी मानने लगा. इसी बीच सीवान के तत्कालीन सांसद शहाबुद्दीन और आरजेडी की सीनियर लीडर अब्दुल बारी सिद्दीकी की मदद से लालू ने मुस्लिम-यादव (M-Y) समीकरण बनाया. यादव समाज के अलावा अन्य पिछड़ी और दलित जातियों का साथ लालू ने पहले ही हासिल कर लिया था. मुसलमानों के साथ आ जाने से ही वे लगातार 15 साल तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहे.
नीतीश ने आरजेडी के मुस्लिम वोट झटक लिए
लालू के साथ रहने के बावजूद मुसलमानों को उनकी आबादी के हिसाब से आरजेडी में हिस्सा नहीं मिला. इस बात का एहसास होते ही मुसलमान उनसे कटने लगे. नीतीश कुमार ने उन्हें अपने साथ जोड़ा. नतीजा यह हुआ कि मुस्लिम वोटर लालू के मुकाबले नीतीश को अधिक पसंद करने लगे. इस पसंद का आलम यह था कि आरजेडी की दोबारा सत्ता में वापसी स्वतः नहीं हुई. अगर तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव को सरकार में शामिल होने का सुयोग मिला भी तो यह नीतीश की कृपा से ही संभव हो पाया.
नीतीश ने मोदी का विरोध कर भरोसा जीता
नरेंद्र मोदी को 2014 के संसदीय चुनाव में भाजपा ने जब पीएम फेस बनाने का फैसला किया तो नीतीश कुमार बिदक कर एनडीए से अलग हो गए. उसके पहले और भी दो मौकों पर नीतीश ने नरेंद्र मोदी का विरोध कर मुसलमानों का भरोसा जीता. नीतीश के इस कदम से मुस्लिम समाज उन्हें लालू से बेहतर मानने लगा. पर, नीतीश कुमार की कभी आरजेडी और कभी भाजपा के साथ आवाजाही से मुस्लिम समाज खफा होता रहा. हालांकि नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ रह कर भी मुसलमानों पर बिहार में कभी कोई आंच नहीं आने दी. उनके कल्याण की योजनाओं को भी नहीं रोका. सबसे बड़ी बात यह रही कि अतीत में दंगों से परेशान रहने वाले बिहार में नीतीश के शासन काल में दंगों का नामोनिशान मिट गया.
बिहार में मुसलमानों के अब कई दल दावेदार
बिहार में आरजेडी तो मुस्लिम वोटों का ठेकेदार शुरू से ही बना हुआ है. नीतीश कुमार भी एक बड़े हिस्सेदार हैं. अब तीसरे ध्रुव के रूप में प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली जन सुराज पार्टी भी अस्तित्व में आ गई है. प्रशांत किशोर ने दलितों और मुसलमानों को ही टार्गेट किया है. प्रशांत किशोर कहते हैं कि मुसलमानों की आबादी बिहार में तकरीबन 18 प्रतिशत है. यानी आबादी के हिसाब से मुस्लिम तबके के 40 विधायक होने चाहिए. बिहार में सभी दलों के कुल 19 मुस्लिम एमएलए हैं. जन सुराज 40 मुसलमानों को टिकट देकर विधानसभा भेजेगा. चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भी जन सुराज ने एक सीट मुस्लिम को दी है. यानी जन सुराज ने उपचुनाव में ही 25 प्रतिशत हिस्सेदारी मुसलमानों को देकर उन्हें अपने पाले में करने का प्रयास किया है. उनकी पार्टी में सीनियर एडवोकेट अबु अफान, पूर्व मंत्री मोनाजिर हसन, अबैस अंबर, अब्बास जैसे कद्दावर नेता हैं.
हिना की वापसी से आरजेडी की बढ़ेगी ताकत
सीवान से दो बार आरजेडी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुकीं हिना शहाब और उनके बेटे ओसामा के आने से पार्टी की ताकत बढ़ेगी. सारण प्रमंडल के तीन जिलों- सीवान, सारण और गोपालगंज में शहाबुद्दीन का खासा दबदबा था. उनके निधन के बाद हिना शहाब ने वर्चस्व बनाए रखा. इसे दो मौकों पर आरजेडी भी देख चुकी है. हिना के समर्थकों ने गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव में एआईएमआईएम के कैंडिडेट का साथ दे दिया, जिससे आरजेडी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा. सीवान में हिना इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ कर भले जीत नहीं पाईं, लेकिन आरजेडी उम्मीदवार को भी हार का सामना उनकी वजह से करना पड़ा. लालू ने उनकी वापसी करा कर सारण प्रमंडल में आरजडी को मजबूत बनाने की कोशिश की है.
Tags: CM Nitish Kumar, Lalu Yadav, Md Shahabuddin, Prashant Kishor, Tejashvi YadavFIRST PUBLISHED : October 28, 2024, 07:13 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed