बनारस की गंगा आरती की पहली दीप कब और किसने जलाई थी आज उमड़ती है भारी भीड़

Varanasi Ganga Aarti: 1991 में गंगा की आरती नियमित रूप से शुरू की गई, लेकिन उस समय भी आरती इतनी भव्य नहीं थी.  पहले एक फिर तीन उसके बाद पांच और फिर सात अर्चक मौजूदा समय में गंगा आरती कर रहे हैं....

बनारस की गंगा आरती की पहली दीप कब और किसने जलाई थी आज उमड़ती है भारी भीड़
अभिषेक जायसवाल/वाराणसी: देश के कई इलाकों में गंगा नदी के किनारे गंगा आरती होती है. हरिद्वार और बनारस सहित कई जगह की गंगा आरती तो दुनिया की भव्य और अलौकिक गंगा आरती में गिनी जाती हैं. यहां की आरती इतनी भव्य होती हैं कि देश-विदेश से पहुंचने वाले हजारों भक्त इन्हें जरूर देखते हैं. इन आरतियों से जुड़े कुछ रोचक तथ्य भी हैं. आज हम आपको वाराणसी के सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन घाटों में से एक दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती के बारे में बताने जा रहे हैं. गंगा नदी के किनारे स्थित यह घाट धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. यहां हर शाम को होने वाली गंगा आरती विश्व प्रसिद्ध है और हजारों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करती है. तो क्या आप जानते हैं कि दशाश्वमेध घाट पर सबसे पहली आरती किसने की थी? दशाश्वमेघ घाट पर रोज गंगा आरती का आयोजन करने वाले गंगा सेवा निधि के ट्रस्टी आशीष तिवारी ने बताया कि बनारस में गंगा आरती की शुरुआत 1991 से हुई लेकिन, इसकी नींव 1985 में ही पड़ गई थी. काशी के दशाश्वमेघ घाट के तीर्थ पुरोहित किशोरी रमण दुबे उर्फ बाबू महाराज और स्वर्गीय मुंडन महाराज ने इसकी शुरुआत की थी. शुरुआत में सिर्फ इन विशेष त्योहारों पर होती थी आरती हरिद्वार की गंगा आरती देखने के बाद उन्होंने काशी में गंगा आरती का संकल्प लिया था. उसके बाद 1985 में विशेष पर्व पर खुद बाबू महाराज ने मां गंगा के तट पर आरती शुरू की थी. उस समय गंगा दहशरा, देव दीपावली जैसे विशेष पर्व पर वो गंगा आरती करते थे. 1991 से शुरू हुई नियमित गंगा आरती 1991 में गंगा की आरती नियमित रूप से शुरू की गई, लेकिन उस समय भी आरती इतनी भव्य नहीं थी.  पहले एक फिर तीन उसके बाद पांच और फिर सात अर्चक मौजूदा समय में गंगा आरती कर रहे हैं. अब इसे मां गंगा के सप्तऋषि के आरती तौर पर देखा जाता है. ये है दशाश्वमेघ घाट का महत्व दशाश्वमेध घाट का नाम संस्कृत के शब्दों “दश” (दस), “अश्व” (घोड़े) और “मेध” (यज्ञ) से मिलकर बना है. मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव का स्वागत करने के लिए यहां दस अश्वमेध यज्ञ किए थे. यह घाट अपने धार्मिक महत्व के कारण हजारों सालों से श्रद्धालुओं का केंद्र रहा है. सबसे पहली आरती दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती की शुरुआत 20वीं सदी में हुई थी. इसका उद्देश्य गंगा नदी की महिमा और धार्मिक महत्व को बढ़ाना था. गंगा आरती की परंपरा गंगा आरती एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें गंगा नदी की पूजा और आराधना की जाती है. यह आरती हर शाम सूर्यास्त के समय होती है और इसमें भव्य दीपों, मंत्रों और संगीत का विशेष योगदान होता है. इस आरती के दौरान पुजारी पारंपरिक वस्त्र धारण करते हैं और विशेष प्रकार के दीपक जलाकर गंगा माता की आराधना करते हैं. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व गंगा आरती का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत बड़ा है. यह न केवल गंगा नदी की महिमा का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत उदाहरण भी है. दशाश्वमेध घाट पर होने वाली आरती को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं और इस अद्भुत दृश्य का आनंद लेते हैं. Tags: Local18FIRST PUBLISHED : July 14, 2024, 11:15 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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