दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल उपयोग करने वाला भारत कैसे निपट रहा है गिरते जलस्तर से
दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल उपयोग करने वाला भारत कैसे निपट रहा है गिरते जलस्तर से
Groundwater use in India : जलशक्ति मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट बताती है कि ग्राउंडवॉटर रिचार्ज यानि बारिश के पानी के दोबारा भूमि में जाने की यह स्थिति है कि सालाना 3880 बीसीएम (बिलियन क्यूबिक मीटर) के एवज में महज 432 बीसीएम ही रिचार्ज हुआ है. यही नहीं 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विभिन्न स्तर पर मौजूद 1186 जल इकाइयों को अतिशोषित यानी अत्यधिक दोहन की श्रेणी में डाला गया है.
भारत दुनिया के उन चंद देशों में से है, जिसे पानी खूब मिला है. यहां करीब 9 नदियों का व्यापक तंत्र है, जिससे भारत का करीब 81 फीसद भौगोलिक क्षेत्र कवर होता है. इसके बावजूद भारत एक भयानक जल संकट से जूझ रहा है. भारत के बड़े शहरों में सूखते जलाशय और पानी का गिरता स्तर गंभीर संकट बन गया है. इस पर कोढ़ में खाज की स्थिति यह है कि पीने, खेती, उद्योग, व्यापारिक और निर्माण गतिविधियों के उपयोग के चलते पानी के स्रोतों पर बढ़ते दबाव के बीच भूजल स्तर (यानि वॉटर टेबल- जमीन के नीचे के पानी के स्तर को वॉटर टेबल और सतह से ऊपर के पानी को वॉटर लेवल के आधार पर मापा जाता है) अपने निम्नतम स्तर पर जा पहुंचा है. वर्तमान में 85 फीसद ग्रामीण और 50 फीसद शहरी आबादी भूजल पर निर्भर करती है, जिसकी बदौलत भूजल (Ground Water) का दोहन करने वाले देशों में भारत अव्वल पर आ गया है.
जलशक्ति मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट बताती है कि ग्राउंडवॉटर रिचार्ज यानि बारिश के पानी के दोबारा भूमि में जाने की यह स्थिति है कि सालाना 3880 बीसीएम (बिलियन क्यूबिक मीटर) के एवज में महज 432 बीसीएम ही रिचार्ज हुआ है. यही नहीं 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विभिन्न स्तर पर मौजूद 1186 जल इकाइयों को अतिशोषित यानी अत्यधिक दोहन की श्रेणी में डाला गया है. यह वह इकाइयां हैं जहां वॉटर रिचार्ज यानि जमीन में पानी जाने से ज्यादा उसको निकाला जा रहा है. जिस तरह के हालात भारत में पानी के लेकर पैदा हो रहे है, ऐसे में जल प्रबंधन ही एकमात्र ऐसा जरिया है जो इसका सटीक इलाज बन सकता है.
जल की चक्रीय व्यवस्था लागू करना
हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि किस तरह बारिश होती है, किस तरह धरती का पानी आसमान में जाता है और फिर वापस धरती पर आता है. यह प्रकृति का ऐसा चक्र है, जिसमें बाधा पैदा कर दिए जाने की वजह से और अतिदोहन की वजह से पूरी दुनिया में जलसंकट उभरा है. आज भूजल आर्थिक तौर पर कई क्षेत्रों जैस कृषि, उद्योग, ऊर्जा, मत्स्य पालन, परिवहन, घरेलू उपयोग में इस्तेमाल होता है. ऐसे में पेय जल का अन्य कामों में इस्तेमाल और सीवेज जल का पुनर्चक्रण नहीं होना जल संकट पैदा करने में एक बहुत बड़ी वजह बनी है. चौंका देने वाले कुछ आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में करीब 80 फीसद अपशिष्ट जल बगैर उपचारित किए यूं ही पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है.
अगर भारत की बात करें तो यहां शहरी स्तर पर रोजाना पैदा होने वाले कुल 72,368 मिलियन लीटर सीवेज का एक तिहाई ही उपचारित किया जाता है. ऐसे में कृषि और उद्योग जहां सबसे ज्यादा अपशिष्ट जल पैदा होता है, उन्हें इसे भूजल के साथ मिलने से रोकने के उपाय अपनाना चाहिए. हालांकि सरकार इसे लेकर काम कर रही है. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत 11 ताप विद्युत उत्पादन इकाइयों के साथ काम कर रही है, जिसके तहत विभिन्न उपयोगों के लिए इनकी एसटीपी से निकले उपचारित पानी का उपयोग किया जाएगा. यही नहीं सीवेज के कीचड़ का उपयोग बायोगैस बनाने में करने के लिए भी सरकार प्रोत्साहन दे रही है, जिसकी मिसाल वाराणसी के दीनापुर की एक इकाई है जहां 140 एमएलडी संयत्र से ज़रूरत के हिसाब से पर्याप्त बिजली का उत्पादन किया जा रहा है.
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क्षेत्रीय आधार पर समाधान
भारत हर लिहाज से विविधताओं से भरा देश हैं, यहां हर इलाके की भौगोलिक बनावट अलग है, इसलिए समाधान भी स्थानीय स्तर पर ढूंढा जाना बेहद जरूरी होता है. मसलन गुजरात, राजस्थान में जलवायु शुष्क है, इसलिए वहां भूजल संकट है तो दक्षिण में क्रिस्टलीय एक्वाफियर से भूजल की उपलब्धता पर असर पड़ता है. इसके साथ ही अलग-अलग जगह पर बारिश का अलग अलग प्रभाव रहता है, जिससे ग्राउंड वॉटर रिचार्ज में असमानता देखने को मिलती है.
हालांकि, भारत में पानी राज्य का विषय है, यानी प्रत्येक राज्य के पास अपने तरीके से पानी के मुद्दों पर चर्चा करने और हल करने का संप्रभु अधिकार है. केंद्रीकृत दृष्टिकोण का नहीं होना, जो पूरे नदी बेसिन को एक जल विज्ञान इकाई के रूप में मानती है, जल संरक्षण और प्रबंधन को काफी हद तक प्रभावित करती है और जल-कुशल रणनीतियों के कार्यान्वयन को रोकती है. जल शक्ति मंत्रालय के गठन के साथ अब इस मुद्दे को आंशिक रूप से जांच के दायरे में रखा जा रहा है, जो पानी से संबंधित कार्यक्रमों को एक ढांचे के दायरे में लाने के लिए काम कर रहा है. मसलन, जल शक्ति मंत्रालय एक नई राष्ट्रीय जल नीति तैयार कर रहा है, जिसका मकसद जलस्रोतों का इस्तेमाल और जल प्रबंधन एकीकृत राष्ट्रीय दृष्टिकोण से होना है. सरकार ने सिंचाई, घरेलू जल आपूर्ति और अन्य क्षेत्रों में पानी के उपयोग में सुधार के लिए एक राष्ट्रीय जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (NBWUE) बनाने का भी प्रस्ताव दिया है. इससे देश भर में जल-कुशल उपकरणों को बढ़ावा मिलेगा.
जल प्रबंधन को लेकर चुनौतियां
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के मुताबिक, भारत में जलउपचार संयत्र की लागत प्रति मिलियन लीटर एक करोड़ रुपये आती है. इसके साथ शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट जल उपचार संयत्र के लिए जगह की कमी, ऊर्जा की कमी, कुशल श्रमिकों की कमी जैसी दिक्कतें भी शामिल हैं. हालांकि पिछले एक दशक में पूरे देशभर में अपशिष्ट जल उपचार में निवेश को लेकर कई उल्लेखनीय नीतियां और फैसले लिए गए हैं.
स्वच्छ भारत अभियान के तहत जल उपचार के लिए कम लागत वाली स्वदेशी तकनीक को विकसित करने पर विशेष काम हो रहा है. इसमें भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर और गुजरात टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों का भी सहयोग मिल रहा है. इसके साथ ही निजी संस्थान भी अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं. इसके अलावा स्थानीय स्तर पर भी जल प्रबंधन पर विशेष तौर पर काम हो रहा है, जिसके चलते कस्बों और शहरों में उपचार मॉडल की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. आगे चलकर अपशिष्ट जल उपचार एक व्यवसाय के तौर पर उभर सकता है जो निजी संस्थानों और स्थानीय निकायों के लिए कमाई का एक जरिया बन सकता है और इससे होने वाली कमाई का इस्तेमाल समाज के दूसरे कामों में किया जा सकता है. 6000 करोड़ की केंद्र की अटल भूजल योजना भूजल स्रोतों के प्रबंधन को सुनिश्चित करती है. और जल प्रबंधन में समुदायों के योगदान को बढ़ाती है. अटल जल को सात राज्यों – गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 81 जल-तनावग्रस्त जिलों और 8,774 ग्राम पंचायतों में लागू किया जा रहा है.
इसमें कोई दोराय नहीं है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी के बीच भूजल दोहन पर नियत्रण बेहद मुश्किल है. ऐसे में सही तरह से जल का प्रबंधन और वर्षा जल संचयन की एक मात्र ऐसा तरीका है, जिसके जरिए हम इस मुसीबत का मुकाबला कर सकते हैं. जल संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए, केंद्र ने सभी जिलों (ग्रामीण) के सभी ब्लॉकों को कवर करने के लिए “जल शक्ति अभियान: “कैच द रेन – व्हेयर इट फॉल्स, व्हेन फॉल्स” थीम के साथ शुरू किया है. इसका मतलब है लोगों को मॉनसून से पहले और मॉनसून के महीने में जहां बारिश हो रही है उसे वहीं पर रोकने और भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है.
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Tags: Ministry of Jal Shakti, Water, Water CrisisFIRST PUBLISHED : August 22, 2022, 18:03 IST