बंगाल में मात्र 17% OBC आरक्षण मगर 100 में से 92 मुस्लिमों को मिला कोटा!

पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण के मसले पर हाईकोर्ट के फैसले से बवाल मच गया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुलेआम ऐलान कर दिया है कि वह कोर्ट के फैसले को नहीं मानेंगी. क्या है यह पूरा मसला और इसके पीछे की क्या थी मंशा... पढ़िये ये विस्तृत रिपोर्ट.

बंगाल में मात्र 17% OBC आरक्षण मगर 100 में से 92 मुस्लिमों को मिला कोटा!
पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण का मसला अब नेशनल इश्यू बन गया है. कोलकाता हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में 2010 के बाद जारी पांच लाख से अधिक ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया है. इससे राज्य ही नहीं पूरे देश की राजनीति में आरक्षण पर एक फिर बहस छिड़ गई है. हाईकोर्ट ने 2012 में राज्य की ममता बनर्जी सरकार द्वारा 77 जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने संबंधी कानून को ही अवैध करार दिया है. क्या है पूरा मामला दरअसल, पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण की पूरी कहानी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में गठित सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित है. उस रिपोर्ट में देश में मुस्लिम समुदाय की स्थिति के बारे में विस्तृत बातें की गई थीं. रिपोर्ट में कहा गया था कि पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारियों में केवल 3.5 फीसदी ही मुस्लिम थे. इसी को आधार बनाकर 2010 में पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार ने 53 जातियों को ओबीसी की श्रेणी में डाल दिया और ओबीसी आरक्षण सात फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया. इस तरह उस वक्त करीब 87.1 फीसदी मुस्लिम आबादी आरक्षण के दायरे में आ गई. लेकिन, 2011 में वाम मोर्चा की सरकार सत्ता से बाहर हो गई और उसका यह फैसला कानून नहीं बन सका. तृणमूल सरकार फिर राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार आई और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनीं. ममता की सरकार ने इस सूची को बढ़ाकर 77 कर दिया. 35 नई जातियों को इस सूची में जोड़ा गया, जिसमें से 33 मुस्लिम समुदाय की जातियां थीं. साथ ही तृणमूल सरकार ने भी राज्य में ओबीसी आरक्षण सात फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया. ममता सरकार के इस कानून की वजह से राज्य की 92 फीसदी मुस्लिम आबादी को आरक्षण का लाभ मिलने लगा. ओबीसी आरक्षण में भी बंटवारा दूसरी तरह, ओबीसी आरक्षण को भी दो वर्गों में बांट दिया गया. 10 फीसदी आरक्षण एक वर्ग को दिया गया, जिसमें से अधिकतर जातियां मुस्लिम समुदाय की थीं. दूसरे वर्ग को सात फीसदी आरक्षण मिला जिसमें हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय की जातियां थीं. कई राज्यों में लागू है ये फॉर्मूला ओबीसी आरक्षण को दो वर्गों में बांटने का फॉर्मूला कई राज्यों में लागू किया गया है. बिहार में पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग दो कैटगरी है. यहां ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 37 फीसदी कर दिया गया है. केंद्र सरकार और कई अन्या राज्यों में ओबीसी आरक्षण क्रीम लेयर और नॉन क्रीमी लेयर श्रेणी में बंटा है. इस आधार पर ओबीसी आरक्षण को ज्यादा तार्किक बनाने की कोशिश की गई. क्रीम और नॉन क्रीमी लेयर का आधार परिवार की आय होती है. ओबीसी समुदाय से होने के बावजूद एक दंपति की आय अगर एक निश्चिच लेवल से अधिक हो तो उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है. मनमानी के आरोप ममता बनर्जी पर आरोप लगता है कि उन्होंने राज्य में ओबीसी की सूची में 77 जातियों को शामिल करने का कानून वोट बैंक की राजनीति के आधार किया. इसमें राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी सूची में जातियों को शामिल करने का जो मानक है उसका ध्यान नहीं रखा गया. मुस्लिमों की स्थिति में सुधार हालांकि, इस पिक्चर का एक अन्य पहलू भी है. सच्चर कमेटी के मुताबिक राज्य सरकार की नौकरियों में 2010 से पहले कभी केवल 3.5 फीसदी मुस्लिम थे. उस स्थिति में आज काफी सुधार हुआ है. टेलीग्राफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में मुस्लिम समुदाय की स्थिति में काफी सुधार देखा गया. बंगाल सरकार के अल्पसंख्यक विभाग की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2011 से 2015 के बीच पश्चिम बंगाल सर्विस कमिशन की भर्तियों में 9.01 फीसदी अल्पसंख्यकों का चयन हुआ. इस अवधि में पश्चिम बंगाल कर्मचारी चयन आयोग की भर्तियों में 15 फीसदी अल्पसंख्यक चयनित हुए. ठीक इसी तरह पश्चिम बंगाल म्यूनिशिपल सर्विस कमिशन की भर्तियों में 12.5 फीसदी अल्पसंख्यक चयनित हुए. राज्य में मुस्लिम समुदाय के लोगों की आबादी 2.47 करोड़ यानी 27 फीसदी के करीब है. Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Muslim reservation, OBC ReservationFIRST PUBLISHED : May 23, 2024, 12:31 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed