डोलती है नाव तो बढ़ती है धड़कन उफनती नदी में नाव से स्कूल जाने को मजबूर टीचर

Purnia News: पूर्णिया और सीमांचल के सैकड़ों शिक्षक प्रतिदिन जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं. इन लोगों के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है. कई बार नाव हादसे का शिकार होते-होते ये शिक्षक बचे हैं. कभी दलदल में फंसकर तो कभी खेत के मेढ़ के रास्ते शिक्षक समय पर स्कूल पहुंचने की कोशिश में रहते हैं.

डोलती है नाव तो बढ़ती है धड़कन उफनती नदी में नाव से स्कूल जाने को मजबूर टीचर
हाइलाइट्स उफनती नदी में नाव पर सवार होकर स्कूल जाने को मजबूर सैकड़ों शिक्षक. दानापुर के नासरीगंज हादसे के बाद भी बिहार सरकार ने नहीं लिया सबक. समय पर स्कूल पहुंचना जरूरी पर शिक्षकों के लिए नाव ही एकमात्र सहारा. पूर्णिया. बीते 23 अगस्त का वह वाकया आपको याद होगा जब पटना के नासरीगंज घाट पर नाव पर सवार होते ही शिक्षक अविनाश कुमार फिसल गए और गंगा नदी में गिरते ही पानी की तेज धार में बह गए. बाद में एसडीआरएफ की टीम सर्च अभियान में जुटी, लेकिन शिक्षक का पता नहीं चल सका. इसके बाद मामला गरमाया तो आनन फानन में दियारा के स्कूलों के लिए गाइडलाइन जारी किया गया और यहां के शिक्षकों को शहर के स्कूलों में योगदान के लिये कहा गया. लेकिन, बिहार के पूर्णिया में हालात अलग हैं. यहां आज भी सैकड़ों शिक्षक जान जोखिम में डालकर नाव पर सवार होकर स्कूल जाने को मजबूर हैं. बता दें कि बिहार के पूर्णिया के अमौर प्रखंड के खाड़ी महीनगांव पंचायत में 2007 ईस्वी में करोड़ों की लागत से कनकई नदी पर पुल बनना शुरू हुआ, लेकिन 2013 में आधा अधूरा पुल बनाकर छोड़ दिया गया. तब से यह पुल बीच नदी में खड़ा है, लिहाजा लोग नाव से आवागमन करते हैं. प्राथमिक विद्यालय खाड़ी मुर्गी टोल के शिक्षक गुलशन परवीन, स्वराज आलम और मध्य विद्यालय बसौल बाभनटोल के शिक्षिका द्रौपदी देवी का कहना है कि कई शिक्षक भी प्रतिदिन ₹40 देकर इसी नाव से नदी की तेज धारा में पार कर स्कूल जाते हैं. 3 महीने पहले का एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें नाव पुल के पीलर से टकरा गई थी और बाढ़ के समय तेज धार में बह गई थी. तब नाविकों की सूझबूझ से उस समय नाव डूबने से बच गई थी और बड़ा हादसा टल गया था. इसी तरह एक बार शिक्षिका नाव से नदी में गिर गईं थीं. शिक्षिका जान जोखिम में डालकर नाव के सहारे स्कूल जा रहे हैं. ये शिक्षक और शिक्षिका कभी पानी में घुसकर तो कभी कीचड़ में घुसकर तो कभी खेत के मेड़ पर रेंगते हुए स्कूल तक पहुंचते हैं और बच्चों को शिक्षा देते हैं. इन शिक्षकों का कहना है कि उन लोगों को प्रतिदिन समय पर स्कूल पहुंचना होता है. अगर विलंब होगा तो उनका अटेंडेंस कट जाएगा. अक्सर नाव के इंतजार में दो-दो घंटा लेट हो जाता है. पिछले दिनों दानापुर में भी नाव हादसे में एक शिक्षक गंगा नदी में डूब गया था. तब से सरकार की नींद तो खुली है, लेकिन सीमांचल और पूर्णिया में आए दिन शिक्षकों को इस तरह की समस्या झेलनी पड़ती है. मगर उसको देखने के लिए सरकार, स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन आंख मूंदे बैठी है. अगर यह खड़ा पुल बन जाए तो इस इलाके के लाखों लोगों की आबादी का आवागमन सुगम हो जाएगा, लेकिन इसकी चिंता किसी को नहीं है. महिला शिक्षकों को तो नाव पर सवार होकर स्कूल पहुंचना बहत कठिन होता है. वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि इस खाड़ी पुल के निर्माण के लिए उन लोगों ने दर्जनों बार आंदोलन किया. किशनगंज के सांसद मोहम्मद जावेद, अमौर के विधायक अख्तरुल ईमान और जदयू नेता मास्टर मुजाहिद ने भी कई बार आश्वासन दिया, लेकिन आज तक यह पुल नहीं बना. लिहाजा वे लोग यहां नाव से ही आवागमन करते हैं. कई बार वे लोग दुर्घटना का भी शिकार हो जाते हैं. सबसे बड़ी समस्या तो शिक्षकों को होती है जिनको समय पर स्कूल पहुंचना होता है, लेकिन नाव के कारण वह समय पर स्कूल नहीं पहुंच पाते हैं. कई बार बड़े हादसे का शिकार होने से शिक्षक बचे हैं. कनकई नदी में एक बार शिक्षकों से भरी नाव पलटते पलटते बच गई. नाविकों की सूझबूझ के कारण बड़ा हादसा टल गया था. इसके बावजूद प्रशासन और सरकार की नींद नहीं टूट रही है. लोगों ने यहां जल्द पुल के निर्माण की मांग की है. लोगों का कहना है कि अगर यह पुल बन जाता है तो अमौर से लेकर अनगढ़ और किशनगंज तक आवागमन का रास्ता सुगम हो जाएगा. लाखों लोगों को इससे फायदा होगा, लेकिन आधा अधूरा पुल बनाकर छोड़ देने से सरकार का तो करोड़ों रुपया पानी में बह गया लोगों को भी कोई फायदा नहीं मिल रहा है. बता दें कि यह हालत सिर्फ अमौर के खाड़ी महीन गांव का ही नहीं है, बल्कि पूर्णिया जिले में कई ऐसे इलाके हैं जहां आजादी के 77 साल बाद आज भी लोगों को जान जोखिम में डालकर नाव के सहारे आवागमन करना पड़ता है. खासकर बाढ़ प्रभावित बायसी अनुमंडल में लोगों के लिए यह नियति बन चुकी है. सबसे बुरा हाल उन भोले भाले शिक्षकों का है, जिनको प्रतिदिन ड्यूटी करनी होती है. भले ही उनकी जान क्यों ना चली जाए, इससे न तो सरकार को मतलब है ना ही प्रशासन को और ना ही जनप्रतिनिधि को. Tags: Bihar News, Purnia newsFIRST PUBLISHED : September 5, 2024, 15:07 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed